कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के तीन प्राध्यापकों के नाम स्वीकृत
चण्डीगढ़ : हरियाणा में वर्ष 2018-19 के दौरान राज्य के विभिन्न विश्वविद्यालायों के 6 वैज्ञानिकों व प्राध्यापकों को अनुसंधान परियोजनाओं के लिए एक करोड रुपए की राशि स्वीकृत की गई है. इसकी अधिकतम अवधि तीन वर्ष होगी ताकि नई खोजों से जनसाधारण के सामाजिक-आर्थिक जीवन स्तर को सुधारा जा सकें।
यह जानकारी हरियाणा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के प्रधान सचिव डा0 अशोक खेमका ने दी. उन्होंने बताया कि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग व विज्ञान एवं प्रोद्योगिकी परिषद द्वारा अनुसंधान एवं विकास परियोनाओं को चलाया जा रहा है। उन्होंने बताया कि अनुसंधान की महत्ता के मध्यनजर अनुसंधान एवं विकास स्कीम के अन्तर्गत बजट राशि बढाई जाएगी। उन्होंने बताया कि अनुसंधान एवं विकास परियोजनाओं के लिए 20 लाख रुपए की तक की राशि अधिकतम तीन साल की अवधि के लिए दी जाती है। उन्होंने बताया कि जनसाधारण के सामाजिक-आर्थिक जीवन स्तर को सुधारने एवं उन्हें दैनिक जीवन में पेश आ रही कठिनाइयों के समाधान हेतु विज्ञान एवं प्रोद्योगिकी परिषदï, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग हरियाणा द्वारा अनुसंधान एवं विकास परियोजनाएं स्कीम चलाई जा रही है।
उन्होंने इन वैज्ञानिकों व प्राध्यापकों द्वारा किए जाने वाले अनुसंधान का ब्यौरा देेते हुए बताया कि (1) डॉ.रंजना अग्रवाल, प्रो0 रसायन विभाग कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय कुरुक्षेत्र को कैंसर के लिए, (2) डॉ. मनीष कुमार, सहायक प्रो0 भौतिक विभाग कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय कुरुक्षेत्र को हाइब्रिड पेरोवस्काइट आधारित ऊर्जा हार्वेस्टर के विकास पर, (3)डॉ0 अशोक कुमार शर्मा, प्रो0 मैटीरियलस एंड नैनो टैक्रालॉजी, दीन बन्धु छोटू राम विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय को कैंसर उपचारहीन के लिए, (4) केन्द्रीय विश्वविद्यालय, हरियाणा, जिला-महेन्द्रगढ़ के डॉ0 संजय कुमार को यह परियोजना कैंसर का पता लगाने, (5) डा0 सुशीला मान, प्रो0 पशु जैव तकनीकी, लाला लाजपत राय पशुचिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय, हिसार को स्वीकृत अनुसंधान परियोजना अनुसार सुअर पालन समाज में कमजोर वर्ग के लिए अति लाभकारी व्यवसाय हेतू और (6) डा0 नीरज कुमार सहायक प्रो0 माक्रोबायोलॉजी विभाग, कुरुक्षेत्र विश्ववाद्यलय कुरुक्षेत्र को स्वीकृत अनुसंधान परियोजना अनुसार पार्थेनियम हिस्टीरोफोरस जिसे कांग्रेस घास के रूप में भी जाना जाता है, दुनिया के सबसे विनाशकारी खरपतवारों में से एक है, के लिए दिया गया है।
वैज्ञानिक / प्राध्यापक व रिसर्च के क्षेत्र :
