सुभाष चौधरी
नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव के मैदान में उतरने को ताल ठोक रहे देश की लगभग 3000 राजनीतिक पार्टियों के नेताओं में होड़ लगी हुई है। एक तरफ कोई पुलवामा हमले का बदला लेने के लिए की गई एयर स्ट्राइक का सबूत मांग रहा है तो कोई गठबंधन और महागठबंधन को विजयी होने का दावा ठोक रहा है। इसी बीच कुछ ऐसे भी नेता सामने आए हैं जो चुनाव लड़ने को आमदा है चाहे पार्टी टिकट दे या नहीं दे जबकि कुछ ऐसे भी हैं जो टिकट वितरण की प्रक्रिया का शिकार होने से पहले ही लोकसभा चुनाव इस बार नहीं लड़ने का राग अलापने लगे हैं। इनमें से कुछ नेताओं को लगता है कि वह इस बार अगर चुनाव लड़ने से चूक गए तो 5 वर्ष बाद संभवतया राजनीतिक हासिये पर चले जाएंगे जबकि एक ऐसी भी नेता हैं जिनको इस बार अपने परफॉर्मेंस को लेकर आशंका रहने के मद्देनजर राजनीतिक इंटरवल लेना ज्यादा अच्छा लग रहा है।
सबको चौकाते हुए आज कांग्रेस के वरिष्ठ नेता वर्तमान में राज्यसभा सदस्य कपिल सिब्बल ने चांदनी चौक से चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है, यह कहते हुए कि उनकी पार्टी का किसी दूसरी पार्टी से गठबंधन हो या नहीं हो वह तो इसी सीट से चुनाव लड़ेंगे। दूसरी तरफ भाजपा के वरिष्ठ नेता व केंद्रीय मंत्री रही उमा भारती पिछले 1 वर्ष से भी अधिक समय से इस बार चुनाव नहीं लड़ने का राग अलाप रही है। हालांकि लोगों को इन दोनों ही बयानों के पीछे की राजनीति अच्छी तरह समझ में आ रही है लेकिन अलग अलग नीतियों में विश्वास करने वाले ये दोनों ही नेता देश की सामान्य मतदाताओं को सबसे बड़ा बेवकूफ समझते हैं।एक का यह कहना कि गठबंधन हो या नहीं, लेकिन मैं चांदनी चौक से ही चुनाव लडूंगा उनकी सत्ता लोलुपता को दर्शाता है जबकि वे देश के नामी वकीलों में से एक हैं और कांग्रेस पार्टी ने उन्हें लोकसभा चुनाव हारने के बावजूद राज्यसभा में पहुंचा दिया है। उनका संतोष राज्यसभा में का सदस्य बने रहने में नहीं है । हो सकता है उन्हें उम्मीद हो कि इस बार कांग्रेस् पार्टी सत्ता में आ जायेगी और अगर वे लोकसभा से जीत कर आएंगे तभी केंद्रीय मंत्री वाला बर्थ उन्हें मिल पायेगा। हालाकिं इस देश में वर्तमान सरकार हों।या फिर इससे पहले की सरकार राज्यसभा के सदस्य ही पीएम से लेकर मंत्री तक बहुतायत में रहते हैं।
उल्लेखनीय है कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने कहा है कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन हो या नहीं हो, लेकिन वह चांदनी चौक लोकसभा क्षेत्र से निश्चित तौर पर चुनाव लड़ेंगे। सिब्बल 2004 और 2009 में चांदनी चौक से चुनाव जीते थे, लेकिन पिछले चुनाव में वह भाजपा नेता डॉ हर्षवर्धन से हार गए थे।
यह पूछे जाने पर क्या दिल्ली में कांग्रेस और आप के बीच गठबंधन होगा, तो सिब्बल ने कहा कि मैं नहीं जानता। इस बारे में फैसला पार्टी को करना है। गठबंधन को लेकर पार्टी में दो राय है। उन्होंने कहा कि गठबंधन हो या नहीं हो, मैं चांदनी चौक से निश्चित तौर पर चुनाव लड़ूंगा। यानी कांग्रेस पार्टी कुछ भी फैसला करे सिब्बल ने अपना फैसला कांग्रेस अध्यक्ष को सुना दिया है। अब ऊंट किस करवट बैठेगा इसका इंतजार शीघ्र ही समाप्त हो जाएगा।
इधर भाजपा खेमे में इससे उलट सुर सुनने के मिल रहा है। पार्टी की वरिष्ठ नेता और केंद्रीय मंत्री उमा भारती ने शुक्रवार को कहा है कि वह आगामी लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेंगी क्योंकि उनकी मई से 18 माह तक तीर्थयात्रा पर जाने की योजना है। उमा ने इन खबरों को खारिज कर दिया कि वह झांसी से नहीं बल्कि किसी सुरक्षित सीट से लड़ना चाहती हैं।
