— पश्चिमी चिकित्सा पद्धति की दीवारों को तोड़ने का प्रयास
—ब्राह्मी के सेवन से कोई साइड इफेक्ट्स नहीं होने का किया दावा
दरभंगा। चिकित्सा के क्षेत्र में बड़ा नाम पद्मश्री डॉ0 मोहन मिश्र के शोध को अगर आधार बनाएं तो डिमेंशिया यानी भूलने की बीमारी से पीड़ित लोगों के लिए औषधि का पौधा ब्राह्मी कारगर साबित हो सकता है। यानी कि ब्राह्मी के सेवन से उसे डिमेंशिया से सौ फीसदी छुटकारा मिल सकता है। अपने शोध कार्यों के आलोक में आज शनिवार को आवास पर पत्रकार वार्ता को सम्बोधित करते हुए डॉ0 मिश्र ने खुलासा किया कि ब्राह्मी डिमेंशिया के लिए रामबाण साबित हो सकता है।
उन्होंने कहा कि अल्जाइमर रोग डिमेंशिया की एक गम्भीर बीमारी है और अपने देश मे करीब 40 लाख एवम विश्व स्तर पर चार करोड़ लोग इस गम्भीर बीमारी से पीड़ित हैं जो बेहद ही चिंताजनक है। चिंता तो यह है कि हम इस रोग का ईलाज करने में सक्षम भी नहीं हैं।
उन्होंने बताया कि लाखों करोड़ों खर्च करने तथा लम्बे शोध के बाद भी इसके इलाज के मामले में हम वहीं हैं जहां वर्षों पहले थे। फार्मास्युटिकल कम्पनियों ने भी एक तरह से अपने हाथ खड़े कर दिए हैं। ऐसे में ब्राह्मी एक आशा भरी किरण है। इसे उचित खुराक एवम निर्धारित अवधि में सेवन करने से डिमेंशिया में काफी लाभ मिल सकता है। इसके सेवन से कोई साइड इफेक्ट्स भी नहीं है। यह सस्ती भी है।इसलिए आर्थिक रूप से कमजोर लोग भी इसे आसानी से उपयोग कर सकते हैं।
अपने लंबे शोध की आंतरिक व वाह्य प्रक्रियाओं का विस्तृत लेखा- जोखा देते हुए उन्होंने खुलासा किया कि पायलट अध्ययन के दौरान करीब दर्जनभर पीड़ितों को ब्राह्मी का सेवन कराया गया तो आशातीत सफलता मिली। इसके बाद उनके द्वारा 25-26 जून 2018 को लंदन में रॉयल कालेज ऑफ फिजिशियन के इनोवेशन इन मेडिसिन के सम्मेलन में भी प्रस्तुत किया गया। उक्त अध्ययन डब्ल्यूएचओ की प्राथमिक रजिस्ट्री में भी पंजीकृत है और रिसर्च गेट पर भी उपलब्ध है। इतना ही नहीं सभी मानकों को पीछे छोड़ते हुए लंदन के रॉयल कालेज ऑफ फिजिसियन्स के फ्युचर हेल्थ केयर जर्नल ने भी डॉ मिश्र के ब्राह्मी पर शोध कार्यों को प्रकाशित किया है।
अपने जनसरोकारों को और आगे बढ़ाते हुए डॉ मिश्र ने कहा कि शोध के जरिये पश्चिमी चिकित्सा पद्धति के खुले-बन्द दरवाजे को तोड़ने का छोटा प्रयास है और ब्राह्मी को आधुनिक चिकित्सा में लाने की महती कोशिश।
मालूम हो कि इसके पहले कालाजार के इलाज के लिए भी डॉ मिश्र ऐतिहासिक खोज कर चुके हैं और आज भी इसके इलाज में वे इकलौता नाम हैं।