क्या इंडिया गठबंधन ख़त्म हो गया ?

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सुभाष चौधरी /The Public World 

नई दिल्ली : लोकसभा चुनाव जैसे-जैसे करीब आता जा रहा है, विपक्षी गठबंधन इंडिया से उनके सहयोगी दल एक-एक कर किनारा करते जा रहे हैं . पहले ममता बनर्जी, फिर नीतीश कुमार, उसके बाद जयंत चौधरी ने गठबंधन से नाता तोड़ लिया.  और अब इंडिया गठबंधन के साथ जीने मरने की कसमें खाने वाले आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल ने भी कांग्रेस पार्टी के लिए सीट शेयरिंग को लेकर रेड लाइट जला दिया है।

 

बड़ा सवाल है कि इस गठबंधन पर भाजपा नेताओं की भविष्यवाणी सटीक साबित होने लगी  :

ऐसा लगता है जैसे भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय नेताओं की भविष्यवाणी सही साबित होने वाली है. कांग्रेस पार्टी सहित दो दर्जन दलों के साथ आकर भाजपा के खिलाफ इंडिया गठबंधन बनाने और साथ चुनाव लड़ने का ऐलान होने के समय से ही भाजपा लगातार इसे भानुमती का पिटारा बताती रही और इसके बिखरने की भविष्यवाणी करती रही. तब उनके बयान राजनीतिक विरोध में दिए गए लगते थे. भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, यहां तक कि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस गठबंधन को ठग बंधन और घमंडिया गठबंधन की संज्ञा दी थी। जाहिर है यह संज्ञा इंडिया गठबंधन के दलों के नेताओं पर सटीक बैठने लगी है. क्योंकि अभी चुनाव घोषित भी नहीं हुआ, इसके सभी सहयोगी दलों का स्वार्थ और घमंड सिर चढ़कर बोलने लगा. अगली बैठक आयोजित करना तो दूर अब एक दूसरे को ही चुनौती देने लगे हैं।

 

 

इंडिया के सहयोगी दल अपनी अलग राह चुनने लगे :

पहले ममता बनर्जी ने कांग्रेस पार्टी को पूरे देश में 40 सीट भी नहीं जीत पाने वाली पार्टी बताया. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने बंगाल में कांग्रेस पार्टी को दो सीट देने से भी इंकार कर दिया. यहां तक कह डाला कि बंगाल में उनका कुछ नहीं है . अकेले अपने दम पर लड़ने का ऐलान करते हुए ममता बनर्जी ने कांग्रेस पार्टी के लिए बंगाल में ऐसी लक्ष्मण रेखा खींच दी जिसे पार  करने की हिम्मत कांग्रेस पार्टी के बड़े नेता भी नहीं जुटा पा रहे हैं . साझे में चुनाव लड़ना क्या,  वाम पंथी दल तो ममता बनर्जी को फूटी आँख भी नहीं सुहाते हैं. ममता बनर्जी के इस ऐलान का विरोध करने के लिए केवल बंगाल से ही कांग्रेस के सांसद अधीर रंजन चौधरी को छोड़कर किसी भी राष्ट्रीय नेता का कोई बयान नहीं आया. समझना बड़ा आसान है कि गठबंधन का प्रमुख सहयोगी दल कांग्रेस के बारे में क्या बोल रहा है और इसका हश्र क्या होने वाला है । बंगाल में न तो कांग्रेस और न ही वामदल के साथ कोई चुनावी समझौता होने वाला है यानी गठबंधन ख़त्म.

 

दूसरी तरफ बिहार ने तो इंडिया का आर्किटेक्ट  ही छीन लिया  :

अगर बात की जाए बंगाल के पड़ोसी राज्य बिहार की तो वहां की तो फिजा ही पूरी तरह बदल गई.  इंडिया गठबंधन रूपी खेत में बीज बोने वाले प्रमुख किसान यानी बिहार के मुख्यमंत्री और जनता दल यूनाइटेड के प्रमुख नीतीश कुमार ने ही एनडीए का दामन थाम लिया. कहना गलत नहीं होगा कि राजनीतिक दृष्टि से देश के दूसरे सबसे बड़े राज्य बिहार में गठबंधन की जमीन ही खिसक गई । गठबंधन से कुछ छोटे-मोटे दल इधर-उधर बरसाती मेंढक की तरह फुदकते देखे गए थे लेकिन गठबंधन का प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनने का सपना देखने वाले या संयोजक के पद पर कब्जा जमाने की आस लिए सबसे बड़े नेता नीतीश कुमार ने ही इनको गच्चा दे डाला. अगर गठबंधन से अलग होकर वे अपना खुद का राग अलापते तो बात कुछ और होती उन्होंने तो भारतीय जनता पार्टी का नेतृत्व ही स्वीकार कर लिया. इंडिया का झन्डा लेकर कभी नवीन पटनायक तो कभी ममता और अखिलेश के दरबार में भटकने वाले नितीश कुमार ने ही यह कह कर गुब्बारे की हवा निकाल दी कि वहां कुछ नहीं होने वाला है.  जाहिर है चुनाव से पहले ही इंडिया का प्रमुख बनने की जगत में जुटे व्यक्ति ने ही प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 2024 में तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने की संभावना पर मोहर लगा दी ।

