सूरजकुंड मेले में तीर कमान ने युवाओ को किया आकर्षित

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लाखों लोगों ने लिया आन्नद

फरीदाबाद । ( जयशंकर सुमन) सूरजकुंड मेंले में राजस्थान के कारीगरों द्वारा बनाए गए तीरकमान युवाओं को अपनी ओर क्रेजी कर रहे हैं, तीरअंदाजी में खासी दिलचस्पी रखने वाले युवा इन तीरकमानों को चलाने की कला और इसकी बारीकियों को काफी गहराई से पूछते नजर आए।

 

      राजस्थान की धरती के बांसवाड़ा से ताल्लुक रखने वाले और राजपुताना परंपरा को आगे बढाने वाले रामलाल ने बताया कि वे इस मेले मेें पहली बार आए हैं और उन्होंने इतना क्रेज हरियाणा के युवाओं मेंं तीरअंदाजी को लेकर पहली बार देखा है। हरियाणा प्रदेश खेलों के प्रति इतना संजीदा है यह तो यहां की सरकार की अच्छी नीतियां और खिलाडिय़ों की मेहनत से ही दिखती है।

 

उन्होंने बताया कि उनके पूर्वजों द्वारा तीरकमान बनाने का यह काम काफी सालों पहले शुरू किया था। उनके भाई विठ्ठल ने इस परंपरा को आगे बढाया और इसमें नए प्रयोग के साथ मुडऩे वाला धनुष बनाया जो कि तीन परतों में फोल्ड किया जा सकता है और इसे मोडक़र किसी थैले मेंं भी डाला जा सकता है।

 

      पहले यह तीरकमान सादे रूप में बनाया जाता था। लेकिन बाद मेंं इसे इस तरह बनाया गया कि यह कहीं भी ले जाया जा सके। ऊपर व नीचे की तरफ बांस का प्रयोग किया जाता है और बीच में वार्ड लगाया जाता है। तीनों को जोडक़र ही इसे बनाया जाता है।

 

      आजकल तीकमान कई तरह के आने लगे हैं लेकिन वे आज भी बांस और शीशम व सांगवान की लकड़ी के साथ इनको बनाते हैं। लकड़ी को तो स्थानीय मार्किट से खरीद लिया जाता है परंतु बांसों को विशेष तौर से नागालैंड से मंगवाते हैं।

 

      रामलाल ने बताया कि तीरकमानों का राजस्थान की धरती से गहरा ताल्लुक है,राजस्थान वीरों की धरती है और युद्ध में तीरकमान का विशेष तौर पर प्रयोग किया जाता है। उन्होंने बताया कि तीर में पीछे की तरफ वे मुर्गे के पंखों का इस्तेमाल करते हैं ताकि हवा को आसानी से काटा जा सके और आगे की तरफ नोक पर स्टील की नोक लगाई जाती है ताकि अभयास करते समय लक्ष्य को आसानी से भेदा जा सके। उन्होंने कहा कि विभिन्न प्रतियोगिताओं के लिए स्कूल व विश्वविधालयों की ओर से मांग भी काफी आती है और यहंा भी अच्छा रिस्पांस मिल रहा है।

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