क्या हुकुमदेव नारायण यादव भारत के अगले उप राष्ट्रपति होंगे ?

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सुभाष चौधरी /प्रधान सम्पादक 

नई दिल्ली : देश की राजधानी से लेकर बिहार राज्य की राजधानी पटना के राजनीतिक गलियारों में चर्चा जोरों पर है कि भाजपा के वरिष्ठ नेता और बिहार के मधुबनी लोकसभा क्षेत्र से सांसद हुकुमदेव नारायण यादव भारत के अगले उप राष्ट्रपति हो सकते हैं। भाजपा के कई दावेदारों में श्री यादव को पीएम नरेन्द्र मोदी का सबसे पसंदीदा उम्मीदवार बताया जा रहा है. संभावना है कि इस बार उपराष्ट्रपति पद का चुनाव 10 अगस्त 2017 से पूर्व कराये जा सकते हैं क्योंकि वर्तमान उपराष्ट्रपति डॉ. हामिद अंसारी का कार्यकाल 19 अगस्त 2017 को पूर्ण होगा.

 

डॉ. हामिद अंसारी के कार्यकाल की समाप्ति की आहट के साथ ही देश के नए उपराष्ट्रपति के चुनाव को लेकर कयास लगाए जाने लगे हैं. कई राजनितिक विश्लेषक अपने अपने  तर्क के आधार पर इस पद की उम्मीदवारी के लिए बिहार के मधुबनी लोकसभा क्षेत्र से सांसद हुकुमदेव नारायण यादव के नाम पर भाजपा में सहमति होने के संकेत दे रहे हैं. अधिकतर खबरची और विश्लेषक हुकुमदेव को पीएम मोदी की पहली पसंद बता कर उनके उपराष्ट्रपति बनने की संभवना पर मोहर लगा रहे है. अगर ऐसा होता है तो वे बिहार राज्य से किसी उच्च संवैधानिक पद पर आसीन होने वाले वे दूसरे राजनेता होंगे जबकि पहले उपराष्ट्रपति होंगे। उल्लेखनीय है कि आजादी के बाद देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद यानी पहले राष्ट्रपति पद पर चुने जाने वाले डॉ. राजेन्द्र प्रसाद थे जो बिहार के निवासी थे और वे 1952 से 1962 तक इस पद पर 10 साल रहे. इसलिए बिहार के किसी नेता को संवैधानिक पद पर बैठने का सौभाग्य संभवतः लगभग 54-55 वर्ष बाद मिलेगा.

 

अपनी उम्र को दरकिनार कर संसद में सदा सक्रीय रहकर अपने क्षेत्र व कृषि सम्बन्धी समस्याओं को रखने व चर्चा में भाग लेने वाले हुकुमदेव यादव अच्छे वक्ता माने जाते हैं जबकि भाजपा के पुराने नेताओं की कतार में पार्टी के अनुशासन का अक्षरशः अनुसरण करने की छवि भी उनके हक़ में जा सकती है.  जब विपक्ष में थे तब भी और अब सता पक्ष में रहने पर भी अपने खास अंदाज में संसद में हावी रहते हैं.

 

समझा जाता है कि हुकुमदेव यादव ओबीसी श्रेणी से आते हैं और उत्तर प्रदेश में ओबीसी वोटरों को गोलबंद करने से मिली अपार सफलता के बाद भाजपा देश भर में ओबीसी मतदाताओं को एक नया संदेश देकर उन्हें अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश कर सकती है. दूसरी तरफ पीएम नरेन्द्र मोदी, बिहार में लालू-नीतीश के जातीय समीकरण व राजनीतिक महा गठबंधन में दरार पैदा कर भाजपा की राहें आसान करना चाहते हैं.

