नीरज कुमार
मोतिहारी : बिहार के पश्चिम चंपारण में सरकारी उदासीनता के आगे विकास की किरणें धुंधली होती दिख रही हैं.
जिले के बगहा के कदमहवा गावं में सरकार ने 14 करोड रुपये खर्च कर आदिवासी कन्या आवासीय विद्यालय बनवा तो दिया मगर इसमें जब तक ज्ञान की ज्योति जले उससे पहले ही भवन जर्जर होने लगे हैं.
नक्सली माटी पर विकास योजनाओं के जरिये मुस्कुराहट लौटाने की सरकार ने जब कोशिश की तो आदिवासियों के चेहरे पर एक अजब सी उम्मीद जगी. एक अजब सा भरोसा दिखा और एक अजब सी ललक भी दिखी. इसी कड़ी में पश्चिम चम्पारण में थरुहट विकास प्राधिकरण के जरिये 14 करोड़ रुपये की लागत से एक आदिवासी कन्या आवासीय विद्यालय का निर्माण हुआ.
मकसद साफ था कि एक केन्द्र पर चार सौ से अधिक गरीबी और बेवसी से शिक्षा से वंचित आदिवासी बच्चियां निशुल्क शिक्षा ग्रहण कर सके. अरमानों के साथ हौसले की उड़ान के पूरा होने का इंतजार है. उम्मीद अब भी बरकार है मगर सरकार से एक कसक जरूर है कि आखिर एक साल से भवन बनने के बाद अब जर्जर होने का इंतजार क्यों है.
नीतीश कुमार के दरबार तक हाजिरी लगा चुके आदिवासियों को अपनी बेटियों के सपने होने का मलाल है. सरकार ने योजना बनाई और स्थानीय लोगों ने उसे धरती पर उतारने के लिए एड़ी चोटी लगा दी. पंचायत ने जमीन दिया और 14 करोड का भवन बनकर तैयार हुआ मगर सरकारी उदासीनता से सरकार के उस सपने को ही भुला दिया जिसमें आवासीय कन्या विद्यालय खोलने का प्रावधान है.
टेकओवर-हैण्डओवर के चक्कर में समय बीतता गया और शिक्षा का मंदिर ज्ञान की ज्योति के लिए अब भी तरस रहा है तो निर्माण के दो वर्षों बाद भी उद्घाटन की बाट जोह रहे आदिवासी उरावं समुदाय के लोग खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं।