17 साल की लड़ाई के बाद थलसेना में महिलाओं को पुरुष के बराबर का हक मिला

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नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने अंततः 17 साल की कानूनी लड़ाई के बाद थलसेना में महिलाओं को पुरुष सैनिक अधिकारियों के बराबर का हक दिलाने का रास्ता साफ कर दिया। अदालत ने सोमवार को दिए ऐतिहासिक  फैसले में सभी महिला अफसरों को तीन महीने के अंदर आर्मी में स्थाई कमीशन देने को कहा है जो इसकी मांग करेंगी. अदालत ने केंद्र की दलील को पूरी तरह ठुकरा दिया. फैसला सुनाते हुए जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने शारीरिक क्षमता और सामाजिक मान्यता के तर्क को नकारते हुए इसे निराशाजनक बताया।

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद अब सेना में महिलाओं को पुरुष सैनिक अधिकारी के बराबर का अधिकार मिल गया है। उल्लेखनीय है कि अभी तक आर्मी में 14 साल तक शॉर्ट सर्विस कमीशन (एसएससी) में सेवा दे चुके पुरुष सैनिकों को ही स्थाई कमीशन का विकल्प मिल रहा था. महिला सैनिक अधिकारियों को यह हक नहीं था। दूसरी तरफ वायुसेना और नौसेना में महिला अफसरों को स्थाई कमीशन देने का प्रावधान पहले से ही है.

सुप्रीम कोर्ट का फैसला ?

अदालत ने फैसले में कहा कि शॉर्ट सर्विस कमीशन के तहत आने वाली सभी महिला अधिकारी स्थाई कमीशन की हकदार होंगी। 14 साल से कम और उससे ज्यादा सेवाएं दे चुकीं महिला अफसरों को परमानेंट कमीशन का मौका देना होगा ।

दूसरी तरफ अदालत ने महिलाओं को कॉम्बैट में भेजने का फैसला सरकार और सेना पर छोड़ दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने जंग में महिलाओं की तैनाती को नीतिगत मामला बताया है। इसलिए इस सरकार ही निर्णय लेगी .  फैसले में यह भी कहा गया है कि थलसेना में महिला अफसरों को कमांड पोस्टिंग नहीं देना समानता के अधिकार का उल्लंघन है। महिलाओं को कमांड पोस्टिंग का अधिकार देना चाहिए .

गौरतलब है कि बबीता पुनिया महिला वकील  और 9 महिला अफसरों ने दिल्ली हाईकोर्ट में इस मुद्दे पर अलग-अलग याचिकाएं दायर कीं थीं । वर्ष 2010 में दिल्ली हाईकोर्ट ने इस मामले में फैसला सुनाया और महिलाओं को सेना में स्थाई कमीशन देने का आदेश दिया। अपने फैसले में हाईकोर्ट ने कहा था कि हम महिलाओं पर कोई एहसान नहीं कर रहे, हम उन्हें उनके संवैधानिक अधिकार दिला रहे हैं.

 

मामले में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियां :

– केंद्र ने महिला अफसरों को स्थाई कमीशन न देकर पूर्वाग्रह दिखाया है.

–  शारीरिक क्षमता और सामाजिक मान्यता वाली दलील  कतई मंजूर नहीं .

– सरकार को सशस्त्र बलों में लैंगिक आधार पर भेदभाव खत्म करने के लिए मानसिकता बदलने की जरूरत है.

– सेना में महिलाओं की क्षमता पर संदेह करना महिला और सेना का अपमान.

केंद्र निष्क्रिय रहा :

हाईकोर्ट के फैसले के नौ साल बाद सरकार ने फरवरी 2019 में सेना के 10 विभागों में महिला अफसरों को स्थाई कमीशन देने की नीति बनाई, लेकिन मार्च 2019 के बाद से सर्विस में आने वाली महिला अफसरों को ही इसका फायदा देने का निर्णय किया। इस तरह कानूनी लड़ाई लड़ने वाली महिलाएं स्थाई कमीशन पाने से वंचित रह गईं.

वर्तमान स्थिति ?

थलसेना में महिलाएं शॉर्ट सर्विस कमीशन के दौरान आर्मी सर्विस कोर, ऑर्डनेंस, एजुकेशन कोर, जज एडवोकेट जनरल, इंजीनियर, सिग्नल, इंटेलिजेंस और इलेक्ट्रिक-मैकेनिकल इंजीनियरिंग ब्रांच में ही एंट्री पा सकती हैं। उन्हें कॉम्बैट सर्विसेस जैसे- इन्फैंट्री, आर्मर्ड, तोपखाने और मैकेनाइज्ड इन्फैंट्री में काम करने का मौका नहीं दिया जाता। हालांकि, मेडिकल कोर और नर्सिंग सर्विसेस में ये नियम लागू नहीं होते। इनमें महिलाओं को परमानेंट कमीशन मिलता है। वे लेफ्टिनेंट जनरल पद तक भी पहुंची हैं।

वायुसेना और नौसेना में महिला अफसरों को स्थाई कमीशन का विकल्प है। वायुसेना में महिलाएं कॉम्बैट रोल, जैसे- फ्लाइंग और ग्राउंड ड्यूटी में शामिल हो सकती हैं। शॉर्ट सर्विस कमीशन के तहत महिलाएं वायुसेना में ही हेलिकॉप्टर से लेकर फाइटर जेट तक उड़ा सकती हैं। नौसेना में भी महिलाएं लॉजिस्टिक्स, कानून, एयर ट्रैफिक कंट्रोल, पायलट और नेवल इंस्पेक्टर कैडर में सेवाएं दे सकती हैं।

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