उमा भारती ने कहा है कि उन्होंने 2016 में ही तय कर लिया था कि वह इस बार आम चुनाव चुनाव नहीं लड़ेंगी। उन्होंने कहा है कि मैंने 2016 में कहा था कि मैं चुनाव नहीं लड़ूंगी क्योंकि मुझे गंगा के तटों पर बसे तीर्थस्थानों पर जाना है। अगर मैं चुनाव लड़ती तो मैं झांसी से ही लड़ती। मैं अपना निर्वाचन क्षेत्र कभी नहीं बदल सकती। वहां के लोगों को मुझ पर गर्व है और वह मुझे अपनी बेटी जैसा मानते हैं।
उमा भारती के इस बयान को देश के मतदाता और झांसी संसदीय क्षेत्र के लोग भी बड़ी आसानी से समझ सकते हैं की उनके कदम लोकसभा चुनाव लड़ने से क्यों ठिठक रहे हैं। उन्होंने लगभग डेढ़ साल पहले से ही यह चाल चलनी शुरू कर दी थी। एक पत्र के माध्यम से भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को यह जताना कि वे इस बार लोकसभा चुनाव नहीं लड़ना चाहती हैं और इस पत्र को सार्वजनिक भी कर देना स्पष्टतः अपने आप में सोची समझी रणनीति का हिस्सा था । अब क्योंकि एक केंद्रीय मंत्री के रूप में और अपने संसदीय क्षेत्र के प्रतिनिधि के रूप में भी इनका परफॉर्मेंस निम्न स्तरीय रहा है । जो जिम्मेदारी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन्हें दी उस पर यह खरे नहीं उतर पाई। इसी कारण से इनसे गंगा स्वच्छता परियोजना छीन ली गयी और इसे मंत्रिमंडल के सबसे प्रभावी सदस्य नितिन गडकरी को दे दिया गया। संभव है इस बात से भी यह आहत हों और अपनी खींझ इस प्रकार से निकालने की कोशिश कर रही हैं।
इसके अलावा यह भी चर्चा में है कि उमा भारती को आशंका है कि पार्टी इस बार उन्हें टिकट नहीं देकर उनकी राजनीतिक हैसियत बता सकती है तो इसलिए इस किरकिरी से बचने के लिए भी पहले से ही खुद चुनाव नहीं लड़ने का राग अलापने लगी। साथ ही यह भी तर्क दिया जा रहा है कि अगर खुद ना खासते पार्टी ने स्थिति की संवेदनशीलता को समझते हुए उनकी उपयोगिता के मद्देनजर टिकट पुनः दे दिया तो वे मतदाताओं को यह समझाने की कोशिश करेंगे कि मैंने तो राजनीति से अलग होने का ऐलान कर दिया था । मेरा कोई राजनीतिक स्वार्थ नहीं था। मैं सत्ता लोलुप नहीं हूं । मैंने पार्टी से टिकट नहीं मांगा था। फिर भी पार्टी ने मुझे टिकट दिया है और आदेश दिया कि आप चुनाव लड़ो । ऐसे में चुनाव लड़ना पार्टी का आदेश मानना मेरे लिए आवश्यक था । उन्हें लगता है कि शायद इस तर्क के सहारे इस बार लोकसभा चुनाव की बैतरणी को पार कर जाएंगे। हालांकि जिस बुंदेलखंड के झांसी संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करती है वहां के मतदाताओं का उनके प्रति रुझान काफी कम हो गया है। वहां के स्थानीय भाजपा नेताओं में भी इनके प्रति विलगाव की खबरें आती रहीं है । पार्टी के कुछ स्थानीय नेता तो इनका खुलकर विरोध कर रहे हैं जबकि उत्तर प्रदेश भाजपा के कई प्रमुख नेता इनकी कार्यशैली से खिन्न हैं और इसकी शिकायत केंद्रीय नेतृत्व से भी कई बार कर चुके हैं । इन सारी परिस्थितियों का करते हुए लंबे अर्से से राजनीति कर रही उमा भारती ने स्वयं ही चुनावी सक्रियता से एक बार इंटरवल लेने का ऐलान कर दिया है। हालांकि वे अब भी यह कहने से नहीं चूक रही है कि वे अभी 60 वर्ष की नहीं हुई अभी तो काफी समय है और अगला चुनाव 2024 का वह जरूर लड़ना चाहेंगी। इससे सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि उनके मन में क्या चल रहा है और जनता उनकी इस मनःस्थिति को भांप कर ही ईवीएम का बटन दबाएगी चाहे उनका तर्क जो भी हो क्योंकि जनता सब जानती है।