नई दिल्ली। व्यभिचार पर सुप्रीम कोर्ट ने आज अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि पति का पत्नी पर मालिकाना हक नहीं है। आईपीसी की धारा-497 को खत्म करते हुए कोर्ट ने कहा कि विवाहेतर संबंध अपराध नहीं हैं। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा फैसला सुनाते हुए कहा कि लोकतंत्र की खूबी ही मैं, तुम और हम की है। उन्होंने कहा कि महिलाओं को हमेशा ही सम्मान मिलना चाहिए। मिश्रा ने कहा कि महिला की गरिमा सबसे ऊपर है।
महिला के साथ असम्मान का व्यवहार अंसवैधानिक है। महिला के सम्मान के खिलाफ आचरण गलत है और हर पुरुष को यह बात समझनी चाहिए। फैसले में कहा कि अडल्टरी तलाक का आधार हो सकता है, लेकिन यह अपराध नहीं होगा जिस पर तीन अन्य जजों ने भी सहमति जताई। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि आईपीसी की धारा 497 महिला के सम्मान के खिलाफ है। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि पति कभी भी पत्नी का मालिक नहीं हो सकता है।
सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ में जस्टिस आर.एफ. नरीमन, जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस इंदू मल्होत्रा और जस्टिस ए.एम. खानविलकर शामिल हैं। इस मामले में केंद्र पहले ही अपना हलफनामा दायर कर चुकी है। बता दें कि स्त्री-पुरुष के विवाहेतर संबंधों से जुड़ी भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा-497 पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने यह फैसला सुनाया है।
केरल के एक अनिवासी भारतीय जोसेफ साइन ने इस संबंध में याचिका दायर करके आईपीसी की धारा-497 की संवैधानिकता को चुनौती दी थी। कोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई की कि व्यभिचार अपराध की श्रेणी में आता है या नहीं। इस मामले में कोर्ट 8 अगस्त को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
सुप्रीम कोर्ट की जुबानी
? किसी पुरुष द्वारा विवाहित महिला से यौन संबंध बनाना अपराध नहीं।
? शादी के बाहर के संबंधों पर दोनों पर पति और पत्नी का बराबर अधिकार।
? एडल्टरी चीन, जापान, ब्राजील मेंअपराध नहीं है। कई देशों ने व्यभिचार को रद्द कर दिया है। यह पूर्णता निजता का मामला है।
? शादी के बाद संबंध अपराध नहीं हैं। धारा 497 मनमानी का अधिकार देती है।
? सुप्रीम कोर्ट ने अडल्टरी को अपराध के दायरे से बाहर किया, आईपीसी की धारा 497 को खारिज किया।
? महिला से असम्मान का व्यवहार असंवैधानिक। फ जस्टिस और जस्टिस खानविलकर ने अडल्टरी को अपराध के दायरे से बाहर किया।एड्रल्ट्री अपराध नहीं हो सकता है।
? आईपीसी 497 महिला के सम्मान के खिलाफ। महिला और पुरूष को प्राप्त हैं समान अधिकार।
? महिला के सम्मान के खिलाफ आचरण गलत है। पति महिला का मालिक नहीं है बल्कि महिला की गरिमा सबसे ऊपर है।
प्रधान न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि महिला और पुरुष दोनों में से कोई भी यदि दास की तरह व्यवहार करता है तो यह गलत है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केवल अडल्टरी (व्यभिचार) अपने आप में अपराध नहीं हो सकता जब तक कि यह आत्महत्या (धारा 306) के लिए नहीं उकसाता। मामले की सुनवाई करने वाले पांचों जजों ने अडल्टरी को अपराध नहीं माना है।
आईपीसी की धारा 497 पति की मौन सहमति अथवा उसकी सहमति के बिना एक शादी शुदा महिला से शारीरिक संबंध बनाने पर पुरुष को दंडित करती है। अडल्टरी से संबंधित इस धारा को पांचों जजों ने खारिज कर दिया। सीजेआई दीपक मिश्रा और जस्टिस खानविलकर ने कहा कि अडल्टरी तलाक का अपराध बन सकता है लेकिन यह अपराध नहीं है।
प्रधान न्यायाधीश और जस्टिस खानविलकर ने कहा कि केवल अडल्टरी को अपराध नहीं माना जा सकता लेकिन यदि कोई पत्नी अपने जीवनसाथी के व्यभिचार के चलते आत्महत्या करती है और इससे जुड़े साक्ष्य मिलते हैं तो यह अपराध (आत्महत्या के लिए उकसाने) की श्रेणी में आएगा।
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने अडल्टरी पर फैसला सुनाते हुए कहा कि संविधान की खूबसूरती है कि उसमें ‘मैं, मेरा और तुम’ सभी शामिल हैं।
जस्टिस आरएफ नरीमन ने प्रधान न्यायाधीश और जस्टिस खानविलकर के फैसले से सहमति जताई और कहा कि धारा 497 प्राचीन है। जस्टिस नरीमन ने कहा कि यह धारा असंवैधानिक है और इसे खारिज किया जाना चाहिए। सुप्रीम 158 साल पुरानी इस धारा को खारिज करने का फैसला सुनाया।
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने अडल्टरी अपराध को गुजरे जमाने की बात मानी और कहा कि धारा 497 महिला के आत्मसम्मान एवं गरिमा को ठेस पहुंचाती है। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि यह धारा महिला को पति के गुलाम की तरह देखती है।
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि अडल्टरी कानून भेद पैदा करने वाला है। धारा 497 महिला को उसकी पसंद के अनुसार सेक्स करने से रोकती है इसलिए यह असंवैधानिक है। उन्होंने कहा कि महिला को शादी के बाद उसकी पसंद से सेक्स करने से वंचित नहीं किया जा सकता है।
संवैधानिक पीठ में शामिल एक मात्र महिला जज इंदु मल्होत्रा ने भी अडल्टरी को अपराध घोषित करने वाली धारा 497 को असंवैधानिक माना।