सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला
“धन जमा कराने की स्पीड बढाओ नहीं तो हम आपकी संपत्ति लेंगे “
संपत्ति का इस्तेमाल सहारा के निवेशकों का धन लौटाने के लिए होगा
नई दिल्ली: देश के लिए मर मिटने की कसमें खाने वाले उद्योगपति सुब्रत राय को उच्चतम न्यायालय के निर्णय से तगड़ा झटका लगा. सर्वोच्च अदालत ने ऐतिहासिक निर्णय में पुणे के आंबी वैली स्थित सहारा समूह की 39,000 करोड़ रुपये की संपत्तियों को अदालत से अटैच करने के आदेश दिये हैं. इस संपत्ति का इस्तेमाल सहारा के निवेशकों का धन लौटाने के लिए किया जाएगा. न्यायालय ने सहारा समूह से ऐसी संपत्तियों की सूची भी देने को कहा जिन पर ‘कोई कर्ज नहीं है।’
निर्णय के अनुसार सहर समूह को यह सूची दो हफ्ते में देनी होगी। इन्हें सार्वजनिक नीलामी पर चढाया जा सकता है ताकि निवेशकों को उनका धन लौटाने के लिए लगभग 24,000 करोड़ रपये के मूल धन की शेष 14,000 करोड़ रपये की बाकी राशि जुटायी जा सके। निवेशकों को लौटाने के लिए सेबी-सहारा खाते में 24000 करोड़ रुपये जमा करवाए जाने हैं जिसमें 14,000 करोड़ रुपये की मूल राशि जमा होनी बाकी है।
न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ अब इस मामले में 20 फरवरी को आगे सुनवाई करेगी। सर्वोच्च न्यायालय की इस पीठ में न्यायाधीश रंजन गोगोई व न्यायाधीश ए के सिकरी भी हैं। पीठ ने कहा है कि मूल धन में से समूह ने अब तक 11000 करोड़ रुपये जुटाए हैं, उसे 14000 करोड़ रुपये और जमा करवाने हैं।
सेबी के वकील प्रताप वेणुगोपाल ने न्यायालय को बताया कि 31 अक्तूबर 2016 तक मूल धन पर ब्याज के साथ सहारा समूह पर देनदारी बढ़कर 47,669 करोड़ रुपये हो जाएगी। इस बीच सहारा समूह ने न्यायालय के पिछले आदेश के अनुसार 600 करोड़ रुपये आज जमा करवाए।
शीर्ष अदालत ने यह साफ़ कर दिया था कि अगर उक्त राशि जमा नहीं करवाई गई तो सहारा समूह के प्रमुख सुब्रत राय को फिर जेल जाना पड़ेगा। न्यायालय उनके वकील कपिल सिब्बल की इस बात से सहमत नहीं था कि धन की वसूली समूह द्वारा प्रस्तुत कार्यक्रम के अनुसार उठाया जाए। उसमें इसके लिए समय सीमा जून 2019 रखने का सुझाव दिया गया है। न्यायालय ने कहा कि ‘कोई टोकन राशि नहीं।’
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि 14,000 करोड़ रुपये की बाकी राशि को सहारा समूह की उन संपत्तियों की नीलामी से जुटाया जा सकता है जिनको लेकर कोई विवाद नहीं है या जो गिरवी नहीं रखी हुई हैं। सहारा समूह के वकील सिब्बल ने न्यायालय से आग्रह किया कि उन्हें कम से कम दो घंटे की मोहलत दी जाए ताकि वह यह बता सकें कि सहारा के खिलाफ न्यायालय का फैसला ‘जाहिरा तौर पर गलत’ है।
न्यायालय ने कहा,‘बुनियादी सवाल यह है कि न्यायालय ने पाया है कि आपने फलां-फलां से जो राशि जुटाई वह नियमों का उल्लंघन था।’ अगस्त 2012 के फैसले का संदर्भ देते हुए न्यायालय ने कहा,‘यह मुख्य फैसले का सवाल है।’ सिब्बल ने कहा कि न्यायालय को किसी भी तरह का आदेश जारी करने से बचना चाहिए क्योंकि अगस्त 2012 के फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका लंबित है।
न्यायालय ने कहा कि ब्याज राशि के सवाल पर मूल धन मिलने के बाद ही विचार किया जाएगा। सुनवाई के दौरान सिब्बल ने नोटबंदी व नकदी संकट का मुद्दा उठाते हुए धन जुटाने के लिए और समय मांगा तो न्यायालय ने सपष्ट कर दिया कि ‘ या तो धन जमा कराने की आप स्पीड बढाओ नहीं तो हम आपकी संपत्ति लेंगे।’
न्यायालय ने कहा कि ‘हम सम्पत्ति संबद्ध करने की बात तभी कर रहे हैं जबकि हमारे पास कोई विकल्प नहीं है। इसलिए हमें उन संपत्तियों की सूची सौंपें जो कि 14,000 करोड़ रुपये लाने के लिए पर्याप्त हों।’ उच्चतम न्यायालय ने पिछले साल 28 नवंबर को सहारा से कहा था कि वह सेबी सहारा रिफंड खाते में 600 करोड़ रुपये जमा करवाए। यह राशि आज जमा करवा दी गई।
न्यायालय ने इस तर्क से प्रभावित हुए बिना ही कहा,‘ आप संपत्ति सम्बद्ध किए जाने की बात कर रहे हैं। हमारे पास कोई विकल्प नहीं है। आप उन निर्विवादित संपत्तियों का ब्यौरा दें जो 14000 करोड़ रुपये जुटाने के लिए पर्याप्त हों। तब हम आपको आंबी वैली (संपत्ति) वापस लेने की अनुमति दे देंगे और आपको सुनेंगे।’