राजा हसन खां मेवाती देश भक्ति की एक मिसाल थे
यूनुस अलवी
मेवात : जुबां देते हैं जिसको भी, निभा देते हैं मेवाती,
जो कहते हैं वही करके, दिखा देते हैं मेवाती।
ये साबित हो चुका है, वतन पर जां लडा देते हैं मेवाती,
बडों के हुक्म पर, गर्दन कटा देते हैं मेवाती।
मेवात के आखरी राजा हसन खां मेवाती कान्वां के मैदान में राणा सांगा
के साथ मिलकर विदेशी आक्रमणकारी बाबर से श्ुद्ध के दौरान 15 मार्च 1527
को अपने 12 हजार सैनिकों के साथ शहीद हो गऐ थे। उनकी देश भक्ति और
बहादुरी पर मेवात की ही पूरे देश को नाज है। हसन के शहीदी के 492वें साल
पर आज मेवात की जनता उस देशभक्ति को याद कर रही है। हमारा अधिकार मोर्चा
सामाजिक संगठन उनका शहीदी दिवस आज बृहस्पतिवार को नूंह जिला के खंड
पुन्हाना में धूमधाम से मना रहा है। इस समारोह में ऑल इंडिया इमाम
ऑर्गेनाईजेशन के चीफ इमाम मोलाना डा उमेर इलयासी और पूर्व परिवहन मंत्री
आफताब अहमद सहित कई बडी हस्तियां भाग ले रही हैं।
इतिहासकार मुन्शी खां ने बताया कि राजा हसन खां मेवाती सोलहवीं
शताब्दी के महान देश भक्त राजा थे। अकबरनामा में उस समय के जिन चार
योद्धाओं का वर्णन है उनमें से हसन खां मेवाती एक हैं। राजा हसन खां
मेवाती को मेवात का राज्य अपने पूर्वजों से विरासत में मिला था। उनके
पूर्वत जो लगभग पौने दो सौ साल से मेेवात पर राज कर रहे थे। हसन खां
मेवाती ने कभी विदेशी आक्रणकरियों से कोई समझोता नहीं किया बल्कि उन्होने
देश कि खातिर हिंदु राजाओं का साथ दिया।
हसन खां की अलवर राजधानी थी
बहादुर नहार द्वार 1353 ईसवीं में स्थापित मेवात राज्य का वह सातवां
शासक था। अलवर उनके राज्य की राजधानी हुआ करती थी। अलवर के उत्तर-पश्चिम
अरावली पर्वत श्रंखला की एक चोटी पर हसन खां ने एक मजबूत किले का निर्माण
कराया था। इस किले की बुलंदी तकरीबन एक हजार फीट है, इसकी लम्बाई तीन मील
और चौडाई एक मील है। उनके किले मे 15 बडी और 52 छोटी बुर्जियां है। इस
किले पर करीब तीन हजार पांच सौं कंगूरे हैं। यह किला बालाये किला के नाम
से मशहूर है।
राजकुमार समरपाल के वंशज थे हसनखां
फिरोज तुगलक के समय में बहुत से राजपूत खानदानों ने इसलाम कबूल किया
था उनमें सरहेटा राजस्थान के राजकुमार समरपाल थे। समरपाल की पांचवीं पीढी
में सन् 1492 में हसनखां के पिता अलावल खां मेवात का राजा बने थे। इसलिये
हसन खां ‘जादू गौत्र’ से ताल्लुक रखते हैं। हसन खां सन् 1505 में मेवात
के राजा बनें। सन् 1526 ईसवीं में जब मुगलबादशाह बाबर ने हिंदुस्तान पर
हमला किया तो इंब्राहीम लोदी, हसन खां मेवाती व दिगर राजाओं ने मिलकर
पानीपत के मुकाम पर बाबर से हुऐ मुकाबले में राजा हसन खां के पिता अलावल
खां शहीद हुऐ और इस लडाई के बाद लोधी खानदान का सूर्य अस्त हो गया।
बेटा बंधक होने के बाद भी बाबर के सामने नहीं झुके
पानीपत की विजय के बाद बाबर ने दिल्ली और आगरा पर तो अपना अधिकार जरूर
कर लिया लेकिन भारत सम्राट बनने के लिये उसे महाराणा संग्राम सिंह
(मेवाड) और हसन खां (मेवात) बाबर के लिये कडी चुनौती के रूप में सामने
खडे थे। बाबर ने हसन खां मेवाती को अपने साथ मिलाने के लिये उन्हें इसलाम
का वास्ता दिया गया तथा एक लडाई में बंधक बनाये गये हसन खा के पुत्र को
बिना शर्त छोड दिया था लेकिन हसन खां की देश भक्ति के सामने धर्म का
वास्ता काम नहीं आया।
हसन ने राणा सांगा के साथ कान्वाह के मैदान में बाबर से युद्ध किया
15 मार्च 1527 को राजा हसन खां ने राणां सांगा के साथ मिलकर कान्वाह के
मैदान में बाबर की सैना में जमकर युद्ध हुआ और अचानक एक तीर राणा सांगा
के सिर पर आ लगा और वह हाथी के ओहदे से नीचे गिर पडे जिसके बाद भारतीय
सैना के पैर उखडने लगे तो सेनापति का झण्डा खुद राजा हसन खां मेवाती ने
संभाल लिया और बाबर सैना को ललकारते हुऐ उनपर जोरदार हमला बोल दिया। राजा
हसन खां मेवाती के 12 हजार घुडसवार सिपाही बाबर की सैना पर टूट पडे इसी
दौरान एक तोप का गोला राजा हसन खां मेवाती के सीने पर आ लगा और इसके बाद
आखरी मेवाती राजा का हमेशा के लिये 15 मार्च 1527 को अंत हो गया।
इसके बाद प्रथम मुगल बादशाह का दिंहुस्तान में सूर्योदय होगा। शहीद
राजा हसन खां के मृत शरीर को उसके पुत्र ताहिर खां, नजदीकी रिश्तेदार
जमालखां और फतेहजंग लेकर आये, उसके बाद राजा हसन खां के पार्थिक शरीर को
अलवर शहर के उत्तर में सुपुर्द-ए-खाक किया गया।