क्या राजनितिक दल काले को कर रहे हैं सफ़ेद ?

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केंद्रीय निर्वाचन आयोग को हैं आशंका

1900 में से 400 राजनीतिक दल चुनाव कही नहीं लड़े  ! 

नई दिल्ली: आम जन मानस इस बात से आशंकित है कि हम तो लाइन में लग कर अपने पैसे निकलने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं और देश में राजनितिक दलों की ऐसी बड़ी जमात है जो काले को सफ़ेद करने के धंधे में लिप्त हो सकते है. हिन्दुस्तान को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश कहा जाता है है. इसका अंदाजा इस तथ्य से भी लगाया जा सकता है कि यहां रजिस्टर राजनीतिक पार्टियों की संख्या 1900 है. लेकिन चिंता का विषय यह नहीं की इतनी बड़ी संख्या में राजनितिक पार्टियाँ पंजीकृत हैं बल्कि चौकाने वाली बात यह है कि केंद्रीय निर्वाचन आयोग के अनुसार  1,900 में से 400 से ज़्यादा ऐसे राजनितिक दल हैं जो कभी चुनाव में उतरे ही नहीं.

 

ऐसे में सवाल यह है कि आखिर इन दलों को पंजीकृत कराने की आवश्यकता क्या थी और अब तक इसे क्यों नहीं गैरकानूनी घोषित किया गया ? जब ये दल चुनाव लड़ते ही नहीं तो इनका पंजीकरण किस आधार पर अब तक जारी रहा ?  इसलिए केंद्रीय निर्वाचन आयोग की आशंका में दम है की मुमकिन है कि इन दलों का इस्तेमाल काले धन को सफेद बनाने के लिए किया जा रहा हो.

दुनियाभर में सबसे ज़्यादा रजिस्टर्ड राजनीतिक  दल

गौरतलब है कि गुरुवार को देश के प्रमुख राष्ट्रीय अंग्रेज़ी दैनिक ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ में इस सम्बन्ध में प्रकाशित एक रिपोर्ट में यह कहा गया है कि केंद्रीय निर्वाचन आयुक्त नसीम ज़ैदी ने बताया है कि दुनियाभर में सबसे ज़्यादा रजिस्टर्ड राजनीतिक दलों वाले देश में काले धन को छिपाने के लिए ऐसी पार्टियों के इस्तेमाल की आशंका प्रबल है, और इसे समाप्त करने के लिए ही चुनाव आयोग ने ऐसी पार्टियों का नाम अपनी सूची से काटने की प्रक्रिया शुरू कर दी है. यानि अब माना जा सकता है कि ऐसे दल जो वोट की राजनीति नहीं बल्कि ब्लैक मनी को सफ़ेद में बदलने के लिए ही राजनीतिक चोला पहने हुए थे का ज़माना अब लदने वाला है. साफ है कि चुनाव आयोग को अगर इस बात की आशंका हुयी है तो कहीं न कहीं उन्हें किसी श्रोत से इस गोरख धंधे के संकेत अवश्य मिले हैं. अब इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता.

आयकर छूट

‘टाइम्स ऑफ इंडिया’  की इस रिपोर्ट में  नसीम ज़ैदी के हवाले से यह उधृत किया गया है कि  इन पार्टियों के नाम सूची में से काट दिए जाने पर वे उस आयकर छूट पाने के अयोग्य हो जाएंगी, जो उन्हें एक राजनितिक दल के रूप में मिलती रहीं है. जाहिर है ऐसे दल अब तक कर छूट के साथ साथ कई अन्य अप्रत्यक्ष फायदे भी लेते रहे हैं. इस दोहरे फायदे के खेल पर अंकुश लागने की इस कोशिश की तारीफ़ की जानी चाहिए लेकिन इस रोग का मुक्कमल व स्थायी ईलाज करना भी चुनाव आयोग की ही जिम्मेदारी है. 

राजनीतिक पार्टियों की सूची तलब

रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि केन्द्रीय चुनाव आयोग ने सभी राज्यों के निर्वाचन आयुक्तों से उस राज्य में रजिस्टर्ड उन सभी राजनीतिक पार्टियों की सूची तलब की है जिन्होंने कभी चुनाव नहीं लड़ा है. खास बात यह है कि आयोग द्वारा राज्य आयोगों से ऐसे दलों  द्वारा हासिल किए गए चंदे की जानकारी भी मांगी गई है. इससे चुनाव आयोग की इस विषय के प्रति गंभीरता का पता चलता है. क्योंकि ऐसी पार्टियों द्वारा फाइल की गयी आईटी रिटर्न व अन्य दस्ताबेजों जिनमें इन्होने अब तक मिले चन्दे का खुलासा किया होगा से साफ हो सकता है कि अब तक इन्होने कितने काले धन को राजनीतिक मोहर लगा कर आसानी से सफ़ेद कर दिया. इसमें कोई दो राय नहीं कि यह राशि अरबों में होगी. यानि जनता का पैसा इस तरीके से भी सफ़ेद हाथियों के हाथ लग गए.

 

अखबार की रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया है कि मुख्य चुनाव आयुक्त नसीम ज़ैदी ने आश्वस्त किया है कि रजिस्टर्ड दलों की इस तरह की छटनी अब प्रति  वर्ष की जायेगी. इस आश्वासन से माना जा सकता है कि आगे कुकुरमुत्ते की तरह आधारहीन, अनैतिक राजनितिक दलों की बाढ़ फिर नहीं आएगी.

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