मुस्लिम बेटियों को रिवाज-ए-आम कानून की वजह से नहीं मिला पिता की प्रोपर्टी में हक

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: इसलाम धर्म में बेटियों को पिता की जमीन में हक दिया गया है 

: रिवाज-ए-आम कानून से हजारों बेटियां है प्रभावित

: लाहौर हाईकोट के तत्कालीन चीफ जस्टिस रेटीगन कमीशन की रिपोर्ट पर ब्रिटिश सरकार नेें 1880 में बनाया था कस्टूमरी लॉ 

 

यूनुस अलवी

 
मेवात:    भले ही इस्लाम धर्म कि पवित्र कुरान में बेटियों को अपने पिता कि जायदाद में से हिस्सा देने का आदेश दिया गया है। मेवात को छोडकर इसकी पालना देश के सभी राज्यों में हो रही है। प्रदेश के पूर्व जिला गुडगांव (गुडगांव, फरीदाबाद, पलवल, रेवाडी, मेवात) में आबाद मुस्लिम समाज कि बेटियों को ना तो इस्लाम धर्म के कानून के तहत और ना ही देश के कानून के तहत पिता कि जमीन में हिस्सा नहीं मिलता है। इसका मुख्य कारण लाहौर हाईकोट के तत्कालीन चीफ जस्टिस रेटीगन कि अगुवाई में बने कमीशन कि रिपोर्ट पर अंगे्रज सरकार ने वर्ष 1880 में कस्टूमरी लॉ (रिवाज-ए-आम कानून)बनाया गया था। 
 
    मेवात के वरिष्ट ऐडवोकेट एंव कस्टूमरी लॉ के जानकार नूरदीन नूर ने बताया कि अंग्रेज सरकार द्वारा जमीन जायदाद के बटवारे को लेकर उस समय के पंजाब प्रांत के लिये लाहौर हाईकोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस रीगीटन कि अगुवाई में वर्ष 1849-50 में एक कमिशन बनाया गया था। कमीशन ने उस समय के पंजाब (जिसमें हरियाणा, पंजाब और हिमाचल प्रदेश शामिल था) के एक-एक गांव में जाकर यहां बसने वाली एक-एक जाती से उनकी जमीनों के बटवारे के बारे में जानकारी हासिंल की थी। उन्होने बताया कि आयोग ने करीब 30 साल तक जानकारी जुटा कर इसकी रिपोर्ट सरकार को भेज दी थी। अंगे्रज सरकार ने 1880 में कस्टूमरी लॉ यानि रिवाज-ए-आम कानून बनाया। उन्होने बताया कि देश में मुस्लिम लॉ ना होने कि वजह से मुस्लिम के जमीनी हकूक को कस्टूमरी लॉ के तहत रखा गया जबकि देश में हिंदु ऐक्ट होने कि वजह से हिंदुओं को हिंदु ऐक्ट के साथ जोड दिया गया। इस कानून के तहत मुस्लिम लडकियों को पिता द्वारा खरिदी गई जमीन हो या फिर पुश्तैनी जमीन में कोई अधिकार नहीं दिया गया था। अगर किसी आदमी के कोई बेटा पैदा ना होने कि सूरत में उसकी जमीन का मालिक उसकी बेटी ना होकर उसके सगे सम्बंधि होते हैं। 
 
   नूरदीन नूर ने बताया कि वैसे इस कस्टूमरी लॉ में वक्त के अनुसार कई बदलाव आये हैं। जैसे पहले पिता कि किसी भी जमीन पर बेटियों का हक नहीं होता था जिसमें वो जमीन पुश्तैनी हो या फिर पिता ने खरीदी हो। लेकिन अब अदालतों के आये आदेशों से बाप द्वारा खरीदी गई जमीन पर तो बेटियों को हक दे दिया गया है लेकिन पुश्तैनी जमीन पर यह अभी तक लागू है। उन्होने बताया कि इस लॉ कि वजह से मेवात जिला में हजारों मामले अदालत में चल रहे हैं।

 

 इसी कानून के तहत अपना हक लेने के लिये लड रहा है जुबेर खान

 
   मेवात जिला के गांव आकेडा निवासी जुबेर खान पुत्र अबदुल रहमान ने बताया कि जुम्मेखां, अबदुल रहमान और आसीन सहित उनके पिता तीन भाई है। जिनमें उनके ताऊ जुम्मेखां के 8 लडकियां तो पैदा हुई लेकिन कोई लडका पैदा नहीं हुआ था। उसके ताऊ ने वर्ष 1998 तक अपनी सभी बेटियों कि शादी कर दी थी। उन्होने बताया कि ताऊ की मौत के बाद उन्होने कस्टूमरी लॉ के तहत अदालत में कैस डाला हुआ है उनको उम्मीद है कि अदालत का फैंसला उनके ही हक में आऐगा।

 

पवित्र कुरान ने लडकियों को दिया है उनका हक

 
 इसलाम धर्म के जानकार मुफ्ति सलीम का कहना है कि इसलाम धर्म कि किताब कुरान पाक ही एक कानून है। दुनिया के मुसलमानों को इसी तक तहत अपनी जिंदगी गुजारनी होगी। उन्होने कहा कि कुरान में जहां सभी बातों को जिक्र किया गया है वहीं पिता कि जमीन में बेटियों का और बेटों का कितना-कितना हिस्सा होता है। इसका बाकायदा खोलकर अल्लाह ने बयान किया है। उन्होने बताया कि मसलन किसी बाप के दो बेटी और एक बेटा है और उनके पिता के पास चार एकड जमीन है तो उसमें दो एकड जमीन में दो बेटियों का हिस्सा होगा यानि एक-एक एकड बेटियों का और दो एकड बेटे का हिस्सा होता है। उन्होने बताया कि कुरान शरीफ में बेटे और बेटियों के हिसाब से जमीन का बंटवारा किया गया है। यानि बेटी ज्यादा या बेटे ज्यादा है तो उसी हिसाब से बंटवारा होगा। मुफ्ति का कहना है कि कुल मिलाकर इसलाम धर्म में बेटियों को उसके पिता कि जमीन जायदाद में हिस्सा दिया गया है और जो मुसलमान इसको नहीं देता वह गुनाहगार होता है।
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