(1) डॉ.रंजना अग्रवाल, प्रो0 रसायन विभाग कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय कुरुक्षेत्र को स्वीकृत अनुसंधान परियोजना के अनुसार विश्व के प्रमुख मेडिकल जर्नल ‘दा लेंसेट’ के अनुसार भारतवर्ष के प्रतिवर्ष दस लाख कैंसर के नए केस पाए जाते हैं। अक्तूबर 2017 के राष्टï्रीय सांख्यिकी डेटा के अनुसार देश के कैंसर से मृत्युदर का एक तिहाई हिस्सा हरियाणा प्रांत का है। इसका मुख्य कारण तेजी से बढï़ता ओद्योगीकरण, शहरीकरण, उर्वरक एवं कीटनाशकों को अनापयुक्त प्रयोग एवं धरती, पानी और हवा में हैवी मैटर का होना हो सकता है। वर्तमान में कैंसर के उपचार में प्रयोग होने वाली दवाएं जैसेकि पैक्लीटक्सल, डोक्सोरयूबीन, विनक्रिस्टी अपनी उपयोगिता खो रही है क्योंकि कैंसर ने उनके प्रति प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न कर ली है तथा दूसरा यह दवाएं कैंसर और सामान्य कोशिकाओं के भेद को नहीं पहचानती जिससे दवाओं के दुष्प्रभाव ज्यादा है। प्रो0 रंजना अग्रवाल ने इन समस्याओं का हल ढुंढने के लिए अपनी शोध परियोजना कैंसर के लिए छोटे आर्गेनिक मौलीक्यूल्ज को बनाने एवं उनका डीनए के साथ इंटरक्शन का अध्ययन करने का प्रस्ताव दिया है। आशा है कि इस अध्ययन से हमें कैंसर जैसी सबसे जटिल गतिशील मानव रोग से निपटने का निदान मिलेगा। यह शोध पोस्ट जिनोम युग में रासायनिक एवं जैविक दृष्टिï से महत्वर्ण साबित होगा।
(2) डॉ. मनीष कुमार, सहायक प्रो0 भौतिक विभाग कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय कुरुक्षेत्र को स्वीकृत अनुसंधान प्रोजैक्ट छोटे उपकरणों के लिए हाइब्रिड पेरोवस्काइट आधारित ऊर्जा हार्वेस्टर के विकास पर केन्द्रित होगा। इस कार्य में सौर सेल अनुप्रयोगों के लिए अकार्बनिक कार्बनिक हाइब्रिड पेरोवस्काइट आधारित पतली फिल्मों का संश्लेष्ण किया जाएगा। ये सौर सेल कम प्रसंस्करण तापमान उच्च क्षमता (23 प्रतिशत से अधिक) कम उत्पादन लागत और बड़े पैमाने पर विनिर्माण तकनीक जैसे रोल टू रोल प्रिंटिग की क्षमता के कारण पारम्परिक सिलीकोन सौर सेल से बेहतर है। कार्बनिक सौर सेल की तरह इन्हें भी फलेेस्सिबल सब्सटे्रेट पर रखा जा सकता है। ये हल्के और अर्धपारदर्शी हो सकते हैं। पेरोवस्काइट सौर सेल और ऊर्जा का भविष्य बन सकते हैं यदि इनकी थर्मलस्टेबिलीटठी को उपयुक्त डोपिंग द्वïवारा सुधारा जा सके।
(3) डॉ0 अशोक कुमार शर्मा, प्रो0 मैटीरियलस एंड नैनो टैक्रालॉजी, दीन बन्धु छोटू राम विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय को स्वीकृत अनुसंधान परियोजना के अनुसार सोनीपत जिला राज्य के घनी आबादी वाले जिलों में से एक है, यहां कई प्रकार के उद्योग हैं जिनमें चमड़ा, रबर, प्लास्टिक धातु, डाई और रसायन आदि उद्योग शामिल है। रंगीन अपशिष्टïों (डाई) में कई हानिकारक और कैंसरकारी रसायन होते है और उन्हें उत्सर्जन से पहले उपचार की आवश्यकता होती है। रसायन मानव के साथ-साथ वनस्पतियों और अन्य जीवों के लिए भी हानिकारक हैं। इस प्रदूषित पानी से एलर्जी की समस्या, डर्माटाइटिस, किडनी की समस्या, कैंसर हो सकता है और क्षेत्र के वनस्पतियों और जीवों में दुष्प्रभाव हो सकता है। विभिन्न उद्योगों द्वारा अधिक शोषण के कारण जल संसाधनपहले से ही तनाव