कोआर्डिनेशन की कमी और अनुभवहीनता ने विरोध मार्च को फीका कर दिया
विरोध मार्च करने ऐसे पहुंचे कि अनपढ़ों की जमात हो
न लिखित ज्ञापन और न ही ऍफ़आईआर की प्रति
डी सी पी दीपक गहलावत ने कोरा आशवासन देकर निपटा दिया
गुरुग्राम : पत्रकार संदीप रतन मामले में आज पुलिस ने गुरुग्राम के पत्रकारों को झुनझुना थमा कर वापस कर दिया. विरोध प्रदर्शन करने पहुंचे दर्जनों कलमकारों व मीडियाकर्मियों में कोआर्डिनेशन और विश्वास का सर्वथा अभाव दिखा जबकि बेहद गंभीर मामले को कुछ कनिष्ठ पत्रकारों द्वारा पूरी अनुभवहीनता के साथ डील करने का नजारा स्पष्ट दिखा. इसलिए उन्हें न तो पुलिस अधिकारी ने सम्मान के साथ बातचीत के लिए अपने कार्यालय में आमंत्रित किया और न ही मौखिक मांगों को अपेक्षित तवज्जो दी. दूसरों की आवाज सदा बुलंद करने का ठेका लेने वालों की जमात को पुलिस आयुक्त कार्यालय के बाहर ही डी सी पी मुख्यालय, दीपक गहलावत ने इस तरह कोरा आशवासन देकर आसानी से निपटा दिया जैसे कोई दबा कुचला परिवार अपना पीला राशन कार्ड बनवाने की गुहार लगाने आया हो. आलम यह था कि नेतृत्व देने वाले राष्ट्रपति की तरह निर्धारित समय के थोड़े बाद पहुंचे और वह भी खल्हत्था (खाली हाथ ).
पत्रकारिता जगत की विडम्बना कहें या दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति गुरुग्राम में राष्ट्रीय हिंदी दैनिक अखबार में कार्यरत पत्रकार संदीप रतन पिछले कई दिनों से न्याय की उम्मीद में गुरुग्राम पुलिस के कार्यालय की ख़ाक छान रहा है. उन पर एक पहलवान के सिरफिरे बेटे व उनकी पत्नी ने नाहक जानलेवा हमला बोल कर उन्हें बुरी तरह घायल कर दिया था. जानकारी मिलने और शिकायत के आधार पर पुलिस ने मामला तो दर्ज कर लिया लेकिन बकौल संदीप रतन वारदात के बाद पहुंची सेक्टर पचास थाना पुलिस टीम ने आरोपी चालक और मारपीट करने वाली महिला की पहचान मां बेटे के रूप में कर बेटे को तो गिरफ्तार कर लिया था। वही महिला और अन्य आरोपियों के नाम आने के बाद भी पुलिस कोताही बरत रही है। थानों में पंचायतों के दौर चल रहे हैं। आरोपी को पकड़ने के बजाय जांच अधिकारी सुलह के लिए अधिक प्रयास करते नजर आते हैं। वहीं पीड़ित पक्ष चाहता है कि कानूनी कार्रवाई हो लेकिन दूसरे किसी आरोपी को हाईटेक पुलिस ने अब तक गिरफ्तार नहीं किया है. मामला दर्ज होने के बाद अखबार, वेब पोर्टल और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में खबरें प्रसारित हो गयीं लेकिन असर नक्कार खाने की तूती की तरह रहा.
इस हालात के मद्दे नजर पीड़ित पक्ष के कुछ साथियों ने स्वयं ही सभी पत्रकारों को पुलिस मुख्यालय पर मंगलवार को एकत्रित होने की सूचना दे दी. इस मद में न तो कोई बैठक न ही विचार विमर्श, बल्कि रणनीतिविहीन कदम उठाते हुए सभी को पुलिस आयुक्त कार्यालय पर आमंत्रित कर दिया. पत्रकारों की अस्मिता का सवाल था इसलिए पत्रकार अनिल भारद्वाज व्हाट्स एप मेसेज के निवेदन पर सभी बेहिचक वहां समय से पहुँच गए. बताया तो गया था कि पुलिस आयुक्त से मिल कर विरोध जताएंगे और दो टूक शब्दों में पूछेंगे कि अब तक इस मामले में कोई ठोस कार्रवाई क्यों नहीं की गयी है.
