पत्रकार सम्मलेन में मंच पर उपस्थित लोग भी इस पर खिलखिलाते रहे
सुभाष चौधरी /प्रधान संपादक
पंचकूला। 27 मई 2017 : हरियाणा सरकार के मंच से महावीर गुड्डू ने उड़ाया शारीरिक अक्षमताओं का मजाक। हरियाणा स्वर्ण जयंती जर्नलिस्ट्स सम्मलेन में लोकगायक महावीर गुड्डू चुटकुले सुनाने की झोंक में यह भी भूल गए कि किसी व्यक्ति की शारीरिक क्षमताओं का मजाक नहीं उड़ाया जाना चाहिए। अपने शो में महावीर गुड्डू ने जमकर हकले लोगों का मजाक उड़ाया। मंच पर उपस्थित लोग भी इस पर खिलखिलाते रहे।
यह जानकारी सम्मलेन में मौजूद फ्रीडम ऑफ़ वॉयस के मुख्य संपादक एवं वरिष्ठ पत्रकार सौरभ भारद्वाज जो नेशनल यूनियन ऑफ़ जौर्नालिस्ट (आई ) हरियाणा राज्य शाखा के महासचिव भी हैं की ओर से यूनियन के व्हाट्सएप ग्रुप पर जारी की गयी ब्रेकिंग न्यूज से मिली. हालाँकि इस खबर के जारी होने के बाद कुछ पत्रकारों ने इसे हास्यव्यंग विधा का एक स्वरुप समझ कर इस पर पर्दा डालने की वकालत की लेकिन उस ग्रुप पर बहस छिड़ गई की किसी भी कलकार चाहे वह निजी हो या फिर सरकारी महकमें में कार्यरत को इस तरह के विषयों के चयन में संवेदनशीलता का परिचय देना चाहिए.
हो सकता है उन्हें इस बात का भान नहीं रहा हो कि किसी की अपंगता को अभद्र शब्दों से पुकारना भी असामाजिक और गैरकानूनी है. ऐसा करने वाले कलाकारों को शायद यह भी याद नहीं रहा कि देश के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने कार्यकाल में एक महत्वपूर्ण फैसला लिया और वह है वर्षों से संबोधित किए जा रहे विकलांग व्यक्तियों को दिव्यांग व्यक्ति कहने का कानूनी व्यवस्था करना. पीएम मोदी की पहल पर संसद से पारित कानून के बाद अब इस देश में कोई भी सरकारी महकमा विकलांग शब्द का उपयोग नहीं करता है.
रही बात हकलाने की तो यह भी एक प्रकार की प्राकृतिक रूप से शारीरिक अपंगता है . इसलिए लोंगों को हसाने व आनंद देने के लिए इस प्रकार की अपंगता से ग्रस्त व्यक्ति के चरित्र का मंचन करना भी आपत्तिजनक है. संभव है उस सभागार में भी हजार से अधिक मौजूद लोगों में कोई व्यक्ति इस अपंगता से पीड़ित हों और उन्हें मानसिक रूप से पीड़ा पहुंची हो. यह समझने की जरूरत है कि हकालाने वाले व्यक्ति को अगर उनके सामने ही उसी प्रकार का चित्रण कर चिढाया जाए तो वह हींन भावना का शिकार हो सकता है. नैतिक व सामाजिक रूप से यह सर्वथा अनुचित हास्य बोध का प्रयोग है.
अगर बात की जाए हिन्दू धर्मशास्त्र व सनातन परंपरा की तो इसमें शारीरिक या मानसिक रूप से अपंग व्यक्ति पर व्यंग कसना यहाँ तक कि उन पर हँसना भी वर्जित है. व्हाट्सएप पर चली बहस में वरिष्ठ पत्रकार सौरभ भारद्वाज ने इस बात को बेहद खूबसूरती से यह कह कर पुष्ट किया कि हमारी परंपरा किसी अंधे को भी बड़े शालीन व सभ्य शब्द “सूरदास” के नाम से पुकारे जाने का अनुकरणीय उदाहरण मौजूद है.
वैसे इस तर्क व तथ्य से सहमत होना या नहीं होना किसी का भी अपना अधिकार है लेकिन हसने के लिए किसी काल्पनिक चरित्र की अपंगता को ही क्यों चुना जाए जबकि सभी प्रकार से सक्षम चरित्र हमारे लिए मौजूद है. हम सक्षम लोगों के हावभाव को ही निशाना बना कर खूब उन पर कटाक्ष करें और जोर जोर से ठहाके लागायें . इस पर शायद किसी को आपत्ति नहीं होगी. ऐसी रचनाएं हमारे साहित्य में ढेरों पड़ीं हैं.
इस देश में कुछ ही साल हुए है जब यूपी के कानपुर शहर में तत्कालीन केबिनेट मंत्री श्रीप्रकास जायसवाल एक कवि सम्मलेन में मौजूद थे. कवियों ने अपनी रचनाओं में पहली पत्नी और दूसरी पत्नी को लेकर अपनी रचना से लोगों को हसाया. जब मुख्य अतिथि तत्कालीन केबिनेट मंत्री श्रीप्रकास जायसवाल के बोलने का समय आया तो उन्होंने भी हसी व्यंग के माहौल को देखते हुए अपने संबोधन में पहली पत्नी व दूसरी पत्नी को लेकर कुछ व्यंग कर दिया . उनकी यह बात वहां मौजूद मीडिया ने कैमरे में कैद कर ली और सभी न्यूज चैनल ब्रेकिंग न्यूज बना कर बैठ गए महिला संगठनों के प्रतिनिधियों के साथ इस पर चर्चा करने. अपनी मीडिया ट्रायल में उन्हें पूरी तरह महिला विरोधी करार देकर उनसे मंत्री पद से इस्तीफे की भी मांग की गयी. कुछ राजनीतिक दलों के महिला संगठनों की ओर से उनके खिलाफ दिल्ली व लखनऊ में प्रदर्शन भी हुए. बड़ी मुश्किल से मामला उनके माफ़ी मांगने का बाद शांत हुआ.
असल में इस प्रकार की घटनाओं को सामाजिक दृष्टि से चिंतनीय इसलिए माना जाता है क्योंकि मंच पर प्रदेश या देश के जिम्मेदार पद पर बैठे लोग मौजूद होते हैं. सार्वजानिक जीवन में इस तरह की घटनाएं अस्वीकार्य होतीं हैं . राजनीतिक एवं प्रशासनिक रूप से जिम्मेदार व्यक्ति से यह उम्मीद की जाती है आपके आचरण समाज के लिए हर प्रकार से मॉडल बने. इसलिए ही आज हरियाणा सरकार के इस पत्रकार सम्मलेन में हुई इस घटना पर प्रबुद्ध पत्रकारों को ऐतराज हुआ.