में हैं और उद्योग प्रदूषण इसे बदतर बना रहे हैं। औद्योगिक क्षेत्रों की अधिकांश आबादी में कम की तलाश में आस पास के राज्यों से आजीविका के लिए पलायन करने वाले लोग शामिल हैं, जो पीने के पानी तक पहुंच के लिए उपलब्ध महंगे उपायों के लिए व्यय नहीं कर सकते हैं। इसलिए, विशेष रूप से औद्योगिक इलाके में अधिकांश आबादी पीने के पानी का गंभीर कमी का सामना कर रही है। इन चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए परियोजना- ‘फंक्शनलाइज्ड कार्बन नैनो कम्पोजिट फॉर वेस्ट वाटर रिमेडियेशन’ डिजाइन किया गया है। परियोजना का मुख्य उदïदेश्य पानी से प्रदूषण के तेजी से, किफायती और प्रभावी रूप से हटाने के लिए परिष्कृत कार्बन आधारित नैनो कम्पोजिट विकसित करना होगा। परियोजना रंगीन अपशिष्टïों (डाई) और भारी धातुओं की तरह संदूषकों को हटाने पर ध्यान केन्द्रित करेगी और उन्नत सोनोकटलिटिक और फोटोकैटलिटिक अवशोषण तकनीकों के माध्यम से किया जाएगा।
(4) केन्द्रीय विश्वविद्यालय, हरियाणा, जिला-महेन्द्रगढ़ के डॉ0 संजय कुमार को यह परियोजना कैंसर का पता लगाने की प्रारम्भिक तकनीक से सम्बन्धित है। हरियाणा में, तेजी से औद्योगिकीकरण और अस्वच्छता के कारण, कैंसर की दर तेजी से बढ़ रही है। हरियाणा भारत में कैंसर के सबसे ज्यादा मामलों का दर्ज करता है जोकि (2018) में 39 प्रतिशत है। महिलाओं में स्तन कैंसर और पुरुषों में फेफड़ों का कैंसर भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ढ्ढष्टरूक्र) के अनुसार हरियाणा की जनसंख्या में मृत्यु का प्रमुख कारण है। जैसाकि राज्य के 22 जिलों में से किसी भी नागरिक अस्पतालों और कैंसर का कोई वार्ड नहीं है। कैंसर के रोगियों को अक्सर सार्वजनिक अस्पतालों और महंगे उपचार की सीमित संख्या के कारण शुरूआती निदान और बाद में उपचार में समस्या होती है। वर्तमान में,इसके लिए एक परिभाषित भूमिका है। स्क्रीनिंग कुछ कैंसर प्रकारों में मौजूद है, लेकिन प्रत्येक स्क्रीनिंग टेस्ट की सीमाएं हैं, और बेहतर स्क्रीनिंग विधियों की अत्यधिक आवश्यकता है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार कैंसर के रोगियें के विभिन्न चरणों में ‘व्यापक परिसंचारी टयूमर डीएनए प्रोफाइलिंग ’नामक उनकी परियोजना अनुदान और उपन्यास निदान के अनुसर स्वस्थ नियंत्रण और हरियाणा के आबादी में कैंसर का पता लगाने के लिए जैविक नूमनों (रक्त, लार, मूत्र और मल) में रोगनिरोधी बायोमार्कर ‘का उदïदेश्य स्क्रीनिंग के तरीकों में सुधार करना है और बहुत प्रारंभिक अवस्था में कैंसर का पता लगाना है, द्वद्बक्रहृ्र का उपयोग करके। जैसा कि शुरूआती पता लगाना सफल उपचार और मृत्यु दर में कमी की संभावना को बढ़ाता है। वह एक माइक्रोचिप डिजाइन करने की कोशिश कर रहे हैं, जो कि द्वद्बक्रहृ्र लेपित होगा। कैंसर का निदान करनेे के लिए रक्त की एक बूंद पर्याप्त होगी, जो स्क्रीनिंग के प्रयासों और लागतों को सही ठहराएगी। दुर्भाग्य से, कई कैंसर अभी भी प्रभावी स्क्रीनिंग सिफारिशों की कमी है, यह परियोजना कैंसर का जल्द पता लगाने में ममद करेगी और हरियाणा में मृत्यु दर को कम करने में मदद करेगी।
