पीएम मोदी ने मन की बात में साइंस और सुरक्षा की बात क्यों की ?

Font Size

नई दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आज मन की बात कार्यक्रम एक फ़ोन-कॉल से शुरू की. इस बच्ची का नाम कोमल त्रिपाठी है. यह मेरठ की रहने वाली है. इस बच्ची ने पीएम मोदी से साइंस के क्षेत्र में युवाओं को प्रेरीर करने की गुजारिश की. पीएम ने भी आज का संबोधन इसी विषय से शुरू किया. इसके साथ ही सुरक्षा व अन्य विषयों पर भी बात की. 

 

‘मन की बात’ कार्यक्रम में प्रधानमंत्री के सम्बोधन का मूल पाठ ( 25.02.2018)

मेरे प्यारे देशवासियो, नमस्कार।

आज प्रारम्भ में ही ‘मन की बात’ एक फ़ोन-कॉल से ही शुरू करते हैं।

(फ़ोन)

आदरणीय प्रधानमंत्री जी, मैं कोमल त्रिपाठी मेरठ से बोल रही हूँ.. 28 तारीख को national science day है … India की progress और उसका growth, science से पूरी तरह से जुड़ा हुआ है.. जितना ही हम इसमें research और innovation करेंगे उतना ही हम आगे बढ़ेंगे और prosper करेंगे .. क्या आप हमारे युवाओं को motivate करने के लिए कुछ ऐसे शब्द कह सकते हैं जिससे कि वो scientific तरीक़े से अपनी सोच को आगे बढाएं और हमारे देश को भी आगे बढ़ा सकें ..धन्यवाद .

आपके फ़ोन-कॉल के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। विज्ञान को लेकर ढ़ेर सारे प्रश्न मेरे युवा साथियों ने मुझसे पूछे हैं, कुछ-न-कुछ लिखते रहते हैं। हमने देखा है कि समुन्दर का रंग नीला नज़र आता है लेकिन हम अपने दैनिक जीवन के अनुभवों से जानते हैं कि पानी का कोई रंग नहीं होता है। क्या कभी हमने सोचा है कि नदी हो, समुन्दर हो, पानी रंगीन क्यों हो जाता है ? यही प्रश्न 1920 के दशक में एक युवक के मन में आया था। इसी प्रश्न ने आधुनिक भारत के एक महान वैज्ञानिक को जन्म दिया। जब हम विज्ञान की बात करते हैं तो सबसे पहले भारत-रत्न सर सी.वी. रमन का नाम हमारे सामने आता है। उन्हें light scattering यानि प्रकाश के प्रकीर्णन पर उत्कृष्ट कार्य के लिए नोबल-पुरस्कार प्रदान किया गया था। उनकी एक ख़ोज ‘Raman effect’ के नाम से प्रसिद्ध है। हम हर वर्ष 28 फ़रवरी को ‘National Science Day’ मनाते हैं क्योंकि कहा जाता है कि इसी दिन उन्होंने light scattering की घटना की ख़ोज की थी। जिसके लिए उन्हें नोबल- पुरस्कार दिया गया। इस देश ने विज्ञान के क्षेत्र में कई महान वैज्ञानिकों को जन्म दिया है। एक तरफ़ महान गणितज्ञ बोधायन, भास्कर, ब्रह्मगुप्त और आर्यभट्ट की परंपरा रही है तो दूसरी तरफ़ चिकित्सा के क्षेत्र में सुश्रुत और चरक हमारा गौरव हैं। सर जगदीश चन्द्र बोस और हरगोविंद खुराना से लेकर सत्येन्द्र नाथ बोस जैसे वैज्ञानिक-ये भारत के गौरव हैं। सत्येन्द्र नाथ बोस के नाम पर तो famous particle ‘Boson’ का नामकरण भी किया गया। हाल ही मुझे मुम्बई में एक कार्यक्रम में शामिल होने का अवसर मिला – Wadhwani Institute for Artificial Intelligence के उद्घाटन का। विज्ञान के क्षेत्र में जो चमत्कार हो रहे हैं, उनके बारे में जानना बड़ा दिलचस्प था। Artificial Intelligence के माध्यम से Robots, Bots और specific task करने वाली मशीनें बनाने में सहायता मिलती है। आजकल मशीनें self learning से अपने आप के intelligence को और smart बनाती जाती हैं। इस technology का उपयोग ग़रीबों, वंचितों या ज़रुरतमंदों का जीवन बेहतर करने के काम आ सकता है। Artificial Intelligence के उस कार्यक्रम में मैंने वैज्ञानिक समुदाय से आग्रह किया कि दिव्यांग भाइयों और बहनों का जीवन सुगम बनाने के लिए, किस तरह से Artificial Intelligence से मदद मिल सकती है ? क्या हम Artificial Intelligence के माध्यम से प्राकृतिक आपदाओं के बारे में बेहतर अनुमान लगा सकते हैं ? किसानों को फ़सलों की पैदावार को लेकर कोई सहायता कर सकते हैं ? क्या Artificial Intelligence स्वास्थ्य सेवाओं की पहुँच को आसान बनाने और आधुनिक तरीक़े से बीमारियों के इलाज़ में सहायक हो सकता है ?

