कैसा रहा है मल्लिकार्जुन खड्गे का राजनीतिक व निजी जीवन : कांग्रेस के लिए कितना उपयोगी ?

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सुभाष चौधरी /संपादक 

नई दिल्ली :  कांग्रेस पार्ट्री के इलेक्शन कमिटी के प्रमुख मधुसूदन मिस्त्री की ओर से की गई घोषणा के साथ ही मल्लिकार्जुन खड़गे के सिर कांग्रेस पार्टी के दूसरे दलित अध्यक्ष होने का ताज  सज गया है. 80 साल के मल्लिकार्जुन  खड़गे, बाबू जगजीवन राम के बाद पार्टी के दूसरे दलित अध्यक्ष बने हैं जिन्होंने चुनाव लड़कर यह पद हासिल किया है . लगभग 50 वर्ष पहले 1970 से लेकर 1971 तक दलित समाज से अध्यक्ष पद पर बाबू जगजीवन राम थे. दक्षिणी राज्य कर्नाटक से आने वाले खड़गे पार्टी के लिए बेहद अहम साबित हो सकते हैं.

कहना न होगा कि मल्लिकार्जुन खड़गे की छवि एक साफ व ईमानदार नेता की है. लोक सभा और राज्यसभा दोनों सदनों में जबकि संसद के बाहर भी वे पार्टी के लिए मुखर रहने वाले नेता माने जाते हैं . जहाँ तक गुटबाजी का सवाल है उनका कोई गुट अभी तक कांग्रेस पार्टी में नहीं दिखा है जबकि वे सदा गांधी पारिवार या पार्टी के प्रमुख नेता की धारा के साथ दिखे हैं. यही कारण है कि पार्टी के अंदर उनकी किसी से तकरार भी देखने को नहीं मिली है . जहाँ तक पार्टी के सामान्य कार्यकर्ताओं से उनके जुडाव का सवाल है तो इस मामले में कमी जरूर रही है क्योंकि उन्होंने कभी कर्णाटक से बाहर की राजनीति नहीं की है. लोकसभा व राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष रहते हुए भी उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर एनी राज्यों के कार्यकर्ताओं से कोई ख़ास सम्बन्ध नहीं बनाया है. लेकिन आने वाले समय में उनका नेटवर्क काफी बढेगा इसमें कोई दो राय नहीं है. आब तो सभी राज्यों के नेता व कार्यकर्ता उनके दरबार में पहुंचेंगे और उनका दायरा भी बढ़ेगा.

दूसरी तरफ दलित समाज से उनका सम्बन्ध होना कांग्रेस पार्टी के लिए फायदेमंद हो सकता है. विपक्षी पार्टयों में बसपा व लोजपा को छोड़ कर कोई भी इस मामले में कांग्रेस का मुकाबला नहीं कर सकेंगी. कांग्रेस पार्टी के नेता अभी से यह मानकर चल रहे हैं कि उनके अध्यक्ष पद पर होने से पार्टी के पिछड़े और दलित समुदाय के लोगों की पार्टी में वापसी हो सकती है. अगर भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था में दूसरी पार्टयों को इस प्रकार के क़दमों से फायदा पहुँचता रह है तो कांग्रेस पार्टी को इसका लाभ मिलना तय है. इसका रिजल्ट उनकी पार्टी संगठन में सक्रियता पर निर्भर करेगा. अगर उन्होंने संगठन में बदलाव और पार्टी की दैनिक गतिविधियों को अपने अनुभव के आधार पर चलाने की कोशिश की तो इसका नतीजा जल्दी ही दिखने लगेगा.

ध्यान देने वाली बात यह है कि मल्लिकार्जुन खड़गे को दलित समुदाय से होने के बावजूद उत्तर भारत और दक्षिण भारत के बीच अपनी स्वीकार्यता को लेकर भारी मशक्कत करनी पड़ेगी. यह अलग बात है कि उन्हें अध्यक्ष बनाने में उत्तर व दक्षिण भारत के कांग्रेसियों ने बराबर का मत दिया है चाहे वह गांधी परिवार के इशारे पर ही क्यों न हुआ हो लेकिन उन्हें उत्तर भारत के दलितों में मजबूत पैठ बनने के लिए काफी काम करना होगा. इसका कारण है उत्तर भारत में दलित समाज के दो बड़े नेता का होना जिनमें से एक बसपा प्रमुख मायावती हैं तो दूसरे स्व.रामबिलास पासवान के पुत्र चिराग पासवान. हालांकि चिराग पासवान की धमक अभी उनके पिता स्व. रामबिलास पासवान जैसी नहीं है लेकिन बिहार जैसे राज्य में उनका जनधार किसी भी अन्य दलित नेता से अधिक है जिसे उन्होंने राजनीतिक साजिश के बावजूद पिछले बिहार विधानसभा चुनाव में साबित किया है.

