— सामाग्री जुटाने की चल रही बड़ी कवायद
— दर्जनों विद्वानों से सहायता का अनुरोध
— पांच सदस्यीय परामर्शदातृ समिति गठित
दरभंगा। अपने स्थापना काल से ही संस्कृत व संस्कृति को मजबूती प्रदान करने का सबसे ठोस आधार रहे कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय अब पांडित्य परम्पराओं के अतीत को खंगालने में जुट गया है। विश्वविद्यालय की योजना है कि 15वीं सदी से लेकर 20वीं सदी तक बिहार की एवम खासकर मिथिला की पांडित्य परम्परा कैसी थी ? इस कालावधि में कौन कौन से वैसे विद्वान थे जिन्होंने उक्त परम्पराओं को परवान चढ़ाया? ऐसी ही अन्य जानकारियों के साथ उन तमाम विद्वानों के योगदान व जीवन वृत्त को संकलित कर शोधपरख ग्रन्थ तैयार किया जाएगा। यह ग्रन्थ दो भागों में होगा। पहला- मिथिला की पांडित्य परम्परा व दूसरा, मिथिला के बाहर बिहार की पांडित्य परम्परा।
उक्त जानकारी देने के बाद पीआरओ निशिकांत ने स्थिति को और स्पष्ट करते हुए कहा कि कुलपति डॉ सर्वनारायण झा की मंशा है कि मिथिला का पांडित्य गौरव फिर से हासिल हो और इसके लिए व्यापक होमवर्क भी किया जा रहा है। बता दें कि 15वीं से 20वीं सदी के बीच पांडित्य परम्पराओं के वाहक व रक्षक वैसे सभी विद्वानों का परिचय संकलित किया जा रहा है जो मिथिला के निवासी रहे हों और उनकी कर्मभूमि भी मिथिला ही रही है। साथ ही मिथिला के निवासी लेकिन मिथिला से बाहर कार्य किये हों और अन्य प्रांतों के निवासी मिथिला में कार्य करने वाले विद्वानों पर ही मुख्य फोकस किया गया है।
उन्होंने बताया कि इस प्रस्तावित ग्रन्थ की महत्ता को बढ़ाने के लिए नेपाल, पूरी, बनारस समेत दक्षिण के कई राज्यों के कोई पांच दर्जन चिह्नित विद्वानों को प्रकाशन विभाग से हाल ही में पत्र लिखा गया है और उनसे ग्रन्थों को तैयार करने में महती मदद मांगी गई है। इतना ही नहीं ग्रन्थ का स्वरूप व विषय सामाग्री ऐतिहासिक हो इसके लिए पांच सदस्यीय परामर्शदातृ समिति भी गठित की गई है। इस समिति में पूर्व वीसी डॉ देवनारायण झा व डॉ रामचन्द्र झा समेत डॉ शशिनाथ झा, डॉ श्रीपति त्रिपाठी व प्रधानाचार्य डॉ अरविंद शर्मा को शामिल किया गया है। अनुरोध पत्र के आलोक में विद्वानों से प्रकाश्य सामाग्री संकलन करने की भी जिम्मेदारी इसी समिति को दी गई है और इस निमित्त किसी मामले में कन्फ्यूजन की स्थिति में यही सभी विद्वान सदस्य समस्याओं को भी निपटाएंगे।
गौरवशाली रही है यहां की पांडित्य परम्परा : वीसी
संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ सर्व नारायण झा ने कहा कि मिथिला की परम्पराएं सदियों से गौरवशाली रही है और अनुकरणीय भी। यहां के विद्वानों से बाहर के संस्कृति अनुरागियों ने परम्पराओं के निर्वहन के तौर- तरीके सीखे हैं। हालिया स्थिति थोड़ा चिंतनीय है ,दुखदायी है। इन्हीं कारणों से संस्कृत विश्वविद्यालय ने पांडित्य परम्पराओं पर ग्रन्थ तैयार करने की ठानी है और इस ओर काम भी शुरू हो चुका है।
उन्होंने कहा कि उम्मीद ही नहीं पूरा भरोसा है कि प्रस्तावित ग्रन्थ कई मामलों में ऐतिहासिक होगा और इससे वर्तमान परिपेक्ष्य में तुलनात्मक अध्ययन आसान हो जाएगा। नई पीढ़ियों के लिए यह ग्रन्थ एक थाथी होगी जिससे वे पौराणिक पांडित्य परम्पराओं से रूबरू होंगे।उन्हें साफ अहसास होगा कि हमारे पुरखे किन विचारधाराओं के हिमायती थे। ग्रन्थों से गुजरकर वे निश्चित तौर पर आत्ममंथन करेंगे कि हम कहां थे और कहां आ गए।