रमजान के महिने में शब-ए-कद्र की तलाश में हजारों लोग एतिकाफ में बैठते हैं

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शब-ए-कद्र की एक रात का सवाब एक हजार महिनों की रातों से ज्यादा है।

आज से मस्जिदों में एतिकाफ में बेठेगें हजारों लोग

 

यूनुस अलवी

मेवात: राजनीति से दूर और बेमतलब की बातों से परे तथा दुनियावी और परिवारिक परेशानियों को त्याग कर सिर्फ अल्लाह ताला को राजी करने के मकसद से  मस्जिद के एक कौने में बैठकर दस दिनों तक शब-ए-कद्र की तलाश में अल्लाह की इबादत करने में हजारों लोग रमजान के महिने में एतिकाफ में बेठते है। एतिकाफ में रमजान माह के आखरी असरा यानि 20वें रमजान की शाम को सूरज छिपने से पहले बेठा जाता है और ईद का चांद देखने के बाद ही एतिकाफ से लोग उठते हैं। शुक्रवार को 20वां रोजा है। इसलिये 16 जून से मेवात की सैंकडों मस्जिदों में लोग एतिकाफ में बेठने की तैयारी कर चुके हैं।
 
   एतिकाफ का अनुसरण करने वाले लोगों को लगातार दस दिनों तक मस्जिद में रहकर ही खाना-पीना, उठना-बेठना, सोना-पडता है। सिर्फ दीनी बातों के अलावा कोई भी दुनियावी, राजनीति, गाली-गलोंच, चुगली-चांटी नहीं कर सकता यहां तक की अगर किसी मस्जिद में शौचालय नहीं है तो वह केवल शौच के लिये बहार जा सकता है। उस दौरान वह किसी से बात नहीं कर सकता अगर कोई व्यक्ति गलती से बोल भी पडा तो उसका एतिकाफ टूट जाऐगा जिसका वह बहुत बडा गुनाहगार होगा। 
 
     शब-ए-कद्र का मतलब है कि खास रात और एतिकाफ का मतलब है कि दुनियादारी छोडकर अल्लाह के दरवाजे पर लगातार दस दिन तक पड जाना व अल्लाह को राजी करना, जन्नत की तलब करना, जहन्नुम की आग से बचने की दुआ करना, मशहूर है कि अपने घर आने वाले मेहमान की हर कोई कद्र करता है, उसी तरह अल्लाह के घर मस्जिद में दस दिनों तक एतिकाफ करने वालों के गुनाहों को अल्लाह मुआफ कर देता है और उसकी मुरादे पूरी करता है। रमजान माह का आखरी असरा यानि 20वें रमजान के बाद के दस दिन जहन्नुम से खुलासी के माने जाते हैं।
 
         आलिमों का कहना है कि रमजान माह के बीसवें रोजे की रात से लेकर 30 वें रोजे की रात तक यानी की पूरे दस दिन की रातों में शब-ए-कद्र  की तलाश करें, पूरी रात जागकर ही अल्लाह की इबादत कर उसे पाया जा सकता है। मोलाना शेर मोहम्मद अमीनी का कहना है कि शब-ए-कद्र की रात जमीन और आसमानों में मौजूद हर चीज अल्लाह को सजदा करती है। यानि खडे पेड भी जमीन पर झुक जाते हैं। इस रात में समुंद्र का खारा पानी मीठा हो जाता है। यह रात पाने वालो के गुनाह मांफ हो जाते हैं। जो भी मांगता है, वह कबूल होता है। शब-ए-कद्र रात के समय चंद लम्हों के लिये आती है। अगर किसी व्यक्ति को शब-ए-कद्र नसीब हो जाऐ तो उसको एक रात का सवाब एक हजार महिनों की रातों से ज्यादा मिलता है। अगर किसी को ना मिले तब भी उसको सवाब तो मिलेगा ही।
 
    जमियत उलमा हिंद के नोर्थ जोन के सदर एंव मोलाना याहया करीमी का कहना है कि अल्लाहताला ने रमजान माह को तीन हिस्सों में बांटा है। पहले दस दिन रहमत के, दूसरे दस दिन मगफिरत के तथा आखरी दस दिन जहन्नुम से खुलासी के होते है। उन्होने बताया गांव की हर मस्जिद में कम से कम एक आदमी का एतिकाफ में बैठना जरूरी हैं न बैठने पर पूरा गांव गुनाहगार होगा। एक मस्जिद में कितने भी आदमी एतिकाफ में बैठ सकते हैं। उन्होने बताया कि एतिकाफ में बैठने का सबसे ज्यादा सवाब काबा शरीफ यानि  मक्का में है। उसके बाद मस्जिद नबी मदीना में उसके बाद गंाव या शहर की जामा मस्जिद में फिर गांव या अपने मोहल्लें की मस्जिद में बैठने पर मिलता है। 

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