पूजा सिंह/जिला लोक संपर्क विभाग, गुरुग्राम
गुरूग्राम, 20 जुलाई। ‘जल है तो कल है‘, ‘जल की रक्षा, राष्ट्र की सुरक्षा‘ जैसे कई स्लोगन हम राह चलते पढ़ते है परंतु इन पर अमल नही करते। आज शहरी तथा ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छ पेयजल की आपूर्ति पाइप के जरिए घरों मे हो रही है, जहां इस स्वच्छ पेयजल की बर्बादी आम बात हो गई है। पौधों में पानी देने से लेकर गाड़ी धोने जैसे कार्यां के लिए भी स्वच्छ पेय जल का इस्तेमाल धड़ल्ले से हो रहा है। यह जानते हुए भी कि स्वच्छ पानी के स्त्रोत सीमित हैं और हर साल भूमिगत जलस्तर नीचे गिरता जा रहा है, बहुत कम लोग अपने विवेक का इस्तेमाल इस स्वच्छ पानी को बचाने के लिए करते हैं। अधिकतर लोग स्वच्छ पेय जल की अहमियत को अभी नही समझ रहे है या फिर इसके प्रति गंभीर नहीं हैं।
देश और दुनिया में बार बार अनेक मंचों से यह बात उठती रहती है कि अगला विश्व युद्ध पानी के लिए होगा, इसलिए सभी पर स्वच्छ पेयजल की बर्बादी को रोकने की जिम्मेदारी है। लेकिन सवाल यह उठया जाता है कि पानी नही देंगे तो बाग-बगीचे सूख जाएंगे, पौधे मर जाएंगे। इन सवालों का माकूल उत्तर गुरूग्राम महानगर विकास प्राधिकरण (जीएमडीए) ने ढूंढ निकाला है। प्राधिकरण ने इस समस्या का समाधान ग्रे-वाटर की पाइप लाइन बिछाकर करना शुरू कर दिया है। इस पाइप लाइन से आपूर्ति होने वाले पानी का उपयोग बागवानी व अन्य आवश्यक कार्यों के लिए करने का एक सटीक विकल्प दिया गया। इस पाइप लाइन से मिलने वाले ग्रे वाटर का प्रयोग पेय जल को छोड़ कर अन्य सभी कार्यों में किया जाता है। ध्यान रहे कि सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट से ट्रीटेड पानी को ग्रे-वाटर कहा जाता है।
जीएमडीए द्वारा गुरूग्राम के सैक्टर-38 स्थित ताउ देवी लाल स्टेडियम तक एसटीपी के ट्रीटेड पानी की लाइन बिछाई गई है और जब से यह पानी स्टेडियम में पहुंचने लगा है तब से स्टेडियम में जहां एक ओर स्वच्छ पेयजल की बचत होने लगी हैं वहीं इस पानी से स्टेडियम में चारो ओर हरियाली छा गई है। स्टेडियम के मैनेजर सुखबीर सिंह के अनुसार आज से करीब 6-7 महीने पहले तक इस स्टेडियम में विभिन्न खेलों के मैदानो को हरा-भरा बनाने के लिए पेड़-पौधों में सिंचाई के लिए ट्यूबवैल के पानी का इस्तेमाल होता था । इससे जहां भूमिगत जल का जरूरत से ज्यादा दोहन होता था, वहीं गर्मियों के मौसम में पानी का प्रेशर कम होने से मैदानों को हरा-भरा रखने में परेशानी आती थी और मैदानों की घास सूख जाती थी। लगभग 50 एकड़ में फैले स्टेडियम में पेड़-पौधों में पानी देने के लिए मात्र 3 ट्यूबवैल थे जोकि नाकाफी थे।
