आखिर क्यों की जाती है कुर्बानी, ईद-उल-जुहा पर विशेष

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यूनुस अलवी

मेवात: ईद-उल-अजहा यानि बकरीद का त्योहार केवल बकरों की कुर्बानी देने का ही नाम नहीं हैं बल्कि कुर्बानी का मकसद है अल्लाह को राजी करने के लिए अपनी सबसे प्यारी चीज को भी त्याग कर देना है। इसी दिन दुनिया भर के मुसलमान अरब पहुंच कर हज करते हैं। हज की वजह से भी इस पवित्र त्योहार की अमियत बढ जाती है। अल्लाह को राजी करने के लिए जानवरों की कुर्बानी देना तो जरिया है जबकि अल्लाह को कुर्बानी का गोश्त नहीं पहुँचता है, वह तो केवल कुर्बानी के पीछे बंदों की नीयत को देखता है। अल्लाह को पसंद है कि बंदा उसकी राह में अपना हलाल तरीके से कमाया हुआ धन खर्च करे। कुर्बानी का सिलसिला ईद के दिन को मिलाकर तीन दिनों तक चलता है।
 
क्या है कुर्बानी का इतिहास-  इसलाम धर्म में इब्राहीम नाम के एक पैगंबर गुजरे हैं, जो मुहम्मद साहब से हजारों साल पहले पैदा हुऐ थे। जिन्हें ख्वाब में अल्लाह का हुक्म हुआ कि वे अपनी सबसे प्यारी चीज को अल्लाह की राह में कुर्बान कर दें। अल्लह को राजी करने के लिए इब्राहीम ने बकरा से लेकर ऊंट तक की कुर्बानी दी लेकिन अल्लाह हर बार ख्वाब मेें सबसे प्यारी चीज को कुर्बान करने का हुक्म दिया। आखिर में इब्राहीम को लगा कि उसका बेटा बेटे इस्माईल (जो बाद में पैगंबर हुए) ही सबसे त्यारा है।
 
अल्लाह उसी की ही कुर्बानी मांग रहा है। यह इब्राहीम अलैही सलाम के लिए एक इम्तिहान था, जिसमें एक तरफ थी अपने बेटे से मुहब्बत और एक तरफ था अल्लाह का हुक्म। इब्राहीम अलैही सलाम ने अल्लाह के हुक्म को पूरा करने के लिऐ अपने लख्ते जिगर बेटे इस्माईल नबी की कुर्बानी देने को तैयार हो गए। जैसे ही इब्राहीम अलैही सलाम अपनी आंखों पर पटटी बांधकर छुरी से अपने बेटे को कुर्बान करने लगे, वैसे ही अल्लाह ने फरिश्तों के सरदार जिब्रील अमीन को जमीन पर भेजकर इस्माईल को छुरी के नीचे से हटाकर उनकी जगह एक मेमना (भेड का बच्चा) को रख दिया। इस तरह इब्राहीम अलैही सलाम के हाथों मेमना कुर्बान हो गया। जैसे ही इब्राहीम ने अपनी आंखे खोली तो वहां इसमाईल की जगह भेड का बच्चा कटा हुआ था तो फरिश्ता जिब्रील अमीन ने इब्राहीम को खुशखबरी सुनाई कि अल्लाह ने आपकी कुर्बानी कुबूल कर ली है और कयामत तक आने वाले सभी इसलाम के मानने वाले मालदारों पर हर साल कुर्बानी करना जरूरी कर दिया है। तभी से अल्लाह को राजी करने के लिए पशुओं की कुर्बानी दी जाती है।
 
कौन करें कुर्बानी- शरीयत के मुताबिक कुर्बानी हर उस औरत और मर्द के लिए वाजिब है, जिसके पास साडे बावन तोला चांदी या साडे सात तौला सौना या इनके बराबर रूपया हो या फिर तीनों (रुपया, सोना और चाँदी) मिलाकर सोना, चांदी के बराबर बनते हों। गरीब, मोहताज पर कुर्बानी फर्ज नहीं है।
 
कुर्बानी के तीन हिस्से- कुर्बानी के गोश्त के तीन हिस्से करने की शरीयत में सलाह है। एक हिस्सा गरीबों में तकसीम किया जाए, दूसरा हिस्सा अपने दोस्त अहबाब के लिए इस्तेमाल किया जाए और तीसरा हिस्सा अपने घर में इस्तेमाल किया जाए। तीन हिस्से करना जरूरी नहीं है, अगर खानदान बड़ा है तो उसमें दो हिस्से या ज्यादा भी इस्तेमाल किए जा सकते हैं। गरीबों में गोश्त तकसीम करना मुफीद है।
 

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