अभय सिंह चौटाला के स्थगन प्रस्ताव पर क्या बोले मुख्यमंत्री मनोहर लाल ?

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विपक्ष ने विधानसभा में उठाया जाट आन्दोलन का मुद्दा 

चण्डीगढ़ :  हरियाणा के मुख्यमंत्री  मनोहर लाल जो विधानसभा में सदन के नेता भी है ने कहा कि जाट आंदोलनकारियों से सरकार खुले मन से बातचीत करने को तैयार है। आंदोलनकारी नेताओं के सुझाव पर ही मुख्य सचिव श्री डी एस ढेसी की अध्यक्षता में अधिकारियों की एक कमेटी का गठन किया गया है।  विपक्षी पार्टियों के नेताओं को भी सहयोग करना चाहिए न कि किसी के जज्बातों से खिलवाड़ करनी चाहिए, सदन के अंदर या सदन के बाहर हमारे वैचारिक मतभेद हो सकते हैं किसी पर व्यक्तिगत टिप्पणियां करने से बचना चाहिए। सरकार न्यायालय में विचाराधीन मुद्दों को छोडक़र शेष मामलों के समाधान के लिए विधानसभा की कमेटी या मंत्री समूह की उपसमिति भी गठित करने को तैयार है। 
    मुख्यमंत्री आज हरियाणा विधानसभा में चल रहे बजट सत्र के दौरान विपक्ष के नेता अभय सिंह चौटाला, विधायक, डॉ. रघवीर कादियान व निर्दलीय विधायक  जय प्रकाश द्वारा 15 अन्य विधायकों के  साथ जाट समुदाय के सदस्यों द्वारा विभिन्न स्थानों पर दिए जा रहे अनिश्चितकालीन धरनों के सम्बन्ध में सदन में दिए गए स्थगन प्रस्तावों पर अपना जवाब दे रहे थे। 
    उन्होंने सदन को अवगत करवाया कि यह कहना बिल्कुल गलत है कि सरकार आंदोलनकारियों के साथ बातचीत नहीं करना चाहती अथवा उनकी तर्कसंगत मांगों को स्वीकार नहीं करना चाहती। यह आरोप कि कुछ मंत्रियों और सत्तापक्ष के नेता साम्प्रदायिक विभाजन करने का प्रयास कर रहे हैं या आंदोलनकारियों से बातचीत न करने का दोहरा खेल खेल रहे हैं, आधारहीन, असत्य तथा मिथ्या है। वास्तव में, प्रदेश में शांति और सद्भाव का वातावरण सुनिश्चित करने के लिए सरकार ने सभी सम्भव प्रयास किए हैं।
शांतिपूर्ण ढंग से किए जा रहे धरना प्रदर्शन के लिए  सर्व समाज के लोगों का आभार व्यक्त करते हुए मुख्यमंत्री ने सदन को अवगत करवाया कि  36 बिरादरियों के भाईचारे को बनाए रखना हम सबकी प्राथमिकता होनी चाहिए। पिछले वर्ष के जाट आंदोलन और इस वर्ष के जाट आंदोलन के मंतव्य में अंतर यह है कि पिछले वर्ष आंदोलन में उपद्रवी घुस गए थे और आंदोलन हिंसक हुआ था। इस वर्ष शांतिपूर्ण ढंग से धरना प्रदर्शन पिछले एक माह से चल रहा हैंं। कानून एवं व्यवस्था की स्थिति को बनाए रखने के हर आवश्यक एहतियातिक कदम उठाए जा रहे हैं।
    उन्होंने सदन को इस बात की भी जानकारी दी कि आंदोलनकारी अब गोल-पोस्ट बदल रहे है।  पहले उनकी सात मांगे थीं, उसके बाद 17 मांगों का मांग पत्र दिया गया और अब 11 मांगों का एक और मांग-पत्र मिला है इस प्रकार अब कुल 28 मांगें शािमल हैं।    उन्होंने कहा कि समस्या का समाधान एक दिन में सम्भव नहीं है। न्यायालय द्वारा समय-समय पर निगरानी की जा रही है। उन्होंने कहा कि कल भी पंजाब एवं हरियाणा  उच्च न्यायालय में जाट आरक्षण की सुनवाई है। 
    मुख्यमंत्री ने कहा कि वर्ष 2010-2012 में भी जाट आरक्षण के दौरान मामले दर्ज हुए थे जिनमें से आज भी कई मामले लम्बित है। उन्होंने सदन को विश्वास दिलवाया कि निर्दोष  लोगों को छोड़ दिया गया है और दोषियों पर कार्यवाही की गई है। न्यायालय द्वारा न्याय प्रक्रिया के माध्यम से मामलों पर जमानत दी जा रही है। 
     मुख्यमंत्री ने शायरी अंदाज में कहा कि ‘खुवाईश तो बड़ी बेवफा होती है, पूरी होते ही बदल जाती है,चेहरे वही हो तो कोई अजीब बात नहीं, लेकिन रवैया बदल जाए तो चिंताजनक है।’
    उन्होंने सदन को इस बात से भी अवगत करवाया कि केन्द्र सरकार ने जाटों को पिछड़े वर्ग में शामिल करने के लिए केन्द्रीय शहरी विकास मंत्री श्री वैंकया नायडु  की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया गया है। 