पिछले दिनों इज़राइल के प्रधानमंत्री के साथ मुझे गुजरात में, अहमदाबाद में ‘I Create’ के उद्घाटन के लिए जाने का अवसर मिला था। वहाँ एक नौजवान ने, एक ऐसा digital instrument develop किया हुआ बताया उसने कि जिसमें अगर कोई बोल नहीं सकता है तो उस instrument के माध्यम से अपनी बात लिखते ही वो voice में convert होती है और आप वैसे ही सम्वाद कर सकते हैं जैसे कि एक बोल सकने वाले व्यक्ति के साथ आप करते हैं। मैं समझता हूँ कि Artificial Intelligence का उपयोग ऐसी कई विधाओं में हम कर सकते हैं।

Science and Technology, value neutral होती हैं। इनमें मूल्य, अपने आप नहीं होते हैं। कोई भी मशीन वैसा ही कार्य करेगी जैसा हम चाहेंगे। लेकिन, यह हमारे ऊपर निर्भर करता है कि हम मशीन से क्या काम लेना चाहते हैं। यहाँ पर मानवीय-उद्धेश्य महत्वपूर्ण हो जाता है। विज्ञान का मानव-मात्र कल्याण के लिए उपयोग, मानव जीवन की सर्वोच्च ऊंचाइयों को छूने के लिए प्रयोग।

Light Bulb का आविष्कार करने वाले Thomas Alva Edison अपने प्रयोगों में कई बार असफ़ल रहे। एक बार उनसे जब इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने जवाब दिया –“मैंने Light Bulb नहीं बनाने के दस हज़ार तरीक़े खोज़े हैं”, यानि Edison ने अपनी असफलताओं को भी अपनी शक्ति बना लिया। संयोग से सौभाग्य है कि आज मैं महर्षि अरबिन्दो की कर्मभूमि ‘Auroville’ में हूँ। एक क्रांतिकारी के रूप में उन्होंने ब्रिटिश शासन को चुनौती दी, उनके ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ी, उनके शासन पर सवाल उठाए। इसी प्रकार उन्होंने एक महान ऋषि के रूप में, जीवन के हर पहलू के सामने सवाल रखा। उत्तर खोज़ निकाला और मानवता को राह दिखाई। सच्चाई को जानने के लिए बार-बार प्रश्न पूछने की भावना, महत्वपूर्ण है। वैज्ञानिक ख़ोज के पीछे की असल प्रेरणा भी तो यही है। तब तक चैन से नहीं बैठना चाहिये जब तक क्यों, क्या और कैसे जैसे प्रश्नों का उत्तर न मिल पाए। National Science Day के अवसर पर हमारे वैज्ञानिकों, विज्ञान से जुड़े सभी लोगों को मैं बधाई देता हूँ। हमारी युवा-पीढ़ी, सत्य और ज्ञान की खोज़ के लिए प्रेरित हो, विज्ञान की मदद से समाज की सेवा करने के लिए प्रेरित हो, इसके लिए मेरी बहुत-बहुत शुभकामनाएँ हैं।

