नई दिल्ली : केन्द्रीय मंत्रिमंडल की स्वीकृति मिलने के बाद गत 10 नवंबर को पंजीकरण के पश्चात ब्रिक सोसाइटी की पहली बैठक को संबोधित करते हुए, केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), प्रधानमंत्री कार्यालय, कार्मिक, लोक शिकायत, पेंशन, परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने आज कहा कि भारत के लिए “बायो-विजन” को परिभाषित करने का समय आ गया है।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने आज कहा कि बायोटेक्नोलॉजी रिसर्च एंड इनोवेशन काउंसिल (ब्रिक) नामक नई एपेक्स ऑटोनॉमस सोसायटी बायोटेक अनुसंधान और नवोन्मेषण को बढ़ाकर स्वास्थ्य सेवा, भोजन और ऊर्जा आवश्यकताओं जैसे क्षेत्रों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत के विजन को साकार करेगी।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा, भारतीय जैव-अर्थव्यवस्था में पिछले दस वर्षों में 13 गुना वृद्धि दर्ज की गई है।
डॉ. सिंह ने प्रधानमंत्री श्री मोदी को संदर्भित करते हुए कहा, ‘भारत बायोटेक के वैश्विक इकोसिस्टम में शीर्ष 10 देशों की लीग में पहुंचने से बहुत दूर नहीं है।’ उन्होंने कहा कि ब्रिक इसका प्रमाण बनने जा रहा है और सरकार फिर से सबका प्रयास की भावना को विकसित करके बुद्धिजीवियों को एक समेकित मंच पर एकजुट कर रही है।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने बताया कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय का जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी) देश में जैव प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देने के लिए नोडल एजेंसी के रूप में कार्य कर रहा है। देश भर में बायोटेक अनुसंधान के प्रभाव को इष्टतम बनाने के लिए केंद्रीकृत और एकीकृत शासन हेतु एक शीर्ष स्वायत्त सोसायटी अर्थात् जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान और नवोन्मेषण परिषद (ब्रिक) के तहत उन्हें शामिल करने के जरिए इसके 14 स्वायत्त संस्थानों (एआई) को विवेकपूर्ण बनाने के लिए मंत्रिमंडल की मंजूरी दी गई थी।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने ब्रिक बैठक को भारत के बायोटेक इकोसिस्टम, जहां विशिष्ट संस्थान बायोटेक अनुसंधान एवं विकास इकोसिस्टम को प्रभावित करने के लिए अपने प्रयासों को सुदृढ़ कर रहे हैं, में एक ऐतिहासिक घटना बताया। उन्होंने आशा व्यक्त की कि ब्रिक अर्थव्यवस्था और रोजगार सहित हर मोर्चे पर भारत की प्रगति को समृद्ध करेगा। डॉ. सिंह ने कहा कि निपुण संस्थान-निर्माताओं के रूप में वह इस महत्वपूर्ण बैठक में भारत के लिए बायो-विजन को परिभाषित करने के लिए उनके विचार जानना चाहेंगे, क्योंकि वे इस महान मिशन में अत्यधिक मूल्यवर्धन करेंगे।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने यह भी कहा कि यह भारत सरकार के पहले विभागों में से एक है जिसने अपने स्वायत्त निकायों की प्रक्रिया और निष्पादन को बढ़ाने के लिए “स्वायत्त निकायों के युक्तिकरण” को सफलतापूर्वक क्रियान्वित किया है।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा, ब्रिक द्वारा प्रेरित कुछ महत्वपूर्ण बदलावों में यह शामिल है कि 14 सम्मिलित ब्रिक संस्थानों में से प्रत्येक संस्थान ब्रिक में एक शासी निकाय द्वारा शासित अपने विशिष्ट अनुसंधान जनादेश को बनाए रखेगा। उन्होंने कहा, संस्थानों को संस्थागत अनुसंधान से उभरने वाले स्टार्ट-अप के लिए अनुसंधान एवं विकास करने हेतु डीबीटी संस्थानों के बाहर के शोधकर्ताओं और उनके सहयोगियों (उद्योग या अन्य संस्थानों से) के लिए संस्थागत प्रयोगशाला स्थान के उपयोग की अनुमति दी जाएगी, जो एक तिहाई से अधिक नहीं होगी।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने यह भी रेखांकित किया कि ब्रिक और उसके संस्थान सार्वजनिक-निजी अनुसंधान साझेदारी में शामिल हो सकते हैं और अनुसंधान-संबंधित कार्यकलापों के लिए गैर-सरकारी संसाधनों से धन सहित वृत्तियां प्राप्त कर सकते हैं।