कोरोना महामारी से शिक्षा भी नहीं अछूती, निजी स्कूलों से गायब लाखों बच्चे, नहीं कराया है पंजीयन

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कोरोना काल की सार्वभौमिक रही है बिडंवना, बिना पढाई के बच्चे किए जा रहे हैं प्रमोट

गुडग़ांव, 11 जुलाई: कोरोना महामारी काल में जहां समाज व औद्योगिक क्षेत्र प्रभावित हुए बिना नहीं रहा है, वहीं शिक्षा क्षेत्र भी कोरोना से बड़ा प्रभावित रहा है। कोरोना काल में कुछ समय को छोडक़र करीब डेढ़ वर्ष तक शिक्षण संस्थाएं बंद पड़ी हैं। कोरोना की दूसरी लहर में भी शिक्षण संस्थाएं आज तक बंद हैं। उन्हें खोलने के प्रयास किए जा रहे हैं। प्रदेश में शिक्षा व्यवस्था कोरोना काल में बुरी तरह से प्रभावित हुई है। प्रदेश के नए शिक्षा सत्र में निजी स्कूलों से करीब साढ़े 12 लाख बच्चों का यह नहीं पता चला कि वे कहां हैं। यानि कि उन्होंने नए सत्र में प्रवेश नहीं लिया है।

शिक्षा व्यवस्था की जानकारी रखने वालों का कहना है कि निजी स्कूलों द्वारा हरियाणा शिक्षा निदेशालय को बताया गया था कि नए शिक्षा सत्र के लिए 28 जून तक 17.31 लाख बच्चों ने उनके स्कूलों में पंजीयन कराया था। जबकि गत वर्ष 29.83 लाख बच्चों ने अपना पंजीयन कराया था। यानि कि निजी स्कूलों में इस बार 12.51 लाख कम बच्चों ने पंजीयन कराया। शिक्षा निदेशालय ने अधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि वे निजी स्कूलों के प्रबंधन से मिलकर वस्तुस्थिति को जानने का प्रयास करें। शिक्षा विभाग भी इन बच्चों को ढूंढने का प्रयास कर रहा है कि ये बच्चे कहां गए।

जानकारोंका कहना है कि इतने बड़ी संख्या में स्कूली बच्चों का स्कूल छोड़ देने के पीछे मुख्य कारण यह बताया जा रहा है कि कोरोना काल में स्कूलों के बंद रहने के बावजूद भी स्कूल प्रबंधनों द्वारा छात्रों से फीस वसूली का दबाव बनाया जाता रहा। कोरोना काल में केवल स्कूल ही बंद नहीं हुए, अपितु आम लोगों के कामधंधे व कारोबार भी बंद हो गए थे। ऐसे छात्रों को फीस जमा कराना मुश्किल हो गया था। ऐसे में अभिभावकों ने अपने बच्चों को निजीस्कूलों से निकालकर या तो सरकारी स्कूलों में उनका नाम लिखवा दिया या फिर उन्हें घर बैठाने पर ही मजबूर होना पड़ा। यानि कि गरीब वर्ग के बच्चों की शिक्षा अधिक प्रभावित हुई है।

जानकारों का कहना है कि शिक्षा के प्रभावित होने का मुख्य कारण कोरोना काल में ऑनलाईन पढ़ाई का भी रहा है। गरीबों व ग्रामीण परिवारों के बच्चों के पास स्मार्टफोन व नेटवर्क न होने के कारण भी ऐसे बच्चों को शिक्षा से बाहर कर दिया है। कोरोना काल में गरीबों और उनकी भावी पीढियां अधिक प्रभावित रहीं हैं। शिक्षण संस्थाएं बंद हैं, बच्चे अपने घरों में कैद हैं। बिना पढ़ाई बच्चे प्रमोट किए जा रहे हैं।

यह कोरोना काल की सार्वभौमिक बिडंवना है। गरीबी और अमीरी की गहरी खाईयों में हमारी सोच और मानवीय संरचना जन्म ले रही है। निजी स्कूलों द्वारा अपने छात्रों को ऑनलाईन शिक्षा प्रदान करने का गरीब छात्रों पर भी प्रभाव पड़ा है। निजी स्कूल प्रबंधन कोरोना काल की फीस छात्रों से ले या न ले इस पर विवाद ही रहा है। जिसका आज तक भी समाधान नहीं हो सका है।

अभिभावक निजी स्कूलों पर मनमानी करने का आरोप भी लगाते रहे हैं। हालांकि प्रदेश सरकार आगामी 16 जुलाई से 9वीं से 12वीं तक के स्कूल व कॉलेज खोलने का निर्णय लेने जा रही है। सरकारी स्कूलों के बच्चों का भविष्य क्या होगा, यह तो स्कूल खुलने के बाद ही पता चल पाएगा। हालांकि प्रदेश सरकार राजकीय स्कूलों में पढ़ाई को लेकर बड़ी गंभीर होती दिखाई दे रही है।

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