बाल श्रम कानून का उल्लंघन करने वाले को 50 हजार रु जुर्माना : आर एल शर्मा एडवोकेट

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वरिष्ठ कानूनी सलाहकार ने विश्व बाल श्रम निषेध दिवस पर कानूनी प्रावधानों की दी जानकारी

देश में 5 करोड़ से अधिक हैं बाल श्रमिक

6 माह से दो साल तक कैद का है प्रावधान

दूसरी बार कानून तोड़ने वाले को 3 साल की कैद

गुरूग्राम। विश्व बाल श्रम निषेध दिवस पूरे विश्व में बाल मजदूरी के विरोध में मनाया जाता है। बाल मजदूरी भारत में बहुत बड़ी समस्या है और यह समस्या सदियों से चली आ रही है। भगवान के रूप में पूजे जाने वाले बच्चों को बाल मजदूरी जैसी सामाजिक बुराई में धकेला जाता है। उक्त विचार लेबर लॉ एडवाईजर्स एसोसिएशन के संयोजक और वरिष्ठ श्रम कानूनी सलाहकार एडवोकेट आर एल शर्मा ने व्यक्त किए।

वे बाल श्रम निषेध दिवस के उपलक्ष्य में जानकारी दे रहे थे। उन्होंने बताया कि खेलने और पढऩे की उम्र में बच्चों से बाल मजदूरी करवाई जाती है। भारत में बाल मजदूरी के खिलाफ अभी तक प्रभावी कानूनी ना होने से और राज्यों में केन्द्र सरकार की उदासीनता के चलते इस अपराध को काफी बढ़ावा मिला। भारत में 1986 में बाल श्रम निषेध नियमन अधिनियम पारित हुआ। इस अधिनियम के अनुसार बाल श्रम तकनीकी सलाहकार समिति नियुक्त की गई। इस समिति की सिफारिश के अनुसार खतरनाक उद्योगों में बाल श्रमिकों का कार्य करना निषेध माना गया था। हालांकि फैक्टरी अधिनियम, बाल अधिनियम, बाल श्रम निरोधक अधिनियम आदि भी बच्चों के अधिकार को सुरक्षा देते हैं, लेकिन इसके विपरीत आज की स्थिति बिलकुल अलग है।

उनके अनुसार सरकारी आंकड़ों के अनुसार भारत में लगभग 2 करोड़ बाल मजदूर हैं और आईएलओ के अनुसार तो भारतीय सरकारी आंकड़ों से लगभग ढ़ाई गुणा ज्यादा अर्थात 5 करोड़ बाल श्रमिक हैं। बाल मजदूरी के मुख्य कारण बढ़ती जनसंख्या, सस्ती मजदूरी, शिक्षा का अभाव और मौजूदा कानूनों का सही तरीके से लागू ना होना जैसे कारण बाल श्रम के लिए जिम्मेदार हैं। समाज के कुछ वर्ग अपनी सुविधानुसार अपने बच्चों को ठेकेदारों के हाथों बेच देते हैं, जो अपनी सुविधानुसार उनको होटलों, कोठियों व अन्य कारखानों आदि में काम पर लगा देते हैं। जहां बच्चों को थोड़ा बहुत खाना देकर कार्य करवाया जाता है। लेकिन बाल श्रमिकों की मौजूदा स्थिति को देखते हुए भारत सरकार ने बाल श्रम निषेध कानून में बदलाव करके इसे और कड़ा बना दिया है। बाल श्रम पर नए कानून को राष्ट्रपति ने गत वर्ष मंजूरी दे दी थी और उसके अनुसार अब किसी भी काम के लिए 14 साल से कम उम्र के बच्चे को नियुक्त करने वाले व्यक्ति को दो साल तक की कैद की सजा तथा उस पर 50 हजार रूपए का अधिकत जुर्माना लगेगा। हालांकि स्कूल से बाद के समय में अपने परिवार की मदद करने वाले बच्चे को इस कानून के दायरे में नहीं रखा गया है।

नया कानून 14 से 18 साल की उम्र के किशोर को खान व अन्य ज्वलनशील पदार्थ या विस्फोटकों जैसे जोखिम वाले कार्यो में रोजगार पर पाबंदी लगाना है। नया कानून फिल्मों, विज्ञापनों या टीवी उद्योग में बच्चों के काम करने पर लागू नहीं होता। संशोधित बाल श्रम कानून सरकार को ऐसे स्थानों पर और जोखिम भरे कार्यों वाले स्थानों पर समय-समय पर निरीक्षण करने का अधिकार देता है, जहां बच्चों के रोजगार पर पाबंदी है। इस सिलसिले में एक विधेयक को लोकसभा ने 26 जुलाई 2017 को पारित किया था और राज्यसभा ने 19 जुलाई को पारित किया था।

श्री शर्मा ने जानकारी देते हुए बताया कि संशोधित अधिनियम के जरिए इसका उल्लंघन करने वालों के लिए सजा को बढ़ाया गया है। बच्चों को रोजगार देने वालों को अब 6 माह से 2 साल तक की सजा होगी या 20 हजार से लेकर 50 हजार रूपए तक जुर्माना या दोनों भी लग सकेंगे। इससे पूर्व यह सजा 3 माह से एक साल तक की और जुर्माने के तौर पर 10 हजार से 20 हजार रूपए तक की थी।

उन्होंने बताया कि दूसरी बार अपराध में संलिप्त पाए जाने पर नियोक्ता को एक साल से लेकर 3 साल तक की कैद की सजा का प्रावधान किया गया है। कानून के मुताबिक किसी भी बच्चे को किसी भी रोजगार या व्यवसाय में नहीं लगाया जाएगा। हालांकि स्कूल के समय के बाद या अवकाश के दौरान उसे परिवार की मदद करने की छूट दी गई है। श्री शर्मा ने बताया कि गुरूग्राम में बाल श्रम को रोकने के लिए एसोएिशन, जिला विधिक सेवाएं प्राधिकरण, श्रम विभाग हरियाणा और शहर की लगभग एक दर्जन सामाजिक संस्थाओं के साथ मिलकर एक महीने तक बाल श्रम के खिलाफ अभियान चलाएंगे, जिसके दौरान आमजन को बाल श्रम के खिलाफ जागरूक किया जाएगा, सेमीनार किए जाएंगे, संभावित स्थानों पर जाकर बाल श्रमिकों को रिहा करवाया जाएगा और बाल श्रम के खिलाफ जनजागरण अभियान चलाया जाएगा।

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