सीएम से मिलने वाले 8 पत्रकारों की हालत : “खाली हाथ लौटा बुद्धू घर को”
सुभाष चौधरी/प्रधान संपादक
गुरुग्राम, 31 जनवरी : गुरुग्राम के मिडिया जगत के लिए बुधवार को गुरुग्राम महानगर विकास प्राधिकरण की बैठक से अधिक सीएम मनोहर लाल की एक दूसरी ख़ास बैठक चर्चा का विषय बनी रही. शहर में नव निर्मित पी डब्ल्यू डी रेस्ट हाउस के मुख्य गेट पर पत्रकारों का एक समूह इस बात को लेकर गुस्से में दिखा कि आखिर इस ख़ास और गोपनीय बैठक से उन्हें क्यों अलग रखा गया ? क्योंकि जीएमडीए की बैठक के तत्काल बाद ही इस ख़ास बैठक में शहर के 8 तथाकथित वरिष्ठ व चुनिन्दा पत्रकारों से सीएम ने बंद कमरे में मुलाक़ात की. यह ख़ास इसलिए भी थी क्योंकि इसमें इलेक्ट्रॉनिक व ऑनलाइन न्यूज पोर्टल के साथ साथ कई राष्ट्रीय अखबारों के किसी भी प्रतिनिधि को शामिल नहीं किया गया. और यह एक्सक्लूसिव कदम तब उठाया गया जब लोक संपर्क विभाग की ओर से तीनों प्रकार के सभी पत्रकारों को प्रेस कांफ्रेंस का नियमित आमन्त्रण भेजा गया था. मगर इस बैठक का लब्बोलुआब यही रहा कि मुख्यमंत्री ने उन तथाकथित मठाधीशों की औकात का एक्सरे थोड़ी ही देर में कर उन्हें खाली हाथ बाहर भेज दिया.
वैसे यह खोज का विषय है कि मनोहर लाल सरकार के कार्यकाल में आखिर यह अव्यावहारिक ऐतिहासिक घटना हुई कैसे ? इसकी पृष्ठभूमी जानने की इच्छा मिडिया के उन सभी साथियों की बलवती होना स्वाभाविक ही है.
बताया जाता है कि इस तथाकथित ब्यूरोचीफी मुलाकात की पृष्ठभूमी गुरुग्राम के लघु सचिवालय से नहीं बल्कि चंडीगढ़ के सेक्टर एक स्थित सचिवालय से जुडी हुयी है. इसके सूत्रधार उसी भवन में बैठते हैं और रोज नेक दिल इंसान मुख्यमंत्री मनोहर लाल को अपने सुझावों से सरकार के वारे न्यारे करवाने का दिवास्वप्न दिखाते हैं. इसी लक्ष्य के तहत उन्होंने यह प्रस्ताव तैयार किया और सुझाव दे डाला कि सीएम को गुरुग्राम के कुछ ख़ास अखबारों के तथाकथित ब्यूरो चीफ से सीधा संपर्क साधना चाहिए. उन्हें यह समझाया गया कि इससे उनकी व सरकार की छवि को निखारने में मदद मिलेगी . चंडीगढ़ के सूत्रों का कहना है सीएम के मीडिया सेल से गुरुग्राम स्थित लोक संपर्क विभाग को फरमान जारी हुआ कि विना देरी यहाँ कार्यरत मिडिया प्रतिनिधियों की लिस्ट मुख्यालय भेजी जाये. जानकारी के अनुसार आनन फानन में गुरुग्राम की पूरी मिडिया लिस्ट चंडीगढ़ भेज दी गयी.
खबर है कि इस लिस्ट में से चंडीगढ़ में सीएम के मिडिया सलाहकारों ने उन नामों की छंटनी की जो उनकी नजर में राष्ट्रीय अखबार माने जाते हैं. 11 ऐसे राष्ट्रीय अखबारों के तथाकथित ब्यूरो चीफ के नाम की सूचि फाइनल कर गुरुग्राम कार्यालय को सूचित किया गया. चंडीगढ़ के मिडिया सलाहकारों ने ही उन अखबारों से इन नामों की तस्दीक की और उन्हें बुधवार को सीएम के साथ गुफ्तगू के लिए बुलाये जाने के प्रस्ताव पर मोहर लगा दी गई. यह निर्णय तब लिया गया जब इस प्रस्ताव के प्रति न तो चंडीगढ़ स्थित लोक जनसंपर्क विभाग की सहमती थी और न ही गुरुग्राम कार्यालय की. लेकिन सीएम के नाम पर जारी फरमान के सामने सभी की बोलती बंद थी और उसे मानने को मजबूर भी.