लेकिन वहां पहुँचने पर बताया गया कि पुलिस आयुक्त मुख्यालय से बाहर हैं और जिन पत्रकारों ने इस विरोध मार्च का निर्णय लिया था उन्होंने निर्णय सुना दिया कि अब डीसीपी मुख्यालय से मिलेंगे. मिसमेनेजमेंट का यह नायाब उदाहरन देखने को मिला क्योंकि वहां पहुँचने से पूर्व न तो उन्होंने यह जानकारी ली कि पुलिस आयुक्त उपलब्ध हैं या नहीं और न ही पुलिस मुख्यालय में मौजूद अधकारी को इस बात की जानकारी दी कि गुरुग्राम महानगर के सभी पत्रकार पुलिस आयुक्त से मिलना चाहते हैं.
यहाँ बताना यह भी जरुरी है कि संदीप रतन पर हमले की घटना से सभी पत्रकार इस कदर आहात हैं कि पहली बार गुरुग्राम के प्रिंट, वेब और इलेक्ट्रॉनिक तीनों माध्यमों के प्रतिनिधि इतनी बड़ी संख्या में विरोध जताने पहुंचे थे. लेकिन इस मजबूत स्थिति को विरोध का काल देने वालों ने इस कदर हल्का कर दिया कि शायद ही फिर कभी ऐसी एकता का प्रदर्शन करने पहुंचेंगे.
लगभग 11.30 बजे दिन तक उनका इन्तजार होता रहा जिनके नेतृत्व में इसका आयोजन किया गया था. एनयूजे के हरियाणा अध्यक्ष भूपेन्द्र चौधरी पहुंचे मगर खाली हाथ. दैनिक जागरण के पत्रकार आदित्य राज और उनके अन्य साथी भी पहुंचे मगर मौखिक बात करने. इनमें से किसी के पास ऍफ़ आई आर की प्रति भी नहीं थी और न ही कोई मांग सम्बन्धी ज्ञापन. दूसरों को ज्ञान बाँटने वालों को इतनी भी समझ नहीं थी कि किसी सरकारी अधिकारी से अपनी आधिकारिक मांग रखने के लिए हमें लिखित तैयारी करनी चाहिए थी. घोर अनुभवहीनता का परिचय देते हुए आदित्य राज ने साथियों को घटना की जानकारी देने की कोशिश की लेकिन तभी डीसीपी मुख्यालय दीपक अहलावत वहां विन बुलाये मेहमान की तरह आ धमके और आश्वासन का झुनझुना थमा गए. यहां तक कि उनसे जब यह कहा गया कि घटना की स्थिति, साक्ष्य व क्रम के आधार पर दर्ज ऍफ़ आई आर में कुछ आवश्यक धारा लगाने की जरूरत है तो उन्होंने तत्काल वहीँ टका सा जवाब देकर निरुत्तर कर दिया. किसी में यह क्षमता नहीं दिखी कि डीसीपी को अपने तर्क व तथ्य के आधार पर निर्णय बदलने को मजबूर किया जाये. कारन स्पष्ट था अनुभव की कमी और तैयारी का अभाव.
पुलिस आयुक्त से मिल कर क्या मांग करनी है ? किन बिन्दुओं पर बल देना है ? इस मद में नेतृत्व करने वालों की कोई तैयारी नहीं थी. ऐसे पहुंचे थे जैसे कोई अनोपचारिक बात करने आये हों. अगर इन्हें समझ नहीं थी तो इन्होने इस बात की भी आवश्यकता नहीं समझी कि वहां मौजूद कुछ वरिष्ठ पत्रकारों से विमर्श कर उन्हें ही दबाव बनाने की कमान दे दें. यहाँ तक कि इनकी पुलिस अधिकारी से क्या बात हुई, उन्होंने क्या आश्वासन दिया ? इसकी भी जानकारी साथियों को तत्काल देने की आवश्यकता इन्होने महसूस नहीं की.