इस राज्य में भाजपा ने अपनी 40 सीटों को जितने की दावेदारी मुकम्मल कर ली और देश में इंडिया गठबंधन की चल रही हवा की गति को कैद कर लिया। ऐसा मानने के पीछे बड़ा मजबूत आधार है वर्ष 2019 में भी बिहार में भारतीय जनता पार्टी और जनता दल यूनाइटेड एक साथ गठबंधन में लोकसभा चुनाव में उतरी थी और 39 सीटों पर बिना बिना किसी लाग लपेट के  कब्जा जमा लिया था। अब 2024 के संसदीय चुनाव में भी कुछ ऐसा ही परिणाम देखने को मिलेगा क्योंकि इस नए खेल से कोई किंतु परंतु नहीं रह गया है । बिहार में लालू यादव की पार्टी राजद,  कांग्रेस को अस्तित्व विहीन पार्टी मानती रही है और अपनी शर्तों पर कुछ सीटें उनकी झोली मने डालती रही है . यहाँ कौन झंडा उठाएगा इसको लेकर दुविधा है. वाम दलों का अपनी डफली अपना राग है.

 

यूपी में भी इस गठबंधन का एक मजबूत पाया खिसक गया :

 

देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में 62 सीटें जीती थी जबकि सहयोगी अपना दल को भी दो सीटों पर कामयाबी मिली थी। इस बार भाजपा नेतृत्व चुनाव से पहले अपनी व्यूह रचना को मजबूत करने में लगा हुआ है. इस रणनीति का हिस्सा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में खास पकड़ रखने वाली जयंत चौधरी पर डोरे डालना रहा. जयंत चौधरी की पार्टी का समाजवादी पार्टी के साथ विधानसभा चुनाव में गठबंधन था.  अनुभव अच्छा नहीं रहा क्योंकि परिणाम उम्मीद से कहीं दूर रहा.

अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न से सम्मानित करने का ऐलान कर दिया. जिसका सीधा असर जयंत चौधरी के दिल पर पड़ा.  यह असर ऐसा पड़ा कि जयंत चौधरी ने पत्रकारों से बातचीत में यहां तक कह दिया कि किस मुंह से हम उनके साथ जाने से मना कर दें. यानी यहां भाजपा ने एक तरफ इंडिया गठबंधन जिसमें कांग्रेस और समाजवादी पार्टी शामिल है को कमजोर किया तो दूसरी तरफ पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सभी सीटों पर भाजपा को मजबूती दिलाने का जुगाड़ कर लिया।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश की लगभग 27 विधानसभा क्षेत्रों में जाट मतदाताओं का बोलबाला है. जाट मतदाताओं पर सर्वाधिक असर पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के खानदान और उनके वारिस का रहता है.  यह परिवार जिस दिशा में जाता है चाहे उनकी हार हो या जीत, जाट समाज उनके साथ बहुतायत में खड़े होते रहे हैं. और इस बार तो चौधरी साहब को भारत रत्न देने का ऐलान करना अपने आप में जाट समाज के अभिमान को सहलाने के लिए काफी है। जयंत चौधरी अब एनडीए गठबंधन के साथ खड़े हैं।

