एस सी एस टी एक्ट पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा ?

Font Size

क्यों नहीं दिया निर्णय पर स्टे आर्डर ? 

 

सुभाष चौधरी/प्रधान संपादक 

नई दिल्ली : देश में जिस एससीएसटी एक्ट को लेकर पिछले दो दिनों से बवाल मचा हुआ है उसमें हुए बदलाव के विरोध में केंद्र सरकार द्वारा दायर पुर्नविचार याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को सुनवाई की. सुनवाई के दौरान सरकार की मांग को नकारते हुए सर्वोच्च अदालत ने अपने फैसले पर रोक लगाने से साफ़ इनकार कर दिया । जाहिर है इस निराने से उन प्रदर्शनकारियों को बड़ा झटका लगा जो दो दिनों से सड़कों पर उत्पात मचा रहे हैं  । मीडिया की खबर के अनुसार कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अदालत इस अधिनियम के खिलाफ नहीं है लेकिन किसी बेगुनाह को सजा नहीं मिलनी चाहिए।

खबर है कि  सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों से दो दिन में अपना जवाब दाखिल करने को कहा है और इस मामले की अगली सुनवाई 10 दिन बाद होगी.

सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए चिंता व्यक्त की कि विरोध प्रदर्शन रहे लोगों ने अदालत के फैसले को ठीक से नहीं पढ़ा और वे कुछ स्वार्थी तत्वों के कहने पर गुमराह हो रहे  हैं। कोर्ट ने साफ़ तौर पर कहा कि कानून के प्रावधानों को नरम नहीं किया गया है केवल बेगुनाह व्यक्तियों की अनावश्यक गिरफ्तारी के मामले में उनके हितों की रक्षा की गयी है।

 

उल्लेखनीय है कि मुख्य न्यायाधीश ने इस महत्वपूर्ण विवाद की सुनवाई के लिए जस्टिस आदर्श कुमार गोयल और जस्टिस यूयू ललित की अगुवाई में बेंच का गठन किया है। बताया जाता है कि उच्चतम न्यायालय की पीठ ने अटॉर्नी जनरल से कहा है कि वह प्रधान न्यायाधीश से उसी पीठ के गठन का अनुरोध करें जिसने एससी एसटी एक्ट पर फैसला सुनाया था।

गौरतलब है कि एससी एसटी एक्ट पर आये सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद सोमवार को देश भर के विभिन्न  दलित संगठनों ने भारत बंद का आह्वान किया था. इसमें  कई राज्यों में दलित समाज के लोग उग्र हो गए और  हिंसा और आगजनी की दर्जनों घटनाएँ हुयीं. इसमें लगभग 14 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई और दर्जनों  लोग घायल हो गए।

इस एक्ट में संशोधन के खिलाफ मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, बिहार और पंजाब में प्रदर्शन करने वाले लोग हिंसक हो गए और जम कर तोड़फोड़ की. संचार एवं रेल परिवहन बाधित रहे। ग्वालियर शहर के चार थाना क्षेत्रों और कुछ कस्बों में कर्फ्यू तथा तीन शहरों में धारा 144 लागू करनी पड़ी। खबर है कि उत्तर प्रदेश में हापुड़, आगरा, मेरठ, सहरानपुर और वाराणसी में आन्दोलनकारियों ने पुलिस पर पत्थर बरसाए और दुकाने भी लूट ली. भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पुलिस को आंसू गैस गोले छोड़ने पड़े जबकि कई जगह गोलियाँ भी चलानी पड़ी .

 

अदालत ने क्या निर्णय दिया था ?

 

सर्वोच्च अदालत ने गत 20 मार्च को दिए अपने निर्णय  साफ़ किया था कि इस एक्ट के तहत आरोपियों की गिरफ्तारी अनिवार्य नहीं है. इस प्रकार के मामले में प्रथमदृष्टया जांच और वरिष्ठ अधिकारियों की अनुमति के बाद ही कठोर कार्रवाई की जा सकती है। कोर्ट ने कहा था कि यदि प्रथम दृष्टया मामला नहीं बनता है तो अग्रिम जमानत देने पर प्रतिबंध नहीं है। यह भी कहा था कि एफआईआर दर्ज होने के बाद आरोपी की तत्काल गिरफ्तारी नहीं होगी। गिरफ्तारी से पूर्व पीड़ित पक्ष द्वारा लगाए गए आरोपों की जांच डीएसपी स्तर का अधिकारी  करेगा।

निर्णय में यह भी स्पष्ट किया गया था कि अगर  कोई सरकारी कर्मचारी अधिनियम का दुरुपयोग करता है तो उसकी गिरफ्तारी के लिए विभाग के वरिष्ठ अधिकारी की अनुमति जरूरी होगी। कोई बेगुनाह अनावश्यक इस एक्ट का शिकार न बने इसलिए कोर्ट ने कहा था कि अगर किसी सामान्य जनता पर भी इस एक्ट के तहत मामला दर्ज होता है, तो उसकी भी गिरफ्तारी तुरंत नहीं होगी। जाँच अधिकारी को उसकी गिरफ्तारी के लिए एसपी या एसएसपी से इजाजत लेनी होगी। देश में मचे बवाल के बाद केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने सरकार की स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा है कि सरकार सुप्रीम कोर्ट के इस तर्क से असहमत है।

 

क्यों उठा एससी एसटी एक्ट में संशोधन का मुद्दा ? 

 

 एससी/एसटी कानून पर कहाँ उठा सवाल ? 

– महाराष्ट्र में शिक्षा विभाग के स्टोर कीपर ने राज्य के तकनीकी शिक्षा निदेशक सुभाष काशीनाथ महाजन के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी। स्टोर कीपर ने शिकायत में आरोप लगाया था कि महाजन ने अपने अधीनस्थ उन दो अिधकारियों के खिलाफ कार्रवाई पर रोक लगा दी है, जिन्होंने उसकी वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट में जातिसूचक टिप्पणी की थी।

 

क्यों बढ़ा विवाद ? 

– पुलिस ने जब दोनों आरोपी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए उनके वरिष्ठ अधिकारी महाजन से इजाजत मांगी, तो वह नहीं दी गई। इस पर पुलिस ने महाजन पर भी केस दर्ज कर लिया। महाजन का तर्क था कि अगर किसी अनुसूचित जाति के व्यक्ति के खिलाफ ईमानदार टिप्पणी करना अपराध हो जाएगा तो इससे काम करना मुश्किल जो जाएगा।

कैसे आया सुप्रीम कोर्ट में मामला ? 

– 5 मई 2017 को काशीनाथ महाजन ने एफआईआर खारिज कराने हाईकोर्ट पहुंचे। पर हाईकोर्ट ने उन्हें राहत देने से इनकार कर दिया। एफआईआर खारिज नहीं हुई तो महाजन ने हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। इस पर शीर्ष अदालत ने 20 मार्च को उन पर एफआईआर हटाने का आदेश दिया।

You cannot copy content of this page