क्या संगठित गिरोह की तरह काम करते थे खनन कंपनियों के मालिक ?

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सरकार ने दादम पत्थर खदान मामले में ई-नीलामी की नीति अपनाने को सही ठहराया

पूर्व की खनन कंपनियों को बोली से बहार कर एकाधिकार को किया समाप्त 

चण्डीगढ, 18 अगस्त :  कुछ समाचार पत्रों में जिला भिवानी की दादम पत्थर खदान से संबंधित एक मामले में सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों के बारे में प्रकाशित समाचार के संबंध में एक सरकारी प्रवक्ता ने आज कहा कि दिसंबर, 2013 में पूर्व-योग्य बोलीदाताओं के बीच 12 पत्थर खदानों (जिला भिवानी की सात और जिला महेन्द्रगढ़ की पांच) की नीलामी की गई थी। दादम गांव जिला भिवानी की पत्थर खदान के लिए 6.25 करोड़ रुपये प्रतिवर्ष के आरक्षित मूल्य के विरूद्घ मैसर्ज केजेएसएल-सुंदर (जेवी) द्वारा 115 करोड़ रुपये प्रतिवर्ष की सबसे ऊंची बोली लगाई गई। पट्टा 10 वर्ष की अवधि के लिए दिया गया था और यह अवधि राज्य खनन नियम, 2012 के अनुसार ईसी की तिथि या 3 जनवरी, 2014 को पट्टा पत्र जारी होने की तिथि से 12 मास के बाद, जो भी पहले था, से  शुरू होनी थी।

दादम पत्थर खदान के उच्चतम बोलीदाता मैसर्ज केजेएसएल-सुंदर (जेवी) ने एक अजीब स्थिति उत्पन्न कर दी, जिसमें मुख्य भागीदार केजेएसएल (51 प्रतिशत शेयरधारक) ने पट्टा रद्द करने की मांग की लेकिन छोटे भागीदार मैसर्ज सुंदर मार्किटिंग एसोसिएट्स (एसएमए) ने खदान चलाने का विकल्प लिया। उसने कहा कि यदि मुख्य भागीदार को पट्टे से बाहर जाने की अनुमति दी जाती है तो उसे पूर्ण रूप से खदान को चलाने या फिर उसे अन्य पूर्व योग्य एजेंसी को पट्टे में शामिल करने की अनुमति दी जाए। एसएमए ने पेशकश की कि वह उन्हीं नियम और शर्तों पर खदान को चलाएगा। यहां यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि 12 पत्थर खदानों में से 4 पत्थर खदानों के मामले में पूर्व योग्य और अंतिम सफल बोलीदाताओं ने उच्च न्यायालय के 15 जनवरी,2015 के आदेश से अपनी बोलियों को रद्द करवा लिया था। एक बोलीदाता, जो उच्च न्यायालय में केजेएसएल-सुंदर के साथ पार्टी भी था, ने पट्टा भी रद्द करवा लिया। इस प्रकार, पूर्व-योग्य बोलीदाता बोलियां लगाने के बाद भी बोली से भाग गए। इसके बाद राज्य ने फैसला लिया कि अब से नीलामियां पूर्व-योग्य बोलीदाताओं के बिना ही आयोजित की जाएंगी क्योंकि पूर्व-योग्य बोलीदाता एक कार्टेल के रूप में कार्य कर रहे थे। दादम मामले में राज्य की ओर से कानूनी तौर पर वैध और उचित कार्रवाई के लिए महाधिवक्ता, हरियाणा से सलाह ली गई। महाधिवक्ता, हरियाणा ने राज्य के समग्र हित में संयुक्त उद्यम के भागीदारों में से एक के बाहर होने के बावजूद बोलीदाता के अनुबंध को जारी रखने की सलाह दी। यह भी पाया गया कि एक भागीदार द्वारा शेष भागीदारों के पक्ष में अपने शेयर को छोड़ देना पट्टा नियमों और शर्तों का एक स्पष्ट उल्लंघन नहीं है और विद्यमान भागीदारों द्वारा पट्टे को चलाया जाना किसी भी रूप से राज्य को किसी पूर्वाग्रह की स्थिति में नहीं डालेगा।

