निजी व सरकारी कार्यालयों में आंतरिक शिकायत समिति का गठन जरूरी : डा0 डी सुरेश

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निजी व सरकारी कार्यालयों में आंतरिक शिकायत समिति का गठन जरूरी : डा0 डी सुरेश 2गुरुग्राम,28 जुलाई। कार्यस्थल पर यौन उत्पीडन रोकथाम अधिनियम 2013 के अतंर्गत आज स्थानीय हरियाणा राज्य औद्योगिक अवसरंचना विकास निगम के सभागार में कार्यशाला का आयोजन किया जिसमें गुरुग्राम मंडल के आयुक्त डा0 डी सुरेश मुख्य अतिथि थे। 
प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए डा0 डी सुरेश ने कहा कि सरकारी कार्यालयों में तो फिर भी यौन उत्पीडऩ की शिकायतें आ जाती है और उन पर कार्रवाई भी हो जाती है लेकिन निजी संस्थानों से अभी तक बहुत कम शिकायतें प्राप्त हो रही हैं। उन्होंने कहा कि कॉरपोरेट कंपनियों  का प्रबंधन अपनी महिला कर्मचारियों में विश्वास पैदा करे ताकि उनके साथ कोई भी गलत हरकत हो तो उसके बारे में वे शिकायत करने की हिम्मत जुटा सके। उन्होंने कहा कि प्राइवेट तथा सरकारी कार्यालयों में आंतरिक शिकायत समिति का गठन करना जरूरी है और उसके सदस्यों के नाम तथा संपर्क नंबर सार्वजनिक रूप कार्यालय में चस्पा किए जाने चाहिए।
 
डा0 डी सुरेश ने कहा कि कि इस बात की काफी संभावना रहती है कि यौन उत्पीडऩ की शिकायत कर्ता अन्य प्रकार की प्रताडऩा, अकेलापन,ग्लानि की भी शिकार हो जाए। साथ ही कार्यस्थल, समाज और परिवार में उसके काम पर बुरा प्रभाव पड़े। सर्वोच्च न्यायालय भी इस बात की जरूरत पर बल देता है कि सभी कार्यस्थलों पर यौन उत्पीडऩ शिकायत समिति अवश्य गठित की जाए। फैसले में इस बात को भी आवश्क माना गया है कि शिकायत समिति में तीसरे पक्ष को भी जरूर रखा जाए जो या तो कोई गैर सरकारी संगठन हो या कोई ऐसा व्यक्ति जो जैंडर और सैक्सुअलटी अर्थात सामाजिक लिंग और यौनिकता मुद्दों की समझ रखता हो और साथ ही ये भी जानता हो कि यौन उत्पीडऩ के मामलों से कैसे निपटा जाता है। उन्होंने कहा कि जो मामलें आंतरिक समिति से हल नहीं हो पाते, उन्हें जिला स्तर पर गठित लोकल कंपलैंट कमेटी के पास भेजना चाहिए। इसके अलावा, साल में यौन उत्पीडऩ के मामलों की रिपोर्ट जिला अधिकारी अर्थात अतिरिक्त उपायुक्त को भेजी जानी जरूरी है। 
 
इस कार्यशाला को अतिरिक्त उपायुक्त प्रदीप दहिया ने संबोधित करते हुए बताया कि कार्यस्थल पर यौन उत्पीडऩ व्यक्ति की नौकरी, तरक्की और व्यक्तिगत सुख पर बेहद बुरा प्रभाव डालता है और साथ ही कार्यालय के वातावरण को उसके लिए डरावना और अपमान जनक बना देता है। उन्होंने कहा कि पीडि़ता पर पडऩे वाले प्रभाव  के आधार पर  ही यौन उत्पीडऩ की व्याख्या की जाती है ना कि परेशान करने वाले के इरादे के आधार पर। भारत का सर्वोच्च न्यायालय यौन उत्पीडऩ की व्याख्या करते हुए कहता है कि यह किसी भी प्रकार का अवांछिक कामुक व्यावहार है  जो पूरी निश्चयात्मकता के साथ किया जाता है जैसे कि शरीर छूना और सटने की कोशिश करना, यौनिक स्वीकृति की मांग करना या अनुरोध करना, यौन जनित फबतियां कसना, अश£ील चित्र दिखाना और किसी भी प्रकार का अवांछिक शारीरिक, शाब्दिक या इशारे में किया गया कामुक प्रवृति का व्यवहार। 
 
कार्यशाला में जिलाभर से विभिन्न कार्यालयों मे गठित आंतरिक शिकायत समितियों के सदस्यों ने भाग लिया और इस अधिनियम से संबंधित अपनी जिज्ञासाओं का समाधान किया। कार्यशाला में कुछ समय के लिए उपायुक्त विनय प्रताप सिंह भी गए थे, जिन्होने सभी प्रतिभागियों को अपने दायित्व को भली प्रकार समझने का आह्वान किया था।

Suvash Chandra Choudhary

Editor-in-Chief

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