लखनऊ : उत्तर प्रदेश में सत्तासीन पार्टी सपा में भूचाल आ गया है. अभी प्रदेश के सीएम अखिलेश ने अपने चाचा शिवपाल सहित चार मंत्रियों को केबिनेट से बाहर किया ही था कि उनके पिता व सपा प्रमुख मुलायाम के आदेश पर रामगोपाल यादव को महासचिव पद से हटाते हुए प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल यादव ने पार्टी से छह साल के लिए बाहर कर दिया. यह घोषणा उन्होंने पत्रकारों को मुलायम सिंह के आदेश की प्रति पढ़कर सुनाते हुए की. इससे स्पष्ट है कि पार्टी में अब दोनों ही गुट टिट फॉर टेट में विश्वास करते हुए अपनी अपनी डफली व अपना अपना राग बजाने की राह पर निकल पड़े हैं.
मुलायम के अमर प्रेम से उपजा विवाद
उल्लेखनीय है कि उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ आजादी से पूर्व के समय से ही कई बड़ी राजनीतिक घटनाओं का साक्षी बनता रहा है लेकिन सपा परिवार के इस ड्रामा का साक्षी बनकर उसे भी ऐसा लगता होगा कि यह ड्रामा पूरी तरह राजनीतिक स्वार्थ के लिए हो रहा है जो निहायत ही निकृष्ट श्रेणी की राजनीति लगती है. एक तरफ मुलायम सिंह अपने भाई शिवपाल व अमर सिंह का साथ छोड़ने को तैयार नहीं हैं जबकि अखिलेश ने इसे अपने अहम् का विषय बना कर अमर सिंह के नाम पर अपने चाचा शिवपाल यादव को सदा के लिए राजनीतिक रूप से वर्फ में लगाने की ठान ली है. क्योंकि उन्हें लगता है कि आने वाले समय में आगामी चुनाव में सीएम पद के लिए शिवपाल उन्हें चुनौती दे सकते हैं. साथ ही मुलायम सिंह भी उसका साथ नहीं दे सकते हैं. गौरतलब है कि पहले भी शिवपाल ही वह व्यक्ति थे जों अखिलेश को तब सीएम बनाने का विरोध कर रहे थे.
अखिलेश अलग गुट बनाने को तैयार
बताया जाता है कि शनिवार को पार्टी के एमएलसी उदयवीर सिंह को पार्टी से निकाले जाने के बाद से राजनीतिक घटनाक्रम लखनऊ में तेजी से घूमने लगा. सुबह होते सीएम अखिलेश ने चाचा शिवपाल को केबिनेट से बर्खास्त कर समझौता नहीं करने का सन्देश दे डाला. कहा जा रहा है कि पार्टी के पांच बड़े नेता मुलायम सिंह से मिलकर विवाद को सुलझाने की कोशिश में लगे थे ठीक उसी समय सपा के महासचिव रामगोपाल यादव ने मुलायम सिंह को एक पत्र लिख कर इस मुहीम को झटका दे दिया साथ ही शिवपाल को भी निकालने की घोषणा कर दी. उनके साथ तीन और मंत्रियों को केबिनेट से बर्खास्त किया गया है.
रामगोपाल पर भाजपा से हाथ मिलाने के आरोप
दोपहर होते होते शिवपाल व मुलायम के बीच हुयी लम्बी बैठक के बाद फिर एक बड़ा फैसला लेने का निर्णय ले लिया गया. आज की प्रेस वार्ता में शिवपाल यादव ने रामगोपाल यादव पर गंभीर आरोप लागते हुए कहा कि प्रोफ़ेसर साहब ने हमेशा पार्टी के खिलफ षड़यंत्र किया है. उन्होंने नोएडा घोटाले में अपने समबंधियों को बचाने के लिए भाजपा के नेताओं से मुलाकात की और सपा को कमजोर करने का षड़यंत्र रचा.
आरोप से दुखी रामगोपाल
दूसरी तरफ रामगोपाल यादव ने पार्ट्री से निकाले जाने के मामले पर कहा कि उन्हें भाजपा से हाथ मिलाने के आरोप से बेहद दुःख हुआ है. पार्टी से निकाले जाने का दुःख नहीं है. जबकि शनिवार को पार्टी से निकाले गए एमएलसी उदयवीर सिंह ने कहा कि सपा ने 2017 के चुनाव में अखिलेश यादव को सीएम प्रत्याशी के रूप में घोषित किया है इसलिए वे उनके साथ हैं. मैंने तो केवल उन्हें और मजबूत करने की बात की थी. रामगोपाल को निकालने के मामले पर उनका कहना है कि पार्टी का फैसला स्वीकार है और पार्टी की होने वाली आगामी बैठक में सब ठीक हो जाएगा.
भाजपा का किसी भूमिका से इनकार
भाजपा प्रवक्ता संविद पत्रा ने सपा के टूट में भाजपा की किसी भी तरह की भूमिका से इनकार किया है. उनका कहना है कि उत्तर प्रदेश में परिवारवाद से जनता निजात चाहती है. और सपा परिवार का गठ्वंधन केवल सत्ता लोलुपता के कारण है. इसे तो एक दिन टूटना ही था.
कांग्रेस के साथ जा सकते हैं अखिलेश ?
राजनीतिक हलकों में चर्चा जोरों पर है कि अखिलेश यादव अपनी अलग पार्टी भी बना सकते हैं. उन्होंने यह तय कर लिया है कि वे मुलायम गुट के साथ अब नहीं रहेंगे अगर उन्हें पुनः सीएम बनना है तो . इसलिए वे अपना गुट अलग कर कांग्रेस पार्टी के साथ चुनावी समझौता कर सकते हैं. लेकिन शिवपाल यादव ने जिस तरह रामगोपाल यादव पर भाजपा के नेताओं से हाथ मिलाने का आरोप लगाया है उससे अखिलेश के कांग्रेस के साथ जाने के कयास पर सवाल खड़े होते हैं. क्योंकि कहा यह जाता है कि रामगोपाल यादव के इशारे पर ही अखिलेश चलते हैं और रामगोपाल अमर सिंह के कट्टर विरोधी हैं जबकि शिवपाल से उनका छतीश का आंकड़ा है.
अब देखना होगा कि रामगोपाल को निकाले जाने के कदम की प्रतिक्रिया में अखिलेश अगला कदम क्या उठाते हैं ? संभव है अगले दो दिनों में स्थिति स्पष्ट हो .