महाधिवक्ता, हरियाणा की सलाह के अनुसार राज्य ने 17 जून, 2015 को राज्य के हित को और सुरक्षित करने के लिए एसएमए को एक क्षतिपूर्ति बांड प्रस्तुत करने के उपरांत पट्टा विलेख निष्पादित करने की अनुमति दी। पर्यावरण,वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारत सरकार से पर्यावरण मंजूरी मिलने के बाद ही एसएमए 29 अक्तूबर, 2015 को खनन कार्यों को शुरू कर सका। एसएमए को दी गई अनुमति के खिलाफ श्री वेद पाल तंवर ने उच्च न्यायालय में एक सिविल याचिका के माध्यम से यह आरोप लगाया कि एसएमए स्वयं एक पूर्व योग्य बोलीदाता नहीं है और उसे खदान के संचालन की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए थी। उसने यह भी दावा किया कि यदि खदान की नए सिरे से नीलामी की जाती तो वह नीलामी में भाग लेने में सक्षम होता और उसने दावा किया कि राज्य और अधिक उच्च बोली आकर्षित करता। राज्य सरकार ने पूरे मामले की जांच की और महाधिवक्ता हरियाणा से नए सिरे से सलाह मांगी। महाधिवक्ता हरियाणा ने अपनी सलाह में, जिसकी भारत के अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल द्वारा पुष्टि की गई, मामले में उचित प्रक्त्रिया का अनुसरण करने के उपरांत अनुमति को वापिस लेने और पट्टा / अनुबंध को रद्द करने की सिफारिश की।

नई सलाह के दृष्टिगत राज्य सरकार ने अपने पहले फैसले की समीक्षा करने का निर्णय लिया। राज्य ने जून 2015 में प्रदान की गई अनुमति वापस लेने और क्षेत्र की नए सिरे से नीलामी करने का निर्णय लिया। यहां स्पष्ट किया जाता है कि सर्वोच्च न्यायालय का आदेश राज्य सरकार के 29, फरवरी, 2016 के निर्णय के अनुरूप है और मैसर्ज एसएमए को दी गई अनुमति को वापिस लिया जाना सही था तथा नवीनतम निर्णय राजकोष के हित में है और राज्य निर्णय का स्वागत करता है। खदान को नीलामी के लिए 24 जुलाई, 2017 को अधिसूचित किया गया है और नीलामी 22 अगस्त,2017 को 4.00 बजे तक समाप्त हो जाएगी।

संबंधित फाइल के गुम होने से संबंधित अवलोकन में यह स्पष्ट किया जाता है कि मामले की कोई भी फाइल कभी गुम नहीं हुई।  वास्तव में जब एक आरटीआई आवेदक ने इस मामले के बारे में जानकारी मांगी उस समय फाइल प्रक्त्रिया/प्रेषणाधीन थी और एसपीओआई के पास उपलब्ध नहीं थी इसलिए आवेदक को यही जानकारी दी गई। 22 अप्रैल,2016 को फाइल की प्राप्ति / वापसी पर आरटीआई आवेदक को तुरंत जानकारी / दस्तावेज प्रदान किए गए।

दरअसल, उच्च न्यायालय की याचिका में जिस आरटीआई आवेदक का जिक्र है, ने ही यह मुद्दा उठाया गया था और उसे उचित उत्तर दिया गया। इसके अलावा, निजी प्रतिवादी (श्री वेद पाल तंवर) ने सुनवाई के दौरान खदान के लिए 150 करोड़ रुपये प्रति वर्ष की बोली की अंडरटेकिंग दी। उच्च न्यायालय ने इसे स्वीकार किया और अपने विस्तृत आदेश में पैरा 57 (यह उच्च न्यायालय की वेबसाइट पर उपलब्ध है) पर उसे 31 जुलाई, 2017 तक 15 करोड़ रुपये जमा करवाने के निर्देश दिए। उसने 15 करोड़ रुपये के लिए आईसीआईसीआई बैंक हिसार का एक चेक नंबर 000377 दिनांक 31 जुलाई, 2017 को जमा किया जो बाउंस हो गया। इसलिए, महाधिवक्ता कार्यालय को इसके बारे में सूचित किया गया और श्री वेद पाल तंवर की इस गंभीर गलती, जो अवमानना ​​के बराबर है और उसे अदालत की कार्यवाही की अवमानना ​​के लिए उत्तरदायी बनाती है, के बारे न्यायालय को अवगत करवाने का अनुरोध किया गया है। इसके अलावा,  उल्लिखित व्यक्ति के खिलाफ कानून के अनुसार, परक्राम्य लिखित अधिनियम, 1881 की धारा 138 के तहत आपराधिक कार्यवाही भी शुरू की गई है।

यहां यह उल्लेख करना भी उचित होगा कि राज्य ने खनन क्षेत्र को मजबूत करने और इस आवश्यक निर्माण सामग्री के क्षेत्र में एकाधिकार को समाप्त करने के लिए छोटे खदान क्षेत्रों में ई-नीलामी की नीति अपनाई है। इसके अपेक्षित परिणाम प्राप्त हुए हैं और इस महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचा क्षेत्र में सुधार हुआ है। आज, 50 से अधिक खदानें संचालन में हैं, जो अच्छी और निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा, रोजगार सृजन, अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने, करों में उछाल और आवश्यक सामग्री की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित कर रही हैं। वर्ष 2014-15 में मात्र 43.90 करोड़ रुपये की तुलना में वर्ष 2016-17 में खनन से प्राप्त राजस्व दस गुणा से अधिक की वृद्घि के साथ बढ़कर 497.00 करोड़ रुपये हो गया है।

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