आज से करीब 6-7 महीने पहले गुरूग्राम महानगर विकास प्राधिकरण(जीएमडीए) द्वारा स्टेडियम को टेकओवर करने के बाद इसके रख-रखाव की जिम्मेदारी ली गई। इसके बाद स्वच्छ पेयजल की बचत करने तथा स्टेडियम में मैदानों का रख रखाव सिवरेज के ट्रीटेड ग्रे वाटर से करने की व्यवस्था जीएमडीए के मुख्य कार्यकारी अधिकारी वी.उमाशंकर के मार्गदर्शन में की गई और स्टेडियम को ग्रे वाटर लाइन से जोड़ा गया। स्टेडियम में ग्रे वाटर की सप्लाई बहरामपुर एसटीपी से की जाती है जिसका प्रयोग इस स्टेडियम में पेड़-पौधों के रख-रखाव के लिए किया गया। पर्याप्त मात्रा में ग्रे वाटर की सप्लाई होने से आज वहां चारों ओर हरियाली ही हरियाली है। इस स्टेडियम में मानसून के मौसम में इस बार 400 से 500 नए पौधे लगाए गए हैं। इतना ही नहीं, पौधों को र्प्याप्त मात्रा में पानी मिल रहा है जिससे वहां चारों ओर छायादार पेड़-पौधे लगे हुए नजर आते हैं जिससे स्टेडियम में हरियाली छा गई है।
स्टेडियम के मैनेजर सुखबीर सिंह ने बताया कि ग्रे-वाटर के इस्तेमाल से स्टेडियम का पूर्णतया कायाकल्प हो गया है। एथलैटिक ग्राउंड, क्रिकेट पवेलियन, स्टेडियम के प्रवेश व निकासी द्वार पर विभिन्न प्रकार के सुंदर पौधे लगाए गए हैं।
उपायुक्त एवं निगम आयुक्त अमित खत्री ने बताया कि गुरूग्राम जिला में लोगों को ग्रे-वाटर के इस्तेमाल के लिए प्रेरित करने को जीएमडीए द्वारा व्यापक कार्ययोजना तैयार की गई है। उन्होंने बताया कि शुरूआती चरण में शहर के तीन बड़े पार्कों तक ग्रे- वाटर पहुंचाया जा रहा है जिसमें ताऊ देवी लाल स्टेडियम, सैक्टर-29 का महाराणा प्रताप पार्क और सैक्टर-50 स्थित बायोडायर्सिटी पार्क शामिल है। इन स्थानों पर पेड़-पौधों तथा घास को हरा भरा रखने के लिए ग्रे-वाटर का इस्तेमाल किया जा रहा है। इसके अलावा, जीएमडीए द्वारा झज्जर जिला में एग्रीकल्चर बैल्ट के लिए भी 50 एमएल ग्रे वाटर की सप्लाई की जा रही है जिसकी क्षमता भविष्य में बढ़ाकर 200 एमएल करने की योजना है।
भविष्य की कार्ययोजना के बारे में जानकारी देते हुए गुरूग्राम महानगर विकास प्राधिकरण के चीफ इंजीनियर ललित अरोड़ा ने बताया कि जीएमडीए का प्रयास है कि भविष्य में नगर निगम क्षेत्र में पड़ने वाले सैक्टर-24 से 57 के सभी पार्कों तक ग्रे-वाटर पहुंचाया जाए। उन्होंने बताया कि फिलहाल जिला में 8 से 10 प्रतिशत ही ग्रे-वाटर का इस्तेमाल पेड़-पौधों या अन्य कंस्ट्रक्शन कार्यों के लिए किया जा रहा है जिसकी प्रतिशतता को बढ़ाने के प्रयास जारी हैं।
उन्होंने बताया कि जिला में लोगों को ग्रे-वाटर के इस्तेमाल के लिए प्रेरित करने को लेकर विभिन्न प्रकार के इंसेटिव भी दिए जा रहे है। डेव्लपरों को ग्रे वाटर के प्रयोग पर सिवरेज चार्जिज में 50 प्रतिशत तक की छूट दी जा रही है। टैक्सटाइल मैन्यूफैक्चरिंग एसोसिएशन को 9 रूप्ये प्रति किलोलीटर की बजाय 3 रूप्ये प्रति किलोलीटर के हिसाब से ग्रे वाटर दिया जा रहा है। यदि भविष्य में इस एसोसिएशन द्वारा स्वयं का इंफ्रास्ट्रक्चर लगा लिया जाता है तो उन्हें 2 रूप्ये प्रति किलोलीटर के हिसाब से ग्रे वाटर की सप्लाई की जाएगी। इसी प्रकार पार्कों को हरा भरा रखने में ग्रे-वाटर के इस्तेमाल को बल दिया जा रहा है।