जाहिर है इसमें भाजपा और जयंत चौधरी की पार्टी लोक दल दोनों का नफा नुकसान शामिल है. उन्हें ऐसा लगता है कि भविष्य में उत्तर प्रदेश की राजनीति में अगर अपने अस्तित्व को बचाए रखना है तो भाजपा जैसी मजबूत पार्टी के साथ जाना ही लाभकारी होगा । वहां उन्हें पद भी मिलेंगे और पार्टी को मजबूती भी प्रदान करने का मौका भी । संभव है उन्हें यह बात अच्छी तरह समझ आ गई है कि लंबे समय तक सत्ता से दूर रहने वाले राजनीतिक दल से उनके कार्यकर्ता और अनुयायी धीरे-धीरे निराश होने लगते हैं और अंततः उनके साथ छोड़ जाते हैं. यह स्थिति जयंत चौधरी के साथ उत्पन्न हो चुकी थी और उन्हें देर सबेर इसका अंदाजा लग गया। शायद उन्हें इस बात का इन्तजार था कि उन्हें कोई सटीक बहाना मिले. अखिलेश यादव से अपना पाला छुड़ाना था सो उन्हें चौधरी साहब को भारत रत्न के ऐलान का मजबूत बहाना भी मिल गया. इसको लेकर ना समाज के लोग सवाल खड़े करेंगे और ना ही कोई सत्ता लोलुपता का आरोप लगा पाएंगे।

अब भाजपा उत्तर प्रदेश में 2019 से आगे अगर नहीं भी गई तो कम से कम उस इतिहास को दोहराने की स्थिति में तो पहुंच ही गई है। क्योंकि कई ऐसे छोटे दल जो उनको छोड़कर विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव के साथ चले गए थे फिर भाजपा के साथ आ गए हैं जबकि आने वाले कुछ समय में इस कहानी की पटकथा में कुछ और किरदार जोड़े और तोड़े जा सकते हैं। कुल मिलाकर यहां भी इंडिया गठबंधन द्विदलीय बनकर रह गया है क्योंकि बहुजन समाज पार्टी पहले ही अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुकी है।

 

दिल्ली में कांग्रेस के लिए रेड लाइट जल गई :

 

तो चलिए अब बात करते हैं इंडिया गठबंधन के साथ ही जीने मरने की कसमें रोज खाने वाले अरविंद केजरीवाल की। पश्चिम बंगाल बिहार और उत्तर प्रदेश के झटके से इंडिया गठबंधन उबर भी नहीं पाई थी कि दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने आज कांग्रेस पार्टी के लिए सीट शेयरिंग को लेकर रेड लाइट जला दी है।

 

दरअसल देश के दो राज्यों दिल्ली और पंजाब में सत्ता में बैठी आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस पार्टी को दिल्ली में एक लोकसभा सीट पर चुनाव लड़ने का ऑफर दिया है. पार्टी के नेता संदीप पाठक ने आज शर्तिया ऐलान कर दिया है कि उनकी पार्टी कांग्रेस को दिल्ली में एक सीट देने का प्रस्ताव करती है जबकि आम आदमी पार्टी 6  सीटों पर अपना उम्मीदवार उतारेगी . अगर बात केवल दिल्ली तक ही सीमित होती तो कोई बात नहीं संदीप पाठक ने कांग्रेस को गुजरात में उनके विधायक की संख्या बताकर नसीहत दे दी. उन्होंने यहां तक कह दिया है कि कांग्रेस पार्टी अगर समय पर जवाब नहीं देती है तो दिल्ली की  6  सीटों पर अपने उम्मीदवारों का ऐलान कर देगी.

आप नेता संदीप पाठक ने आंकड़ों के सहारे कांग्रेस को समझाने  की कोशिश की. उन्होंने कहा कि दिल्ली में कांग्रेस लोकसभा और विधानसभा में जीरो सीट पर है. एमसीडी चुनाव में कांग्रेस 250 में से केवल 9 सीटें ही जीत सकी. उनका कहना है कि अगर मेरिट के आधार पर देखें तो कांग्रेस पार्टी का एक भी लोकसभा सीट पर दावा नहीं बनता है. लेकिन उन्होंने गठबंधन धर्म निभाने का वायदा किया और कहा कि वह कांग्रेस का मान रखते हुए उन्हें लोकसभा चुनाव के लिए एक सीट का ऑफर कर रहे हैं . इससे स्पष्ट है कि कितनी बेचारगी की स्थिति में कांग्रेस पहुँच गई है. आप नेता ने इस बात का खुलासा किया कि कांग्रेस की तरफ से अलग-अलग मांगे की गई थी लेकिन उन पर अगर बातचीत होती तभी कोई निर्णय हो पाता.

आप नेता ने कहा कि उनकी तरफ से कांग्रेस को यही ऑफर यानी 6 : 1 का फार्मूला दिया गया था. उनका कहना था कि इसका हल बातचीत से ही निकल सकता है लेकिन जो मीटिंग कई महीनो पहले हो जानी चाहिए थी उस मीटिंग का उन्हें इंतजार है. उन्होंने साफ कर दिया कि अगले चार-पांच दिनों तक वह इंतजार करेंगे. इसके बाद स्थिति का आकलन कर अपने उम्मीदवारों का ऐलान कर देंगे.

लेकिन उन्होंने यह खुलासा नहीं किया कि दिल्ली की 7 सीटों में से कौन सी सीट वह कांग्रेस को ऑफर करने वाले हैं. पत्रकारों ने सवाल दागा लेकिन उन्होंने अपना पत्ता नहीं खोला . ध्यान देने वाली बात यह है कि इससे पहले आम आदमी पार्टी ने पंजाब में भी कांग्रेस को उसकी औकात बता दी है. पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने एकतरफा घोषणा करते हुए कहा था कि यहां पंजा के निशान वालों का कुछ नहीं है. पंजाब की सभी 13 सीटों पर आम आदमी पार्टी ही लड़ेगी. कयासों का बाजार इतना गर्म हो चुका है कि इस गठबंधन का अस्तित्व अब कागजों में रह गया लगता है।

संभावना प्रबल है कि हरियाणा में भी कांग्रेस पार्टी 10 सीटों पर अपना उम्मीदवार उतारेगी यह कहते हुए कि यहां आम आदमी पार्टी का कोई नाम लेवा नहीं है। यानी हिसाब बराबर और दोनों अपने – अपने रास्ते संसद पहुंचेगे. कोई किसी की बैलगाड़ी पर बैठने को तैयार नहीं है .

 

ये स्थिति अचानक पैदा नहीं हुई है . मेरा मानना है कि इस खानी का प्लाट काफी पहले से ही तैयार हो रहा था . पिछले दिनों पंजाब के तरनतारण में एक रैली को संबोधित करते हुए दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने बड़ा बयान दिया था. केजरीवाल ने कहा था कि दिल्ली की जनता ने ठान लिया है कि सभी सात लोकसभा सीटें आम आदमी पार्टी को देनी है. दूसरी तरफ पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने भी कहा था कि पंजाब की सभी 13 और चंडीगढ़ की एक सीट आम आदमी पार्टी ही जीतेगी. एक सामान्य व्यक्ति भी इन दोनों मुख्यमंत्रियों के बयानों को बड़ी आसानी से समझ सकता है कि पंजाब और दिल्ली में इंडिया गठबंधन की तस्वीर कैसी रहने वाली है।

 

आंकड़े से कांग्रस की औकात बताई जा रही है :

आम आदमी पार्टी के नेता ने मीडिया के सामने जिन तथ्यों का खुलासा किया उससे तो यही स्पष्ट होता है कि गठबंधन में सब कुछ ठीक-ठाक नहीं बल्कि कुछ भी ठीक नहीं है. जब सीट शेयरिंग को लेकर लंबे समय से आपस में बातचीत भी नहीं हो रही है तो आखिर गठबंधन किस बात का. केवल हवा बाजी करने के लिए ? तो देश की जनता तो अब इतनी बेवकूफ है नहीं जो इनके झांसे में आ जाए. केवल बयानबाजी से भारत जोड़ो यात्रा का नाटक करने से, या समाज के कुछ अलग-अलग लोगों से बातचीत कर सोशल मीडिया पर परोसने से, जनता अब समझने वाली नहीं है.

भारत की जनता को अब पिछले 10 वर्षों में सीधे अपने अकाउंट में सरकारी योजनाओं का लाभ पहुंचने का मजा आने लगा है. जनता अब किसी प्रकार के बिचौलिए को पसंद नहीं करती है. उन्हें सीधा प्रधानमंत्री से एक क्लिक में अपने अकाउंट में लाभ चाहिए और वह उनको आने लगा है. इसलिए इस गठबंधन को लेकर आम जनता आश्वस्त हो चुकी है कि कांग्रेस के भरोसे  उनका भविष्य फिर अधर में लटक सकता है. इसलिए वह गफलत में नहीं आने वाले हैं . देश की जनता,  वोट के लिए कांग्रेस के नाटक की नौटंकी को समझने लगी है . लोकतंत्र का तकाजा है कि विपक्ष भी मजबूत रहे लेकिन अब न तो ये सुधरने वाले हैं और न ही मतदाता इनके भुलावे में आने वाले हैं. बाक़ी नतीजा तो लोकसभा चुनाव के बाद ही आएगा .

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