संस्कृत भाषा की पढ़ाई व संस्थानों को आवश्यक सुविधाएं देने के निर्देश
संस्कृत भाषा के प्रति राज्य सरकार के नकारात्मक रवैये की पीएम को दी थी जानकारी
शिक्षक ने सभी भाषाओं की जननी संस्कृत को बढ़ावा देने की थी मांग
संस्कृत है उपेक्षा की शिकार मगर उर्दू भाषा के प्रति सरकार है उदार
बैदेही सिंह
मोतिहारी : पताही शिक्षा अंचल के सुदूर देहाती क्षेत्रों में आजादी से पूर्व स्थापित बेतिया राज संस्कृत उच्च विद्यालय नारायणपुर के एक सहायक शिक्षक धीरज कुमार ने देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, को एक पत्र लिख कर संस्कृत भाषा के प्रति उपेक्षापूर्ण सरकारी रवैये की जानकारी देते हुए इसके लिए कारगर नीति बनाने की मांग की थी । उनके इस पत्र को देश के पीएम ने गंभीरता से लिया और पूरे भारत में संस्कृत भाषा को बढ़ावा देने के लिए सभी आवश्यक सरकारी सुविधायें दिए जाने का प्रस्ताव मंजूर करते हुए सभी राज्य सरकारों को इसका पालन करने का निर्देश दिया है। बताया जाता है कि उक्त शिक्षक ने अपने पत्र में चिंता जाहिर की थी कि पूरे भारत में सभी भाषाओं की जननी संस्कृत भाषा की हो रही दिन-प्रतिदिन उपेक्षा से यह भाषा कहीं विलुप्त ना हो जाए. उन्होंने यह भी लिखा था कि अब तक सरकार द्वारा अल्पसंख्यक तुष्टिकरण नीति अपनाते हुए संस्कृत विद्यालयों को सरकारी सुविधाओं से वंचित किया जा रहा है जबकि भारत हिंदू बहुल देश है। दूसरी तरफ अल्पसंख्यकों के प्रिय उर्दू भाषा के प्रति सरकार उदार है।
खबर है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक पत्र भेज कर पूरे भारत में संस्कृत भाषा के संस्थानों को सभी सरकारी सुविधाये दिए जाने का प्रस्ताव मंजूर करने की जानकारी दी है. उन्होंने इसे सभी राज्य सरकारों से पालन करने का निर्देश दिया है। उल्लेखनीय है कि आजादी से पूर्व 1936 में स्थापित बेतिया राज संस्कृत उच्च विद्यालय, नारायणपुर के सहायक शिक्षक धीरज कुमार ने 10 अगस्त 2017 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिखा था।
इसमें उन्होंने कहा था कि बिहार में ही नहीं पूरे देश में संस्कृत शिक्षा को हतोत्साहित किया जा रहा है जिससे यह भाषा विलुप्त होने की कगार पर है जो भारतीय संस्कृति के विकास की दृष्टि से चिंताजनक बात है. उन्होंने कहा था की हमारे पौराणिक ग्रन्थ यह बताते हैं कि संस्कृत सभी भाषाओं की जननी है लेकिन बिहार में संस्कृत शिक्षा बोर्ड पटना द्वारा वर्ष 2017 की मध्यमा परीक्षा आज तक आयोजित नहीं की गई है और न ही इस सम्बन्ध में सरकार की ओर से कोई सूचना या स्पष्टीकरण जारी किया गया है । उन्होंने पीएम से इस बात की गुहार लगाईं थी कि संस्कृत विद्यालयों के बच्चों का भविष्य अंधकार में है।
इस स्थिति में संस्कृत के प्रति लोगो की रूचि समाप्त होती जा रही है। इस स्थिति को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए पत्र में कहा गया था कि संस्कृत विद्यालयों के शिक्षकों, विद्यार्थियों एवं संस्कृत भाषा की पढ़ाई के प्रति पूर्व से ही बिहार सरकार की नीति नकारात्मक रही है । इसके चलते इस राज्य में संस्कृत संस्थानों में कार्यरत कर्मियों को न तो सही समय पर वेतन मिल पाता है और न ही इस विद्यालय के विकास हेतु किसी प्रकार की राशि दी जाती है। दूसरी तरफ इस राज्य में उर्दू भाषाओं के लिए सरकार काफी सजग दिखती है। मदरसा विद्यालयों के प्रति सरकार काफी उदार दिख रही है।
उन्होंने बताया था कि राज्य के सामान्य विद्यालयों में उर्दू के बच्चे नहीं हैं फिर भी सभी विद्यालयों में उर्दू के शिक्षक नियुक्त किए गए हैं जबकि उन्हीं विद्यालयों में आश्चर्यजनक रूप से संस्कृत शिक्षकों की नियुक्ति नहीं की गई है। संस्कृत विद्यालय से मध्यमा उत्तीर्ण प्रांत होने पर भी कोई आगे का अवसर उपलब्ध नहीं है. इसके चलते संस्कृत शिक्षा विलुप्त होती जा रही है । विद्यालयों में बच्चों की संख्या दिन प्रतिदिन घटती जा रही है । शिक्षक ने इस बात की आशंका व्यक्त की थी कि अगर यही हालत रही तो एक समय ऐसा होगा कि नई पीढ़ी को संस्कृत भाषा का ज्ञान देने वाला नहीं मिल पाएगा।
उक्त सहायक शिक्षक ने अपनी व्यथा व्यक्त करते हुए संस्कृत विद्यालयों के प्रति बिहार सरकार की नकारात्मक नीति की अपने स्तर से जांच करवा कर सभी संस्कृत संस्थानों का सरकारीकरण करवाने एवं विद्यालयों को सुचारु रूप से संचालित करने हेतु दिशा निर्देश देने की मांग की थी .