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चण्डीगढ़, 20 नवंबर- श्री कपाल मोचन-श्री आदि बद्री मेेले में इस वर्ष लगभग 7 लाख यात्रियों की आने की संभावना है। पांच दिनों तक लगने वाले इस मेले में श्रद्घालुओं की सुविधा व सुरक्षा के लिए जिला प्रशासन, पुलिस प्रशासन व अन्य विभागों द्वारा व्यापक प्रबन्ध किए गए हैं। मेले में राज्य सरकार की चार वर्ष की विकासात्मक गतिविधियों पर आधारित प्रदर्शनी भी लगाई गई है, जिसमें लगभग 40 स्टाल हैं।
एक सरकारी प्रवक्ता ने आज यह जानकारी देते हुए बताया कि पूरे मेला क्षेत्र को 4 सैक्टरों में बांटा गया है और तीनों सरोवरों में नौकाओं की व्यवस्था की गई है। कपाल मोचन मेला को पोलीथीन मुक्त रखा जाएगा व पर्यावरण सुरक्षा के विशेष प्रबंध किए गए हैं। इसके साथ-साथ श्रद्घालुओं को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध करवाने के विशेष प्रबंध किए गए हैं।
महर्षि वेद व्यास की कर्म स्थली बिलासपुर में हर वर्ष कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर आयोजित होने वाला धार्मिक एवं ऐतिहासिक श्री कपाल मोचन- श्री आदि बद्री मेला एक ऐसा अनोखा मेला है जिसमें सभी धर्मों के श्रद्धालु आते हैं। इससे लोगों में आपसी भाईचारा व सद्भावना बढ़ती है। कपाल मोचन मेले का आयोजन प्राचीन समय से हो रहा है और इसकी ऐतिहासिक प्रासंगिकता है।
उन्होंने बताया कि ऋषि-मुनियों, पीर-पैगम्बरों तथा तपस्वियों की भूमि भारत वर्ष में अनेकों त्योहारों एवं मेलों का आयोजन होता है। श्रद्धालु सच्चे मन, ईमानदारी व मनोकामना की पूर्ति की इच्छा से श्री कपाल मोचन-श्री आदि बद्री मेला में आते हैं। उन्होंने बताया कि इसी वजह से हजारों वर्ष बीत जाने के बाद भी श्रद्धालु उतने ही उत्साह से आज भी यहां आते हैं। कपाल मोचन का अर्थ पापों के विमोचन से है।
उन्होंने बताया कि श्री कपाल मोचन-श्री आदि बद्री मेला उत्तरी भारत का सबसे बड़ा मेला है। यह महर्षि वेद व्यास की कर्मस्थली और एक महान ऐतिहासिक तीर्थ है जहां पर भगवान श्री रामचन्द्र, श्री कृष्ण व शिव-महादेव के साथ-साथ श्री गुरु नानक देव जी तथा श्री गुरु गोबिंद सिंह जी भी पधारे थे। उन्होंने बताया कि इस भूमि का एक हिस्सा जिसका नामकरण हरि के नाम पर हुआ है उसे हरियाणा कहा जाता है और हरियाणा में बिलासपुर की धरती को महर्षि व्यास की कर्म स्थली कहा जाता है। किसी जमाने में यह स्थान ऋषि-मुनियों की तपो स्थली के रूप में जाना जाता था। यह भी माना जाता है कि यहीं पर ब्रह्मïा, विष्णु और महेश ने इक_े होकर एक यज्ञ रचाया था। शास्त्रों और अब विज्ञान की खोज के अनुसार सरस्वती की उद्गम स्थली भी यही है।
प्रवक्ता ने बताया कि यह मेला राष्ट्रीय एकता का प्रतीक है, जिसमें देश के कोने-कोने विशेषकर पंजाब से श्रद्धालु भाग ले रहे हैं। तीर्थराज कपाल मोचन में हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, हिमाचल प्रदेश व अन्य प्रदेशों से भी श्रद्घालु आते हैं। हिमाचल प्रदेश के जिला सिरमौर के रेणुका जी मेले से भी यात्री तीर्थराज कपाल मोचन में आते हैं और यहां से आदि बद्री क्षेत्र में धार्मिक मंङ्क्षदरों व माता श्री मन्त्रा देवी के दर्शनों के लिए भी जाते हंै।