साथियो, crisis के समय safety, disaster इन सारे विषयों पर मुझे बहुत बार बहुत कुछ सन्देश आते रहते हैं, लोग मुझे कुछ-न-कुछ लिखते रहते हैं। पुणे से श्रीमान रवीन्द्र सिंह ने NarendraModi mobile App पर अपने comment में occupational safety पर बात की है। उन्होंने लिखा है कि हमारे देश में factories और constructions sites पर safety standards उतने अच्छे नहीं हैं। अगले 4 मार्च को भारत का National Safety Day है, तो प्रधानमंत्री अपने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में safety पर बात करें ताकि लोगों में safety को लेकर जागरूकता बढ़े। जब हम public safety की बात करते हैं तो दो चीज़ें बहुत महत्वपूर्ण होती हैं- pro-activeness और दूसरा है preparedness। Safety दो प्रकार की होती है एक वो जो आपदा के समय जरुरी होती है, safety during disasters और दूसरी वो जिसकी दैनिक जीवन में आवश्यकता पड़ती है, safety in everyday life। अगर हम दैनिक जीवन में safety को लेकर जागरूक नहीं हैं, उसे हासिल नहीं कर पा रहे हैं तो फिर आपदा के दौरान इसे पाना मुश्किल हो जाता है। हम सब बहुत बार रास्तों पर लिखे हुए board पढ़ते हैं। उसमें लिखा होता है –

– “सतर्कता हटी-दुर्घटना घटी”,

– “एक भूल करे नुकसान, छीने खुशियाँ और मुस्कान”,

– “इतनी जल्दी न दुनिया छोड़ो, सुरक्षा से अब नाता जोड़ो”

– “सुरक्षा से न करो कोई मस्ती, वर्ना ज़िंदगी होगी सस्ती”