लोकतंत्र के चौथे खम्भे को डीसीपी साहब ने मुश्किल से कुछ मिनटों में ही निपटा दिया और सभी खुश होकर हाथ मिला मिला कर वहां से खिसक गए. सभी पत्रकार असंगठित, लाचार मजदूर की तरह अपने काम पर चले गए. इतनी बेमरव्व्त तो शायद कभी देखने को नहीं मिली होगी जो मंगलवार को यहाँ के सवाददाताओं ने देखी. सभी इस हालात पर बिदकते रहे, फुसफुसाते रहे, लेकिन आज के विरोध मार्च के आयोजकों के सामने इन कमियों को उजागर नहीं किया.
जाहिर है गुरुग्राम महानगर के पत्रकारों को इतनी बेचारगी पहली बार देखने को मिली. एकता का प्रदर्शन करने सभी इस बात को दरकिनार कर पहुंचे थे कि नेतृत्व एनयूजे का है लेकिन नतीजा शून्य रहा. आमंत्रित करने वालों में न तो घटना के प्रति रोष दिखा और न ही न्याय के लिए संघर्ष करने का जज्बा. दूसरों को सदा नसीहत देने वाले वहां हथियार विहीन पहुंचे और उनसे न्याय की उम्मीद करते दिखे जो ऐसी निर्बल जमात को रोज ही कभी पुचकार कर तो कभी डांट फटकार कर अपने दरबाजे से निराश कर वापस करने में माहिर हैं.
पत्रकारों को इस बात का भान ही नहीं रहा कि इसी हरियाणा के गांवों के लोग जब किसी आरोपी के भी पक्ष में गोलबंद होकर आते हैं तो पुलिस को नाकों चने चबवा देते हैं और अपनी बातें मनवा कर अपने कदम उठाते हैं. यहाँ तक कि हत्या के आरोपियों को निर्दोष बता कर उन्हें हाजत से छुडा ले जाते हैं. हम उनके इस दुस्साहस को बड़े चाव से छापते हैं की अमुख गाँव ने अमुख थाने का या पुलिस मुख्यालय का घेराव कर अपनी बात मनवाई. समझ के अभाव में आज के आयोजकों ने पत्रकारों की ताकत को उन ग्रामीणों से भी कमतर होते दिखाया.
इस अप्रत्याशित घटना के लगभग डेढ़ घंटे बाद एनयूजे के राष्ट्रीय महासचिव ,संदीप मालिक पुलिस मुख्यालय पहुंचे . तब तक तो सभी अपने अपने केमरे व कलम-कापी लेकर खबर की खोज में प्रस्थान कर चुके थे. उन्होंने घायल पत्रकार संदीप रतन को अस्पताल से वहां बुलवा लिया और अब गुरुग्राम पश्चिम के पुलिस उपायुक्त दीपक सहारण से मिल कर मामले पर कार्रवाई की मांग करने का निर्णय लिया गया. लेकिन दुर्भाग्य की बात यह रही कि तब भी इनके पास न तो शिकायत की प्रति और न ही लिखित मांग पत्र/ज्ञापन था. एनयूजे के राष्ट्रीय महासचिव संदीप मालिक ने हरियाणा ईकाई के अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी से जब ज्ञापन की कापी मांगी तो वे बँगलें झाँकने लगे. दूसरी तरफ इस समय कोई पत्रकार यहाँ आने को तैयार नहीं हुआ. सभी इधर उधर फोन घुमाते रहे . घायल संदीप वहां बाहर खड़ा रहा. यहाँ तक कि संदीप के साथ उसी अखबार में काम करने वाले उनके साथी पत्रकार भी दोबारा उनका साथ देने नहीं पहुंचे.
आनन् फानन में हस्त लिखित ज्ञापन तैयार कर मलिक ने अपने चार-पांच पदाधिकारियों को साथ लिया और गुरुग्राम पश्चिम के पुलिस उपायुक्त दीपक सहारण के कार्यालय जाकर उन्हें ज्ञापन देने की औपचारिकता पूरी की व चार दिनों का अल्टीमेटम देने की खबर जारी कर दी. इस खबर से भी वहां दो घंटे इन्तजार करने वाले अधिकतर पत्रकारों के नाम गायब हैं. बहरहाल रिजल्ट कुछ भी निकले कुछ लोगों की बचकानी हरकत ने पत्रकारों की आज बुरी तरह बेमतलब फजीहत कराई और रिजल्ट ढाक के तीन पात .