इसलिए उत्तर भारत में मल्लिकार्जुन खड़गे कितना असर दिखा पाएंगे इसको लेकर लम्बे समय तक कयासबाजी जारी रहेगी. वैसे भारतीय राजनीति में कब बाजी पलट जाए इसे लेकर कुछ निश्चितरूपेण नहीं कहा जा सकता है लेकिन कांग्रेस पार्टी जैसा राष्ट्रीय और ऐतिहासिक प्लेटफोर्म के मुखिया होने के नाते उनके लिए संभावनाएं अपार हैं.

अब तक 11 चुनाव जीत चुके खड्गे की राजनीतिक सूझबूझ पर कोई सवाल खड़ा नहीं कर सकता. कर्णाटक जैसे राज्य में लगातार चुनाव जीतना और लम्बे अर्से से चुनावी राजनीति में अपनी प्रासंगिकता बनाये रखना बेहद कठिन है लेकिन उन्होंने यह कर दिखाया है. पहले लोकसभा और फिर राज्यसभा में राष्ट्रीय मुद्दों पर बेबाक राय रखने वाले कांग्रेस के इस नए अध्यक्ष को सामाजिक सरंचानाओं से लेकर आर्थिक व राजनीतिक पहलुओं की भी बेहतर समझ वाला नेता माना जाता है.

कैसा रहा है मल्लिकार्जुन खड्गे का राजनीतिक व निजी जीवन  ?

कांग्रेस पार्टी के नवनिर्वाचित राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे का जन्म 21 जुलाई 1942 को कर्नाटक के बीदर जिले के वरवत्ती गांव में हुआ था. उस समय यह इलाका हैदराबाद के निजाम के शासन में आता था. खड़गे के पिता का नाम मापन्ना खड़गे और माता का नाम साईबव्वा है. खड़गे दलित समुदाय से आते हैं. उनकी पत्नी का नाम राधाबाई खड़गे है. खड़गे दंपति के तीन बेटे और दो बेटियां हैं. उनके बेटे प्रियांक खड़गे भी राजनीति में हैं और कर्नाटक के कलबुर्गी जिले की चित्तापुर विधानसभा सीट से दूसरी बार कांग्रेस के विधायक हैं.

भाग्य की विडम्बना देखिये कि देश की राजनीति के राष्ट्रीय फलक पर अपनी अमित पहचान बना चुके मल्लिकार्जुन खड़गे जब सात वर्ष के थे तब सांप्रदायिक दंगों ने उनकी मां और परिवार के कई सदस्यों को उनसे छीन लिया. यहां तक कि परिवार को घर छोड़ने पर भी मजबूर होना पड़ा. तब परिवार गुलबर्गा आकर रहने लगा, जिसे अब कलबुर्गी कहा जाता है. जीवन के संघर्ष ने खड़गे को पक्का कर दिया और उन्हें जमीनी नेता के तौर पर जाना जाने लगा. उन्होंने छात्र जीवन से राजनीति में कदम रखा था. उनकी राजनीतिक पारी कालेज लाइफ से ही शुरू हुई जब गुलबर्गा के सरकारी कॉलेज में उन्हें छात्रसंघ के महासचिव के रूप में चुना गया था.

विद्यार्थी जीवन में खड़गे ने अपने कॉलेज और यूर्निवर्सिटी की तरफ से हॉकी टूर्नामेंट खेले. उन्होंने कबड्डी और फुटबॉल में भी कई जिला और संभागीय स्तर के पुरस्कार हासिल किए. लंबे समय तक उन्होंने वकालत की. 1969 में वह सक्रिय राजनीति में कूदे. उन्हें गुलबर्गा सिटी कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया. तब से लेकर अब तक वह 11  चुनाव जीत चुके हैं. यही कारण है कि कर्नाटक में खड़गे को ‘सोलिलादा सरदारा’ यानी ‘अजेय सरदार’ बुलाया जाता है. और आज यानी 19 अक्टूबर को वे कांग्रेस पार्टी के उस राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के लिए हुए चुनाव में निर्वाचित घोषित हुए है जिसे इस देश के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, लाल लाजपत राय, मदन मोहन मालवीय, पंडित मोतीलाल नेहरु, जवाहर लाल नेहरु, सुभाष चन्द्र बोस और डॉ राजेन्द्र प्रसाद जैसे महान स्वतंत्रता सेनानियों ने सुशोभित किया है.

80 साल के खड़गे अपने जीवन के पांच दशक से ज्यादा का समय राजनीति में दे चुके हैं. इस दौरान वह विधायक से लेकर राज्य सरकार में मंत्री, कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष, विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष, सांसद, केंद्रीय रेल मंत्री, श्रम मंत्री, राज्यसभा सांसद, राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष जैसी भूमिका अदा की है . कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष चुने जाने पर एक और ऐतिहासिक उपलब्धि उनके राजनीतिक जीवन में जुड़ गई. यह उपलब्धि अब तक की सभी जिम्मेदारियों से कहीं अधिक कठिन और चुनौतीपूर्ण रहने वाली है. संभव है इसका उन्हें भी अच्छी तरह भान होगा.

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