उससे आगे उन वाक्य का हमारे जीवन में कभी-कभी कोई उपयोग ही नहीं होता है। प्राकृतिक आपदाओं को अगर छोड़ दें तो ज़्यादातर दुर्घटनाएँ, हमारी कोई-न-कोई गलती का परिणाम होती हैं। अगर हम सतर्क रहें, आवश्यक नियमों का पालन करें तो हम अपने जीवन की रक्षा तो कर ही सकते हैं, लेकिन, बहुत बड़ी दुर्घटनाओं से भी हम समाज को बचा सकते हैं। कभी-कभी हमने देखा है कि work place पर safety को लेकर बहुत सूत्र लिखे गए होते हैं लेकिन जब देखते हैं तो कहीं पर उसका पालन नज़र नहीं आता है। मेरा तो आग्रह है कि महानगर पालिका, नगर पालिकाएँ जिनके पास fire brigade होते हैं उन्हें हफ़्ते में एक बार या महीने में एक बार अलग-अलग स्कूलों में जा करके स्कूल के बच्चों के सामने mock drill करना चाहिये। उससे दो फायदे होंगे – fire brigade को भी सतर्क रहने की आदत रहती है और नयी पीढ़ी को इसकी शिक्षा भी मिलती है और इसके लिए न कोई अलग खर्चा होता है – एक प्रकार से शिक्षा का ही एक क्रम बन जाता है और मैं हमेशा इस बात का आग्रह करता रहता हूँ। जहाँ तक आपदाओं की बात है, disasters की बात है, तो भारत भौगोलिक और जलवायु की दृष्टि से विविधताओं से भरा हुआ देश है। इस देश ने कई प्राक्रतिक और मानव-निर्मित आपदाएँ, जैसे रासायनिक एवं औद्योगिक दुर्घटनाओं को झेला है। आज National Disaster Management Authority यानी NDMA देश में आपदा-प्रबंधन की अगुवाई कर रहा है। भूकंप हो, बाढ़ हो, Cyclone हो, भूस्खलन हो जैसे विभिन्न आपदाओं को, rescue operation हो, NDMA तुरंत पहुँचता है। उन्होंने guidelines भी जारी किये हैं, साथ-साथ वो capacity building के लिए लगातार training के काम भी करते रहते हैं। बाढ़, cyclone के खतरे में होने वाले ज़िलों में volunteers के प्रशिक्षण के लिए भी ‘आपदा मित्र’ नाम की पहल की गई है। प्रशिक्षण और जागरूकता का बहुत महत्वपूर्ण रोल है। आज से दो-तीन साल पहले लू, Heat Wave से प्रतिवर्ष हजारों लोग अपनी जान गवाँ देते थे। इसके बाद NDMA ने heat wave के प्रबंधन के लिए workshop आयोजित किये, लोगों में जागरूकता पैदा करने के लिए अभियान चलाया। मौसम विभाग ने सटीक पूर्वानुमान लगाये। सबकी भागीदारी से एक अच्छा परिणाम सामने आया। 2017 में लू से होने वाली मौतों की संख्या अप्रत्याशित रूप से घटकर क़रीब-क़रीब 220 पर आ गई। इससे पता चलता है कि अगर हम सुरक्षा को प्राथमिकता देते हैं, हम सुरक्षा प्राप्त कर सकते हैं। समाज में इस प्रकार से काम करने वाले अनगिनत लोग हों, सामाजिक संगठन हों, जागरूक नागरिक हों – मैं उन सब की सराहना करना चाहता हूँ, जो कहीं पर भी आपदा हो मिनटों के अन्दर राहत और बचाव कार्य में जुट जाते हैं। और ऐसे गुमनाम heroes की संख्या कोई कम नहीं है। हमारी Fire and Rescue Services, National Disaster Response Forces, सशस्त्र सेनाएँ, Paramilitary Forces, ये भी संकट के समय पहुँचने वाले वीर बहादुर अपनी जान की परवाह किये बिना लोगों की मदद करते हैं। NCC, Scouts जैसे संगठन भी इन कामों को आजकल कर भी रहे हैं, training भी कर रहे हैं। पिछले दिनों हमने एक प्रयास ये भी शुरू किया है कि जैसे दुनिया के देशों में joint military exercise होती है तो क्यों न दुनिया के देश Disaster Management के लिए भी joint exercise करें। भारत ने इसको lead किया है – BIMSTEC, बांग्लादेश, भारत, म्यांमार, श्रीलंका, थाईलैंड, भूटान और नेपाल, इन देशों की एक joint disasters management exercise भी की गई, ये अपने आप में एक पहला और बड़ा मानवीय प्रयोग था। हमें एक risk conscious society बनना होगा। अपनी संस्कृति में हम मूल्यों की रक्षा, safety of values के बारे में तो अक्सर बातें करते हैं, लेकिन हमें values of safety, सुरक्षा के मूल्यों को भी समझना होगा। हमें उसे अपने जीवन का हिस्सा बनाना होगा। हमारे सामान्य जीवन में हमने देखा है कि हम सैकड़ों बार हवाई जहाज में यात्रा करते हैं और हवाई जहाज के अंदर air hostess प्रारंभ में safety के संबंध में सूचनाएँ देती है। हम सब ने सौ-बार इसको सुना होगा लेकिन आज हमें कोई हवाई जहाज में ले जा करके खड़ा करे और पूछे कि बताइये कौन सी चीज़ कहाँ है ? life jacket कहाँ है ? कैसे उपयोग करना चाहिए ? मैं दावे से कहता हूँ हममें से कोई नहीं बता पायेगा। मतलब ये हुआ कि क्या जानकारी देने की व्यवस्था थी ? थी। प्रत्यक्ष उस तरफ़ नज़र करके देखने के लिए सम्भावना थी ? थी। लेकिन हमने किया नहीं। क्यों ? क्योंकि हम स्वभाव से conscious नहीं हैं और इसलिए हमारे कान, हवाई जहाज बैठने के बाद सुनते तो हैं लेकिन ‘ये सूचना मेरे लिए है’ ऐसा हममें से किसी को लगता ही नहीं है। वैसा ही जीवन के हर क्षेत्र में हमारा अनुभव है। हम ये न सोचें कि safety किसी और के लिए है, अगर हम सब अपनी safety के लिए सजग हो जाएँ तो समाज की safety का भाव भी अन्तर्निहित होता है।

