“उपहार अग्निकांड मामले में गोपाल अंसल को जेल जाना होगा”

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सुप्रीम कोर्ट ने रियल एस्टेट कारोबारी की रियायत सम्बन्धी याचिका खारिज की 

नई दिल्ली : उपहार अग्निकांड मामले में सुप्रीम कोर्ट ने रियल एस्टेट कारोबारी गोपाल अंसल की वह याचिका आज खारिज कर दी जिसमें उन्होंने अपने भाई सुशील अंसल की तरह सजा में रियायत देने का अनुरोध किया था. गोपाल अंसल को अब एक साल की सजा में से बची हुई अवधि जेल में भुगतने के लिये समर्पण करना होगा. न्यायमूर्ति रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति कुरियन जोसफ और न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने कहा, ‘गोपाल अंसल की याचिका खारिज की जाती है.’न्यायमूर्ति गोगोई की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय खंडपीठ ने नौ फरवरी को बहुमत के फैसले में उम्र संबंधी जटिलताओं को देखते हुए 76 वर्षीय सुशील अंसल को राहत देते हुए उनकी सजा जेल में बिताई गयी अवधि तक सीमित कर दी थी जबकि गोपाल अंसल को बाकी बची सजा काटने के लिए चार हफ्ते के अंदर आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया था.

इसके बाद गोपाल अंसल ने उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर कर समानता के आधार पर फैसले में सुधार का अनुरोध किया था. उन्होंने कहा कि वह 69 साल के हैं और उन्हें जेल भेजा गया तो उनके स्वास्थ्य की अपूर्णीय क्षति होगी. पीठ के याचिका खारिज करने के बाद गोपाल अंसल की तरफ से पेश वरिष्ठ वरिष्ठ वकील राम जेठमलानी ने न्यायालय को बताया कि नौ फरवरी के आदेश के मुताबिक गोपाल को चार हफ्तों के अंदर जेल की बची हुई सजा काटने के लिए आत्मसमर्पण करना था. यह अवधि आज खत्म हो रही है.
जेठमलानी ने पीठ से अनुरोध किया कि गोपाल अंसल को आत्मसमर्पण करने के लिए कुछ वक्त दिया जाए. पीठ ने कहा, ‘गोपाल अंसल सजा की बाकी अवधि को पूरा करने के लिए 20 मार्च को समर्पण करेंगे.’ उपहार सिनेमाहॉल में 13 जून 1997 को हिंदी फिल्म ‘बॉर्डर’ के प्रदर्शन के दौरान आग लगने की वजह से 59 लोगों की मौत हो गई थी.
इससे पहले, असोसिएशन ऑफ विक्टिम ऑफ उपहार ट्रेजडी (एवीयूटी) ने सुशील अंसल की सजा को जेल में बिताई गयी अवधि तक सीमित करने के शींर्ष अदालत के आदेश में सुधार का अनुरोध किया था. नीलम कृष्णामूर्ति के नेतृत्व वाले इस संगठन ने याचिकाह में कहा था कि सुशील और गोपाल अंसल दोनों ही स्वस्थ हैं और उन्हें बाकी बची सजा काटने के लिए जेल भेजा जाना चाहिए.
असोसिएशन ने अपनी याचिका में कहा, ‘सुशील अंसल द्वारा अपील या पुनर्विचार यचिकाओं पर सुनवाई के दौरान कोई भी ऐसे साक्ष्य या सामग्री अदालत के समक्ष नहीं रखी गईं जो ये संकेत दें कि उन्हें किसी तरह की चिकित्सकीय जटिलताएं हैं.’ पीड़ितों ने गोपाल अंसल की याचिका का भी विरोध करते हुए कहा था कि सीबीआई और एवीयूटी की पुनर्विचार याचिकाओं पर फैसला पहले ही किया जा चुका है और पुनर्विचार के बाद आये निर्णय पर पुनर्विचार नहीं किया जा सकता है.

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