उन्होंने  कहा कि  शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश तथा सरकारी नौकरियों में आरक्षण से सम्बन्धित जाट समुदाय की मांग को स्वीकार करते हुए सरकार ने हरियाणा पिछड़ा वर्ग (नौकरियों एवं शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश आरक्षण) अधिनियम 2016, जिसमें जाट, रोड़, बिश्नोई, जट सिक्ख, मूला जाट/मुस्लिम जाट और त्यागी जातियों को आरक्षण का प्रावधान था, को पारित करके दिनांक 12 मई 2016 को अधिसूचना जारी कर दी थी। इस अधिनियम के प्रावधानों को पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में चुनौती दी गई और अदालत ने दिनांक 26 मई 2016 को यह आदेश दिया कि इस अधिनियम की अनुसूची-।।। में वर्णित, (सैक्शन 3 और 4 में संदर्भित), शीर्षक पिछड़ा वर्ग ब्लाक सी के अन्तर्गत, जातियों को इस अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार सरकारी सेवा में कोई भी नियुक्ति और शिक्षण संस्थानों में प्रवेश न दिया जाए। यह मामला अभी भी हाईकोर्ट के विचाराधीन है और सुनवाई के लिए अगली तारीख 2 मार्च 2017 लगाई गई है।
    इसी प्रकार, एक दूसरी रिट याचिका नं० 3897/2016 (ओ. एंड एम) की सुनवाई करते हुए पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने दिनांक 1 जून 2016 को यह आदेश दिया कि फरवरी 2016 में आरक्षण आंदोलन के सम्बन्ध में विभिन्न थानों में दर्ज हुए सभी मुकदमों के अनुसंधानधिकारी, अनुसंधान की प्रारम्भिक रिपोर्ट अपने-अपने इलाका मजिस्ट्रेट को देंगे, जिसमें इन मुकदमों के अनुसंधान के सम्बन्ध में उठाए गए कदमों का विवरण दिया जाएगा। उन्हें यह भी आदेश दिया गया कि मुकदमों की जिमनियां सम्बन्धी मजिस्ट्रेट के सम्मुख प्रस्तुत की जाएं। सभी विद्वान इलाका मजिस्ट्रेटों को भी निर्देश दिए गए कि वे इन रिपोर्टों और जिमनियों का निरीक्षण करें और अब तक के किए गए अनुसंधान पर अपनी टिप्पणी देकर सम्बन्धित सत्र न्यायाधीशों के माध्यम से हाईकोर्ट को अपनी रिपोर्ट भेजें। इस प्रकार फरवरी 2016 में हुए जाट आरक्षण आंदोलन के सम्बन्ध में हुई हिंसा और अन्य अपराधों से सम्बन्धित सभी मुकदमों के अनुसंधान की समीक्षा पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट द्वारा की जा रही है। इस सम्बन्ध में पुलिस द्वारा अदालत को सभी मुकदमों की अनुसंधान की वस्तुस्थिति की रिपोर्ट लगातार प्रस्तुत की जा रही है।
    मुख्यमंत्री ने जून 2016 में प्रदेश के अनेक स्थानों पर धरने लगाए गए। धरनों के प्रतिनिधियों को यह स्पष्ट किया गया कि सरकार किसी भी निर्दोष व्यक्ति को कष्ट नहीं दिया जाएगा और किसी भी दोषी व्यक्ति को कानून से भागने नहीं दिया जाएगा। यह भी आश्वासन दिया गया था कि सरकार सभी निर्दोष व्यक्तियों और उनके परिवारों के प्रति, जिन्होंने हिंसा के दौरान कष्ट पाया था, के लिये सहानुभूतिपूर्वक रहेगी। इसके उपरांत धरनों को उठा लिया गया था।
    जब वह प्रतीत हुआ कि फिर से 29 जनवरी 2017 से धरने लगाए जाएंगे, जाट समुदाय के नेताओं के साथ 27 जनवरी 2017 को चंडीगढ़ में मीटिंग बुलाई गई। उनकी मांगों को सहानुभूतिपूर्वक सुना गया और उन्हें यह आश्वासन दिया गया कि उनकी सभी जायज मांगों को सरकारी नीतियों और प्रक्रियाओं के दायरे में पूरा किया जाएगा।
    आंदोलनकारियों की आरक्षण से सम्बन्धित मांगों और समस्याओं पर विचार करने के लिये सरकार ने 7 फरवरी 2017 को मुख्य सचिव हरियाणा की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया। कोई भी संस्था, वर्ग अथवा व्यक्ति, लिखित या मौखिक रूप से अपने विचार और सुझाव इस कमेटी के समक्ष प्रस्तुत कर सकता है। इस कमेटी का लगातार यह प्रयास रहा है कि संविधान और समय-समय पर पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के इस सम्बन्ध में दिए गए निर्णय/निर्देश की पृष्ठभूमि में सभी मामलों का हल ढूंढा जाए। इस कमेटी की सभी धरनों के प्रतिनिधियों के साथ पानीपत में दिनांक 11 फरवरी 2017 को बातचीत हुई। उन्होंने 7 मांगों का एक पत्र कमेटी को दिया और यह कहा गया कि सभी मांगों को तुरंत प्रभाव से स्वीकार किया जाए।