मेरे प्यारे देशवासियो, इस बार बजट में ‘स्वच्छ भारत’ के तहत गाँवों के लिए बायोगैस के माध्यम से waste to wealth और waste to energy बनाने पर ज़ोर दिया गया। इसके लिए पहल शुरू की गई और इसे नाम दिया गया ‘GOBAR-Dhan’ – Galvanizing Organic Bio-Agro Resources। इस ‘GOBAR-Dhan’ योजना का उद्देश्य है, गाँवों को स्वच्छ बनाना और पशुओं के गोबर और खेतों के ठोस अपशिष्ट पदार्थों को COMPOST और BIO-GAS में परिवर्तित कर, उससे धन और ऊर्जा generate करना। भारत में मवेशियों की आबादी पूरे विश्व में सबसे ज़्यादा है। भारत में मवेशियों की आबादी लगभग 30 करोड़ है और गोबर का उत्पादन प्रतिदिन लगभग 30 लाख टन है। कुछ यूरोपीय देश और चीन पशुओं के गोबर और अन्य जैविक अपशिष्ट का उपयोग ऊर्जा के उत्पादन के लिए करते हैं लेकिन भारत में इसकी पूर्ण क्षमता का उपयोग नहीं हो रहा था। ‘स्वच्छ भारत मिशन ग्रामीण’ के अंतर्गत अब इस दिशा में हम आगे बढ़ रहे हैं।

मवेशियों के गोबर, कृषि से निकलने वाले कचरे, रसोई घर से निकलने वाला कचरा, इन सबको बायोगैस आधारित उर्जा बनाने के लिए इस्तेमाल करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। ‘गोबर धन योजना’ के तहत ग्रामीण भारत में किसानों, बहनों, भाइयों को प्रोत्साहित किया जाएगा कि वो गोबर और कचरे को सिर्फ waste के रूप में नहीं बल्कि आय के स्रोत के रूप में देखें। ‘गोबर धन योजना’ से ग्रामीण क्षेत्रों को कई लाभ मिलेंगे। गांव को स्वच्छ रखने में मदद मिलेगी। पशु-आरोग्य बेहतर होगा और उत्पादकता बढ़ेगी। बायोगैस से खाना पकाने और lighting के लिए ऊर्जा के मामले में आत्मनिर्भरता बढ़ेगी। किसानों एवं पशुपालकों को आमदनी बढ़ाने में मदद मिलेगी। Waste collection, transportation, बायोगैस की बिक्री आदि के लिए नई नौकरियों के अवसर मिलेंगे। ‘गोबर धन योजना’ के सुचारू व्यवस्था के लिए एक online trading platform भी बनाया जाएगा जो किसानों को खरीदारों से connect करेगा ताकि किसानों को गोबर और agriculture waste का सही दाम मिल सके। मैं उद्यमियों, विशेष रूप से ग्रामीण भारत में रह रही अपनी बहनों से आग्रह करता हूँ कि आप आगे आयें। Self Help Group बनाकर, सहकारी समितियां बनाकर इस अवसर का पूरा लाभ उठाएं। मैं आपको आमंत्रित करता हूँ clean energy and green jobs के इस आन्दोलन के भागीदार बनें। अपने गाँव में waste को wealth में परिवर्तन करने और गोबर से गोबर-धन बनाने की दिशा में पहल करें।

मेरे प्यारे देशवासियो, आज तक हम music festival, food festival, film festival न जाने कितने-कितने प्रकार के festival के बारे में सुनते आए हैं । लेकिन छत्तीसगढ़ के रायपुर में एक अनूठा प्रयास करते हुए राज्य का पहला ‘कचरा महोत्सव’ आयोजित किया गया। रायपुर नगर निगम द्वारा आयोजित इस महोत्सव के पीछे जो उद्देश्य था वह था स्वच्छता को लेकर जागरूकता। शहर के waste का creatively use करना और garbage को re-use करने के विभिन्न तरीकों के बारे में जागरूकता पैदा करना। इस महोत्सव के दौरान तरह-तरह की activity हुई जिसमें छात्रों से लेकर बड़ों तक, हर कोई शामिल हुआ। कचरे का उपयोग करके अलग-अलग तरह की कलाकृतियाँ बनाई गईं। Waste management के सभी पहलूओं पर लोगों को शिक्षित करने के लिए workshop आयोजित किये गए। स्वच्छता के theme पर music performance हुई। Art work बनाए गए। रायपुर से प्रेरित होकर अन्य ज़िलों में भी अलग-अलग तरह के कचरा उत्सव हुए। हर किसी ने अपनी-अपनी तरफ से पहल करते हुए स्वच्छता को लेकर innovative ideas, share किये, चर्चाएं की, कविता पाठ हुए। स्वच्छता को लेकर एक उत्सव-सा माहौल तैयार हो गया। खासकर स्कूली बच्चों ने जिस तरह बढ़-चढ़ करके भाग लिया, वह अद्भुत था। Waste management और स्वच्छता के महत्व को जिस अभिनव तरीक़े से इस महोत्सव में प्रदर्शित किया गया, इसके लिए रायपुर नगर निगम, पूरे छत्तीसगढ़ की जनता और वहां की सरकार और प्रशासन को मैं ढ़ेरों बधाइयाँ देता हूँ।