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने यह भी कहा कि आरसीबी में एक सामान्य पाठ्यक्रम और थीसिस कार्य से पहले अनुसंधान परिकल्पनाओं को मान्य करने के लिए प्रक्षेत्र या प्रयोगात्मक अध्ययन के लिए इमर्सन ट्रेनिंग के साथ ब्रिक संस्थानों में नया पीएचडी कार्यक्रम आरंभ किया गया। इमर्सन चरण के दौरान (लगभग 3 महीने के लिए) छात्रों को ग्रैंड चैलेंजेज इंडिया कार्यक्रम से अतिरिक्त फ़ेलोशिप मिलेगी। इसके अतिरिक्त, संस्थानों के वैज्ञानिक चरित्र को बढ़ाने के लिए अतिरिक्त 120 वैज्ञानिक पद सृजित किए जा रहे हैं। सभी स्तरों और कैडरों में समानता भी लाई जा रही है। उन्होंने कहा कि वैज्ञानिकों के लिए सेवा संभावनाओं में सुधार लाने के लिए भी कदम उठाए जा रहे हैं।
वित्त मंत्रालय के व्यय विभाग द्वारा “स्वायत्त निकायों के युक्तिकरण” पर जारी निर्देशों के अनुसार डीबीटी ने इस पुनर्गठन कार्यकलाप की शुरुआत की। हालांकि उन्होंने इसे आत्मनिरीक्षण करने और डीबीटी संस्थानों में अनुसंधान के तरीके में सुधार करने के अवसर के रूप में उपयोग किया है। इसकी परिकल्पना शासन, दक्षता में सुधार, अधिक अंतःविषय बातचीत के माध्यम से सहयोग को प्रोत्साहित करने और संसाधनों का लोकतंत्रीकरण करने के लिए की गई है। सरकारी प्रक्रियाओं और प्रशासनिक मुद्दों के अनुपालन को एक समन्वित प्रयास में केंद्रीय रूप से प्रबंधित किया जाएगा, जिससे “न्यूनतम सरकार, अधिकतम शासन” अर्जित होगा।
ब्रिक की नई सर्वोच्च संस्था की सोसायटी द्वारा शासित होने वाले 14 संस्थान हैं: :i) नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इम्यूनोलॉजी (एनआईआई, नई दिल्ली); ii) राष्ट्रीय कोशिका विज्ञान केंद्र (एनसीसीएस, पुणे); iii) जीवन विज्ञान संस्थान (आईएलएस, भुवनेश्वर); iv) राजीव गांधी जैव प्रौद्योगिकी केंद्र (आरजीसीबी, तिरुवनंतपुरम); v) डीएनए फ़िंगरप्रिंटिंग और डायग्नोस्टिक्स केंद्र (सीडीएफडी, हैदराबाद); vi) राष्ट्रीय मस्तिष्क अनुसंधान केंद्र (एनबीआरसी, मानेसर); vii) राष्ट्रीय पादप जीनोम अनुसंधान संस्थान (एनआईपीजीआर, नई दिल्ली); viii) जैवसंपदा एवं सतत विकास संस्थान (आईबीएसडी, इंफाल); ix) राष्ट्रीय पशु जैव प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईएबी, हैदराबाद); x) स्टेम सेल विज्ञान और पुनर्योजी चिकित्सा संस्थान (इनस्टेम, बैंगलोर); xi) नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ बायोमेडिकल जीनोमिक्स (एनआईबीएमजी, कल्याणी); xii) ट्रांसलेशनल हेल्थ साइंस एंड टेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट (टीएचएसटीआई, फ़रीदाबाद); xiii) राष्ट्रीय कृषि-खाद्य जैव प्रौद्योगिकी संस्थान (एनएबीआई, मोहाली); xiv) सेंटर ऑफ इनोवेटिव एंड एप्लाइड बायोप्रोसेसिंग (सीआईएबी, मोहाली)। एनएबीआई और सीआईएबी को एक निदेशक के साथ एक प्रशासनिक इकाई में विलय कर दिया गया है।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने आज ब्रिक की पहली सोसाइटी बैठक के अवसर पर ‘परिसर में शून्य अपशिष्ट जीवन’ कार्यक्रम भी लॉन्च किया।
परिसर में शून्य अपशिष्ट जीवन’ कार्यक्रम का उद्देश्य प्रत्येक ब्रिक परिसर में ज्ञान और प्रौद्योगिकियों के अनुप्रयोग और अंगीकरण के माध्यम से स्थिरता प्राप्त करना और सह-उत्तरदायित्व पर केंद्रित प्रबंधन मॉडल को बढ़ावा देना है। 13 ब्रिक परिसरों के विविध स्थान, संस्कृतियां और जलवायु परिस्थितियां पुनर्चक्रण प्रौद्योगिकियों और तकनीकों से संबंधित लाभों और चुनौतियों को समझने का अवसर प्रदान करेंगी। यह कार्यक्रम समुदाय द्वारा एकीकृत अपशिष्ट प्रबंधन की दिशा में अनुसंधान के लिए व्यापक स्तर पर एक नई दिशा तैयार करेगा।
डॉ. सिंह ने अपनी टिप्पणी में कहा कि यह एक जन केंद्रित आंदोलन है जो भारत को स्थायी अपशिष्ट प्रबंधन में अग्रणी बनाने के लिए एक मार्गदर्शक के रूप में काम करेगा। यह कार्यक्रम इन सभी संस्थानों के बीच सहयोग को मजबूत करेगा और शून्य अपशिष्ट की अवधारणा का पालन करने के लिए भारत भर के अन्य संस्थानों के लिए उत्प्रेरक का काम भी करेगा।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि यह कार्यक्रम प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के मिशन लाइफ आंदोलन के साथ संयोजित है।