 

इसमें कोई दो राय नहीं यह राजनितिक रूप से भाजपा के लिए बेहद महत्व का है क्योंकि देश के उपराष्ट्रपति ही उच्च सदन यानि राज्यसभा के पदेन सभापति होते हैं इसलिए भी इस पद पर भाजपा प्रमुख अमित शाह और पीएम मोदी, ऐसे राजनेता को बैठना चाहते हैं जिससे एक तीर से कई राजनीतिक शिकार करना संभव हो. और इस सांचे में हुकुमदेव नारायण यादव फिट बैठते हैं.

 

यह जग जाहिर है कि कांग्रेस समर्थक डॉ हामिद अंसारी के उपराष्ट्रपति बनने में भाजपा या एनडीए को दो बार हार का सामना करना पड़ा है. इनमें एक बार एनडीए प्रत्याशी के रूप में नजमा हेपतुल्लाह जबकि दूसरी बार वरिष्ठ भाजपा नेता जसबंत सिंह को प्रत्याशी बना कर. वैसे तो डॉ अंसारी की कार्यशैली राज्यसभा के सभापति के रूप में बेहद संतुलित रही है लेकिन लोकपाल बिल 2011 पर चर्चा के दौरान राज्यसभा की बैठक को अचानक अनिश्चितकालीन स्थगित करने के उनके निर्णय पर सवाल खड़े हुए थे. दूसरी  तरफ उन्होंने लोक सभा टी वी की तरह राज्य सभा टी वी अलग लांच कर राज्यसभा की सार्वभौमिकता को स्थापित कर अपनी स्वायत्तता का परिचय दिया. गौरतलब है कि लोक सभा टी वी सरकार के पक्ष में कार्यक्रम प्रसारित करने के लिए प्रसिद्ध है जबकि राज्यसभा की राह अलग है. इसलिए भी भाजपा को राज्यसभा में अपना सभापति चाहिए. 

 

हालाँकि इस पद के लिए और कई हाई प्रोफाइल नाम भी चर्चा में हैं. इनमें प्रमुख रूप से हाल ही में देश के प्रधान न्यायाधीश के पद से सेवा निवृत्त हुए न्यायमूर्ति तीरथ सिंह ठाकुर, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रमुख एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद पवार और वर्त्तमान में मणिपुर की राज्यपाल नजमा हेपतुल्लाह के नाम भी इस दौर में शामिल हैं. लेकिन राजनीतिक नफा नुक्सान की दृष्टि से न्यायमूर्ति टी एस ठाकुर और शरद पवार का पलड़ा हल्का माना जा रहा है जबकि नजमा हेपतुल्लाह को महिला एवं अल्पसंख्यक वर्ग से होने का फायदा मिला सकता है. हाल ही में पांच राज्यों के चुनाव ख़ास कर उत्तर प्रदेश के विधान सभा चुनाव के दौरान भाजपा को मुश्लिम महिला मतदाताओं का भरपूर समर्थन मिलने के कारन और आगामी लोक सभा चुनाव 2019 में इस आधार को और मजबूत करने की चाहत में नजमा का नाम भी आगे लाया जा सकता है. लेकिन नजमा को भाजपा वर्ष 2007 में इस पद के लिए अपने प्रत्याशी के रूप में उतार चुकी है जब डॉ. अंसारी ने उन्हें 233 मतों से हराया था. इसलिए आशंका इस बात की है कि इस बार पार्टी उनके नाम पर विचार नहीं करेगी.

 

इनसे इतर उत्तर प्रदेश विधान सभा के पूर्व अध्यक्ष एवं वर्तमान में पश्चिम बंगाल के राज्यपाल केसरी नाथ त्रिपाठी का नाम भी तैर रहा है. भाजपा नेताओं को लगता है कि उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में पार्टी को अभी अभी अप्रत्याशित बढ़त हासिल हुयी है इसलिए उस प्रदेश से तत्काल किसी ब्राह्मण को ऐसे पद पर बैठाने से अपेक्षित राजनीतिक लाभ मिलने के चांस कम ही दिखते हैं.

Suvash Chandra Choudhary

Editor-in-Chief

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