राफेल विवादों के बीच डसाल्ट ने बताया क्यों किया था रिलायंस डिफेंस का चयन

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नई दिल्ली । फ्रांसीसी एयरोस्पेस कंपनी डसाल्ट एविएशन ने कहा है कि उसने राफेल करार के लिए रिलायंस डिफेंस लिमिटेड से साझेदारी का फैसला किया था। कंपनी ने यह बयान ऐसे समय में जारी किया है जब शुक्रवार को फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद की यह टिप्पणी सामने आई कि भारत सरकार के इशारे पर रिलायंस डिफेंस का चयन किया गया। गौरतलब है कि भारत सरकार कहती रही है कि डसाल्ट द्वारा ऑफसेट साझेदार के चयन में उसकी कोई भूमिका नहीं है।

कंपनी ने कहा, ‘रक्षा खरीद प्रक्रिया (डीपीपी) 2016 के नियमन के अनुसार इस ऑफसेट अनुबंध की आपूर्ति की गई। इस ढांचे में और ‘मेक इन इंडिया’ नीति के अनुसार, डसाल्ट एविएशन ने भारत के रिलायंस समूह के साथ साझेदारी का फैसला किया है। यह डसाल्ट एविएशन की पसंद है।’ डसाल्ट एविएशन ने यह बयान तब दिया है जब फ्रांसीसी भाषा की खबरिया वेबसाइट ‘मीडियापार्ट’ ने शुक्रवार को अपनी एक खबर में ओलांद के हवाले से कहा था, ‘भारत सरकार ने इस सेवा समूह का प्रस्ताव किया था और दसाल्ट ने अंबानी से बातचीत की थी। हमारे पास कोई विकल्प नहीं था, हमने उस वार्ताकार को अपनाया जो हमें दिया गया था।’

यह पूछे जाने कि रिलायंस को साझेदार के तौर पर किसने और क्यों चुना, इस पर ओलांद ने जवाब दिया, ‘इस पर हमारा कोई जोर नहीं था।’ ओलांद का बयान सामने आने के बाद विपक्षी पार्टियों ने राफेल करार को लेकर मोदी सरकार पर हमले तेज कर दिए हैं। उन्होंने करार में भारी अनियमितता और रिलायंस डिफेंस लिमिटेड को फायदा पहुंचाने के आरोप लगाए हैं। उनका कहना है कि एयरोस्पेस क्षेत्र में रिलायंस डिफेंस लिमिटेड को कोई अनुभव नहीं है, लेकिन फिर भी सरकार ने अनुबंध उसे दे दिया।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 10 अप्रैल 2015 को पेरिस में फ्रांस के तत्कालीन राष्ट्रपति ओलांद के साथ वार्ता करने के बाद 36 राफेल लड़ाकू विमानों की खरीद के करार की घोषणा की थी। शुक्रवार को फ्रांस सरकार ने कहा कि वह भारतीय औद्योगिक साझेदारों के चयन में किसी भी तरह से शामिल नहीं थी। अपने बयान में डसाल्ट एविएशन ने कहा कि 36 राफेल लड़ाकू विमानों की आपूर्ति के लिए दोनों देशों की सरकारों के बीच समझौता हुआ। कंपनी ने कहा, ‘इसमें एक अलग अनुबंध है, जिसमें डसाल्ट एविएशन खरीद मूल्य का 50 फीसदी हिस्सा भारत में निवेश (ऑफसेट) करने के लिए प्रतिबद्ध है।’

कंपनी ने यह भी कहा कि रिलायंस के साथ इसकी साझेदारी के कारण फरवरी 2017 में दसाल्ट रिलायंस एयरोस्पेस लिमिटेड (डीआरएएल) नाम का संयुक्त उपक्रम बना। भारत की ऑफसेट नीति के तहत विदेशी रक्षा कंपनियों को कुल अनुबंध मूल्य का कम से कम 30 फीसदी हिस्सा भारत में खर्च करना होता है। यह खर्च उपकरणों की खरीद या शोध एवं विकास सुविधाओं की स्थापना के मद में करना होता है। कंपनी ने कहा, ‘बीटीएसएल, डेफसिस, काइनेटिक, महिंद्रा, मैनी, सैमटेल जैसी अन्य कंपनियों के साथ भी अन्य साझेदारियों पर दस्तखत हुए हैं….सैकड़ों अन्य संभावित साझेदारों के साथ भी बातचीत चल रही है। डसाल्ट एविएशन को इस बात पर गर्व है कि भारतीय अधिकारियों ने राफेल लड़ाकू विमान का चयन किया है।’
कांग्रेस राफेल सौदे में बड़े पैमाने पर अनियमितता का आरोप लगा रही है। कांग्रेस का आरोप है कि उसकी अगुवाई वाली पिछली यूपीए सरकार जब 126 राफेल विमानों की खरीद के लिए सौदा कर रही थी तो प्रत्येक राफेल विमान की कीमत 526 करोड़ रुपए तय हुई थी, लेकिन नरेंद्र मोदी सरकार के समय हुए करार में प्रत्येक राफेल विमान की कीमत 1,670 करोड़ रुपए तय की गई। पार्टी ने यह आरोप भी लगाया कि मोदी सरकार इस करार के जरिए रिलायंस डिफेंस को फायदा पहुंचा रही है। विपक्षी पार्टियों ने आरोप लगाया है कि रिलायंस डिफेंस 10 अप्रैल 2015 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से राफेल करार की घोषणा किए जाने से महज 12 दिन पहले बनाई गई। रिलायंस ग्रुप ने आरोपों को नकारा है।

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