हर वर्ष 8 मार्च को ‘अन्तरराष्ट्रीय महिला-दिवस’ मनाया जाता है। देश और दुनिया में कई सारे कार्यक्रम होते हैं। इस दिन देश में ‘नारी शक्ति पुरस्कार’ से ऐसी महिलाओं को सत्कार भी किया जाता है जिन्होंने बीते दिनों में भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में अनुकरणीय कार्य किया हो। आज देश women development से आगे women-led development की ओर बढ़ रहा है। आज हम महिला विकास से आगे महिला के नेतृत्व में विकास की बात कर रहे हैं। इस अवसर पर मुझे स्वामी विवेकानंद के वचन याद आते हैं। उन्होंने कहा था ‘the idea of perfect womanhood is perfect independence’- सवा-सौ वर्ष पहले स्वामी जी का यह विचार भारतीय संस्कृति में नारी शक्ति के चिंतन को व्यक्त करता है। आज सामाजिक, आर्थिक जीवन के हर क्षेत्र में महिलाओं की बराबरी की भागीदारी सुनिश्चित करना यह हम सबका कर्तव्य है, यह हम सबकी जिम्मेवारी है। हम उस परंपरा का हिस्सा है, जहाँ पुरुषों की पहचान नारियों से होती थी। यशोदा-नंदन, कौशल्या-नंदन, गांधारी-पुत्र, यही पहचान होती थी किसी बेटे की। आज हमारी नारी शक्ति ने अपने कार्यों से आत्मबल और आत्मविश्वास का परिचय दिया है। स्वयं को आत्मनिर्भर बनाया है। उन्होंने ख़ुद को तो आगे बढाया ही है, साथ ही देश और समाज को भी आगे बढ़ाने और एक नए मुक़ाम पर ले जाने का काम किया है। आख़िर हमारा ‘New India’ का सपना यही तो है जहाँ नारी सशक्त हो, सबल हो, देश के समग्र विकास में बराबर की भागीदार हो। पिछले दिनों मुझे एक बहुत ही बढ़िया सुझाव किसी महाशय ने दिया था। उन्होंने सुझाव दिया था कि 8 मार्च, ‘महिला दिवस’ मनाने के भाँति- भाँति के कार्यक्रम होते हैं। क्या हर गाँव-शहर में जिन्होंने 100 वर्ष पूर्ण किये हैं ? ऐसी माताओं-बहनों का सम्मान का कार्यक्रम आयोजित हो सकता है क्या ? और उसमें एक लम्बे जीवन की बातें की जा सकती हैं क्या ? मुझे विचार अच्छा लगा, आप तक पहुँचा रहा हूँ। नारी शक्ति क्या कर सकती है, आपको ढ़ेर सारे उदाहरण मिलेंगे। अगर आप अगल-बगल में झाकेंगे तो कुछ-न-कुछ ऐसी कहानियाँ आपके जीवन को प्रेरणा देंगी। अभी-अभी झारखण्ड से मुझे एक समाचार मिला। ‘स्वच्छ भारत अभियान’ के अंतर्गत झारखण्ड में लगभग 15 लाख महिलाओं ने – यह आँकड़ा छोटा नहीं है। 15 लाख महिलाओं ने संगठित होकर एक माह का स्वच्छता अभियान चलाया। 26 जनवरी, 2018 से प्रारंभ हुए इस अभियान के अंतर्गत मात्र 20 दिन में इन महिलाओं ने 1 लाख 70 हजार शौचालयों का निर्माण कर एक नई मिसाल कायम की है। इसमें करीब 1 लाख सखी मंडल सम्मिलित हैं। 14 लाख महिलाएँ, 2 हजार महिला पंचायत प्रतिनिधि, 29 हजार जल-सहिया, 10 हज़ार महिला स्वच्छाग्रही तथा 50 हजार महिला राज मिस्त्री। आप कल्पना कर सकते हैं कि कितनी बड़ी घटना है! झारखण्ड की इन महिलाओं ने दिखाया है कि नारी शक्ति, स्वच्छ भारत अभियान की एक ऐसी शक्ति है, जो सामान्य जीवन में स्वच्छता के अभियान को, स्वच्छता के संस्कार को प्रभावी ढंग से जन-सामान्य के स्वभाव में परिवर्तित करके रहेगी।

भाइयो-बहनो, अभी दो दिन पहले मैं न्यूज़ में देख रहा था कि एलीफेंटा द्वीप के तीन गाँवों में आज़ादी के 70 वर्ष बाद बिजली पहुँची है और इसे लेकर वहाँ के लोगों में कितना हर्ष और उत्साह है। आप सब भलीभाँति जानते हैं, एलीफेंटा द्वीप, मुंबई से समुद्र में दस किलोमीटर दूर है। यह पर्यटन का एक बहुत बड़ा और आकर्षक केंद्र है। एलीफेंटा की गुफाएँ, UNESCO के World Heritage हैं। वहाँ हर दिन देश-विदेश से बहुत बड़ी मात्रा में पर्यटक आते हैं। एक महत्वपूर्ण tourist destination है। मुझे यह बात जानकर हैरानी हुई कि मुम्बई के पास होने और पर्यटन का इतना बड़ा केंद्र होने के बावजूद, आज़ादी के इतने वर्षों तक एलीफेंटा में बिजली नहीं पहुँची हुई। 70 वर्षों तक एलीफेंटा द्वीप के तीन गाँव राजबंदर, मोरबंदर और सेंतबंदर, वहाँ के लोगों की ज़िन्दगी में जो अँधेरा छाया था, अब जाकर वह अँधेरा छँटा है और उनका जीवन रोशन हुआ है। मैं वहाँ के प्रशासन और जनता को बधाई देता हूँ। मुझे ख़ुशी है कि अब एलीफेंटा के गाँव और एलीफेंटा की गुफाएँ बिजली से रोशन होंगे। ये सिर्फ़ बिजली नहीं, लेकिन विकास के दौर की एक नयी शुरुआत है। देशवासियो का जीवन रोशन हो, उनके जीवन में खुशियाँ आएँ इससे बढकर संतोष और ख़ुशी का पल क्या हो सकता है।

मेरे प्यारे भाइयो-बहनो, अभी-अभी हम लोगों ने शिवरात्रि का महोत्सव मनाया। अब मार्च का महीना लहलहाते फसलों से सजे खेत, अठखेलियाँ करती गेंहूँ की सुनहरी बालियाँ और मन को पुलकित करने वाली आम के मंजर की शोभा – यही तो इस महीने की विशेषता है। लेकिन यह महीना होली के त्योहार के लिए भी हम सभी का अत्यंत प्रिय है। दो मार्च को पूरा देश होली का उत्सव हर्षोल्लास से मनाएगा। होली में जितना महत्व रंगों का है उतना ही महत्व ‘होलिका दहन’ का भी है क्योंकि यह दिन बुराइयों को अग्नि में जलाकर नष्ट करने का दिन है। होली सारे मन-मुटाव भूल कर एक साथ मिल बैठने, एक-दूसरे के सुख-आनंद में सहभागी बनने का शुभ अवसर है और प्रेम एकता तथा भाई-चारे का सन्देश देता है। आप सभी देशवासियों को होली के रंगोत्सव की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ, रंग भरी शुभकामनाएँ। यह पर्व हमारे देशवासियों के जीवन में रंगबिरंगी खुशियों से भरा हुआ रहे – यही शुभकामना। मेरे प्यारे देशवासियो, बहुत-बहुत धन्यवाद नमस्कार।

Suvash Chandra Choudhary

Editor-in-Chief

You cannot copy content of this page