नई दिल्ली। संसद के शीतकालीन सत्र का चौथे दिन लोकसभा में आज कांग्रेस ने सरकार को चुनावी चंदे वाले इलेक्टोरल बॉन्ड को लेकर घेरा। कांग्रेस का कहना है कि बॉन्ड के जरिए भाजपा को फायदा हुआ है। इसे लेकर कांग्रेस ने सरकार से जवाब मांगा है। इस मुद्दे को लेकर दोनों सदनों में विपक्ष काफी हंगामा कर रहा है। इसी बीच कांग्रेस ने सदन से वॉकआउट कर दिया ।
कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी सदन में कहा कि सरकार ने जो इलेक्टोरल बॉन्ड जारी किए हैं, उससे सरकारी भ्रष्टाचार को अमीलजामा पहना दिया गया है। उन्होंने कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड के ना डोनर का पता है, ना कितने पैसे दिए गए यह पता है, जिसको दिया गया है उसकी भी कोई जानकारी नहीं है।
कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने इलेक्टोरल बॉन्ड को लेकर कहा, ‘जब इलेक्टोरल बॉन्ड पेश किए गए थे, तो हममें से कई लोगों ने इस पर गंभीर आपत्ति जताई थी कि कैसे यह आसानी से अमीर निगमों और व्यक्तियों के लिए अनुचित राजनीतिक दलों, विशेष रूप से सत्तारूढ़ पार्टी को प्रभावित करने का एक तरीका बन सकता है।’
सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के विनिवेश तथा चुनावी बॉण्ड के मुद्दे पर आरबीआई की आपत्ति पर चर्चा करने की मांग कर रहे वाम और कांग्रेस सदस्यों के हंगामे के कारण राज्यसभा की बैठक शुरू होने के कुछ ही देर बाद दोपहर बारह बजे तक के लिए स्थगित कर दी गई। हंगामे की वजह से उच्च सदन में शून्यकाल नहीं हो पाया। सदन की बैठक शुरू होने पर सभापति एम वेंकैया नायडू ने आवश्यक दस्तावेज पटल पर रखवाए।
उल्लेखनीय है कि बुधवार को ही राज्यसभा में कांग्रेस पार्टी के उप नेता आंनद शर्मा ने आयोजित प्रेस ब्रीफिंग में आरोप लगाया था कि भाजपा सरकार में इलेक्टोरल बॉण्ड के बारे में RTI के जरिए सामने आया है कि PMO का इसमें दखल था। यह पहली बार हुआ है, जब PMO ने ही कहा हो कि नियम तोड़ दो। श्री शर्मा ने कहा था कि ऐसा हमने कभी नहीं देखा। उनके अनुसार इसमें न चुनाव आयोग को पता होगा और न ही सर्वोच्च न्यायालय को। इसकी जानकारी सिर्फ सरकार को रहेगी। ये बॉण्ड SBI के माध्यम से जारी किए गए, ये एक अलग मुद्रा का काम करेंगे।ये भारत के प्रजातंत्र और हमारी चुनावी प्रक्रिया को कलंकित करने वाली योजना है। ये बियरर बांड नहीं “बेईमानी बांड” है। इस विषय में माननीय प्रधानमंत्री जी की सीधे जवाबदेही बनती है। इसलिए हमारी मांग है कि इस सत्र में जवाबदेही सुनिश्चित की जाए।
कांग्रेस नेता ने कहा था कि इस नई योजना में न तो चंदा देने की कोई सीमा निर्धारित है, न चंदा देने वाले और लेने वाले के नाम को सार्वजनिक करने का कोई उल्लेख है । उन्होंने आरोप लगाया कि इस योजना के बारे में खुद RBI ने कहा है कि ये मनी लॉन्ड्रिंग को बढ़ावा देगी। साथ ही, मुद्रा को भी कमजोर करने का काम होगा। न पैसे देने वाले का नाम बताया जा रहा है कि, वो- स्मगलर है; फ्रॉड है या कोई आतंकवादी है। ये पूरी तरह गैरकानूनी है।
उन्होंने कहा था कि मई 2018 में कर्नाटक में चुनाव थे। इलेक्टोरल बांड के मामले में सीधा PMO से हस्तक्षेप किया गया। कहा गया कि इसके लिए अलग से “विंडो क्रिएट” किया जाए। जो अधिकारी इस पर आपत्ति जता रहे थे, उनका रुख PMO के हस्तक्षेप के बाद बदल गया।
उनके अनुसार इसमें पहली खिड़की में ₹222 करोड़ में से लगभग 95% भाजपा को गया था। अब तक टोटल इलेक्टोरल बॉण्ड की फंडिंग में से 95%-97% भाजपा को गया है । श्री शर्मा ने सवाल खड़ा किया कि सुप्रीम कोर्ट ने सारी जानकारी चुनाव आयोग को देने का आदेश दिया था, मगर भाजपा ने अभी तक इसकी जानकारी चुनाव आयोग को नहीं दी है।
उन्होंने कहा था कि हमारी मांग है कि इस सत्र में सरकार इससे जुड़ी सारी जानकारी संसद के दोनों सदनों में दे। किस दल को कितना पैसा इलेक्टोरल बांड के जरिए मिला, इसकी सारी जानकारियां सार्वजनिक की जाए।
कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता ने यह कहते हुए चिंता व्यक्त की थी कि ये भारत के प्रजातंत्र और हमारी चुनावी प्रक्रिया को कलंकित करने वाली योजना है। ये बियरर बांड नहीं “बेईमानी बांड” है। इस विषय में प्रधानमंत्री की सीधे जवाबदेही बनती है। इसलिए हमारी मांग है कि इस सत्र में जवाबदेही सुनिश्चित की जाए।
कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने साफ शब्दों में कहा था कि इलेक्टोरल बांड का मतलब है- बेईमानी बांड। ये भाजपा द्वारा बड़े कॉर्पोरेट से मिलकर “पैसा वसूली स्कीम” है। इनका वादा तो था- कालेधन को वापस लाने की, मगर हो उल्टा रहा है। संसद से छल किया गया और इसकी एकमात्र जिम्मेदारी बनती है- प्रधानमंत्री की ।
कांग्रेस प्रवक्ता ने खुलासा किया था कि वित्त मंत्रालय ने कहा कि हर विधानसभा चुनाव से पहले इलेक्टोरल बांड नहीं खोल सकते। मगर इस आदेश के 6 दिन के भीतर ही प्रधानमंत्री ने हिदायत दी कि कानून को रद्दी की टोकरी में फेंकिए और कर्नाटक चुनाव से पहले इलेक्टोरल बांड को खोलिए।
उन्होंने आरोप लगाया था कि कर्नाटक चुनाव के बाद एक बार फिर राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश चुनाव के समय एक बार फिर कानून का उल्लंघन किया गया। उन्होंने मांग की थी कि इसकी सारी जिम्मेदारी प्रधानमंत्री की बनती है और वो इस मामले में सामने आकर जवाब दें।