नई दिल्ली : भारतीय शोधकर्ताओं ने एक विशिष्ट प्रोटीन आईएल-35 की खोज की है जो सूजन पैदा करने वाले रसायनों का उत्पादन करने वाली विशेष प्रतिरक्षा कोशिकाओं को घटाकर प्रतिरक्षा प्रणाली की रक्षा करता है। इससे अग्नाशय कोशिका के होने वाले प्रभाव को कम किया जाता है जो टाइप 1 मधुमेह और स्व-प्रतिरक्षा मधुमेह मेलेटस में महत्वपूर्ण योगदानकर्ता है। यह प्रोटीन मधुमेह उपचार के लिए एक नया विकल्प है।
वैश्विक स्तर पर विकासशील देशों के बच्चे और किशोर बढ़ रहे मधुमेह महामारी से प्रभावित हो रहे हैं, इसलिए मधुमेह का प्रभावी उपचार समय की मांग है।
आईएल-35, आईएल -12α और आईएल -27β श्रृंखलाओं का एक विशिष्ट प्रोटीन, आईएल 12ए और ईबीआई 3 जीन द्वारा एन्कोड किया गया। शोध के अनुसार इस खोज ने, विशेष रूप से नए टाइप 1 और ऑटोइम्यून मधुमेह चिकित्सा आईएल -35 पर निर्भर हो सकने के विचार में वैज्ञानिकों की रुचि को बढ़ाया है।
गुवाहाटी में विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (भारत सरकार) के तहत एक स्वायत्त संस्थान, विज्ञान और प्रौद्योगिकी में उन्नत अध्ययन संस्थान में, एसोसिएट प्रोफेसर डॉ आशीष बाला, निदेशक, प्रोफेसर आशीष के मुखर्जी और रिसर्च स्कॉलर श्री रतुल चक्रवर्ती के नेतृत्व में आईएल -35 से सम्बंधित जीन, जीन-रोग संगत और व्यापक प्रयोग समीक्षा का नेटवर्क औषधीय विश्लेषण किया। नेटवर्क फार्माकोलॉजिकल विश्लेषण ने प्रतिरक्षा-सूजन, स्वप्रतिरक्षा, नियोप्लास्टिक और अंतःस्रावी विकारों से जुड़े पांच रोग-अंतःक्रियात्मक जीन की पहचान की।
आईएल-35 टाइप 1 और स्वप्रतिरक्षा मधुमेह से बचने में मदद करता है। यह मैक्रोफेज सक्रियण, टी-सेल प्रोटीन और नियामक बी कोशिकाओं को नियंत्रित करता है। आईएल -35 ने अग्नाशयी बीटा सेल द्वारा प्रतिरक्षा कोशिकाओं पर प्रभाव डालने से रोक दिया। इसके अतिरिक्त, आईएल -35 ने दाहक रसायनों का उत्पादन करने वाली विशेष प्रतिरक्षा कोशिकाओं को कम किया, अग्नाशयी सेल के प्रभाव को कम करते हैं जो टाइप 1 मधुमेह और स्वप्रतिरक्षा मधुमेह मेलेटस में एक महत्वपूर्ण योगदानकर्ता हैं।
“साइटोकिन” और “वर्ल्ड जर्नल ऑफ डायबिटीज” में प्रकाशित हालिया अध्ययन जैविक शोधकर्ताओं को इस विषय की जांच करने में मदद कर सकता है। इन निष्कर्षों का अर्थ है कि आईएल -35 प्रतिरक्षा प्रणाली की रक्षा करता है और एक नए मधुमेह उपचार विकल्प को पेश करता है। तंत्र को समझने और नैदानिक परीक्षणों में आईएल -35-आधारित चिकित्सा विज्ञान को आगे बढ़ाने के लिए अभी और अध्ययन किये जाने की आवश्यकता है।