(5) डा0 सुशीला मान, प्रो0 पशु जैव तकनीकी, लाला लाजपत राय पशुचिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय, हिसार को स्वीकृत अनुसंधान परियोजना अनुसार सुअर पालन समाज में कमजोर वर्ग के लिए अति लाभकारी व्यवसाय है यह पोषण सुरक्षा के अलावा आर्थिक सुरक्षा के दृष्टिकोण से भी अत्यधिक लाभकारी है। कुछ विषाणु जनित रोगों की वजय से यह व्यवसाय काफी प्रभावित होता है। जिसमें आर्थिक पोषण, सुरक्षा का नुकसान होता है। अत: गरीब कमजोर वर्गों के उत्थान के लिए रोग रहित सुअर पालन समाज की मांग है। विषय की महत्वता को देखते हुए यह परियोजना तैयार की गई है। जो कि उच्च स्तरीय तकनीक (हृत्रस्) पर आधारित है। यह तकनीक विषाणुओं के जीनोम की कम से कम समय में स्टीक जानकारी उपलब्ध कराती है। जिसमें हम नये विषाणुओं की पहचान कर पाने में समर्थ हो जाते हैं। परियोजना से प्राप्त जानकारियों भविष्य में विषाणुओं के खिलाफ टीका विकास में भी सहायक होगी।
(6) डा0 नीरज कुमार सहायक प्रो0 माक्रोबायोलॉजी विभाग, कुरुक्षेत्र विश्ववाद्यलय कुरुक्षेत्र को स्वीकृत अनुसंधान परियोजना अनुसार पार्थेनियम हिस्टीरोफोरस जिसे कांग्रेस घास के रूप में भी जाना जाता है, दुनिया के सबसे विनाशकारी खरपतवारों में से एक है। यह भारत में विभिन्न प्रकार के गेहूं के साथ संयोग से एक संदूषक के रूप में आयात किया गया था और तब से यह भारत के सभी राज्यों में फैल गया है। रिपोर्ट में संकेत दिया गया है कि भारत में पार्थेनियम हिस्टीरोफोरस 2018 में 40 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र फैल गया है। इस झाड़ी की कई विशेषताएं है जैसे कि निवास स्थान और जलवायु परिस्थितियों की अनुकूलता, उच्च मितव्ययिता, उच्च पुनर्योजी क्षमता, शाकाहारी ओर अलोपोपथिक का प्रतिरोध। अन्य पौधों पर प्रभाव इसे अत्यधिक खतरनाक खरपतवार बनातें हैं। यह विशेष रूप से बंजर भूमि, सिंचाई नहरों, सडक़ों, रेलवे ट्रैक, कोयला खानों, आवासीय क्षेत्रों पर हावी है और फसलों पर भी हमलावर हो रही है। यह मनुष्य के स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव दिखाती है, जिससे त्वचारोग, घास का बुखार, बोकाइटिस अस्थमा और मवेशी चराई पर भी होता है, जिससे त्वचा की सूजन, आंतों का अल्सर और पौधे के सभी भागों में प्राकृतिक रूप से मौजूद पार्थेनिन विष के साथ दूध का क्षय होता है। इस खतरनाक खरपतवार का प्रबंधन पूरे विश्व में एक गंभीर चिंता का विषय है। कई रासयनिक , भौतिक और निजी जैविक तरीके इसके नियंत्रण के लिए जाते है। लेकिन इसे पूरी तरह से मिटाने के लिए कोई भी एक तरीका पर्याप्त प्रभावी नहीे है।
इस परियोजना से इस खरपतवार के बायोमास का उपयोग बायोएथेनाल उत्पादन के लिए किया जाएगा तथा ऊर्जा संकट की समस्याओं के साथ-साथ पारंपरिक रूप से इस्तेमाल किए गए जीवाश्म ईंधन के कारण पर्यावरण प्रदूषण की समस्याओं का भी एक प्रभावी समाधान किया जाएगा।