सरकार ने इस मांगपत्र पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करते हुए घायल व्यक्तियों को मुआवजा और मृतकों के परिजनों को सरकारी नौकरी देने जैसी तर्कसंगत मांगों को स्वीकार कर लिया और इन्हें पूरा किया जा रहा है। परंतु मृतकों के कुछ परिजनों, जिन्हें सरकारी नौकरी का प्रस्ताव दिया गया था, ने यह प्रस्ताव ठुकरा दिया है। क्योंकि मामला पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में विचाराधीन है और कुछ मांगें राज्य सरकार के अधिकारक्षेत्र से बाहर हैं, अत: यह सम्भव नहीं था कि सम्पूर्ण मांगपत्र को तुरंत प्रभाव से स्वीकार किया जाता। धरनों के प्रतिनिधियों के साथ दिनांक 20 फरवरी 2017 को पानीपत में पुन: वार्ता हुई।

इन प्रतिनिधियों को यह स्पष्ट कर दिया गया था कि उनकी सभी तर्कसंगत मांगें जो कानून की दृष्टि में उचित थी और राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में थी और जो अदालत के विचाराधीन मामलों से सम्बन्धित नहीं थी, को स्वीकार किया जा सकता है और उन्हें एक तर्कसंगत अवधि में पूरा किया जा सकता है। परंतु यह प्रतिनिधि अपनी मांगों पर अडिग रहे। अब मीडिया रिपोर्टों से पता चला है कि इन्होंने सरकार द्वारा गठित सरकारी अधिकारियों की कमेटी से बातचीत करने के प्रस्ताव को ठुकरा दिया है। आंदोलनकारी नेताओं से आगे वार्ता करने के प्रयास लगातार जारी हैं ताकि इस मामले का बातचीत द्वारा शीघ्र-अतिशीघ्र समाधान कर लिया जाए।

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