यह बताना जरूरी है कि सीएम मनोहर लाल के साथ कार्यरत मिडिया सलाहकारों को शायद इस बात का भान नहीं है कि अखबार सहित मिडिया के तीनों माध्यमों में किसी में भी ब्यूरो चीफ नाम का इन शहरों के लिए नियमतः कोई पद नहीं होता. केंद्र सरकार द्वारा पत्रकारिता की दुनिया के लिए गठित आयोग द्वारा निर्धारित नियमों में अखबार में तो “चीफ ऑफ़ ब्यूरो” नामक केवल एक पद होता है. और वह केवल अखबार के मुख्यालय में होता है जो केन्द्रीय मंत्रालयों की रिपोर्टिंग करने वाले विशेष संवाददाताओं के प्रमुख होते हैं. यहाँ तक कि चीफ रिपोर्टर का भी एक पद होता है जो केवल स्टेट ब्यूरो के हेड होते हैं. इन शहरों में सीनियर रिपोर्टर या प्रिंसिपल रिपोर्टर को यह मौखिक जिम्मेदारी देने की परंपरा वर्षों से चली आ रही है. वैसे जानकारी के लिए यहाँ यह भी उल्लेख करना आवश्यक है कि जिन 8 पत्रकारों ने मुख्यमंत्री से मुलाक़ात की उनमें से एक पत्रकार हिंदी अखबार के स्टाफर यानी नियमित रिपोर्टर भी नहीं हैं बल्कि वह एक स्ट्रिंगर है. उसे केवल इसलिए एंट्री मिली क्योंकि वह मिडिया सलाहकार का कृपापात्र है और आजकल वह गुरुग्राम के पत्रकारों का स्वयंभू नेता भी बना हुआ है .
इस खबर को समझने के लिए देखें प्रेस कांफ्रेंस की लाइव विडियो :
खैर कोई बात नहीं वो चाहे जो हों उन्हें सीएम से बंद कमरे में मुलकात कराने के लिए सूचि देख कर अन्दर बुलाया गया. जो अंदर गए वे तो इस ख़ुशी में कि आज तो साक्षात् कुबेर के दर्शन होंगे लेकिन जो बाहर रहे उन्हें उपेक्षित होने की टीस रह रह कर नहीं फूटने वाले फोड़े की तरह दर्द का एहसास कराता रहा. बाहर खड़े लगभग सभी इस मत के थे कि सीएम की आज की प्रेस कांफ्रेंस का बहिष्कार कर दिया जाए. मुलाकातियों में हालाँकि 11 नाम तय किये गए थे जिनमें से तीन नहीं पहुंचे. एक हिंदी अखबार की प्रतिनिधि अपने कार्यालय की व्यस्तता के कारण नहीं आई तो उनके दूसरे प्रतिनिधि ने सूचि में नाम नहीं से होने के कारन अन्दर जाने से इनकार कर दिया जबकि एक अंग्रेजी अखबार का प्रतिनिधि एक अधिकारी के पास सीएम के कमरे में जाने के लिए इस प्रकार गिरगिराता रहा जैसे नहीं जाने से वे भगवान् कृष्ण के कौष्टव मणि पाने से वंचित रह जायेंगे. लेकिन उक्त अधिकारी ने अपनी असमर्थता जताते हुए उन्हें मना इसलिए कर दिया क्योंकि लोकसंपर्क विभाग की सूचि में उनके नाम के साथ बयूरोचीफ़ नहीं लिखा है. बावजूद इसके कि अंग्रेजी अखबार का वह प्रतिनिधि वास्तव में ब्यूरो प्रभारी है. लेकिन उनके अखबार ने ऐसा लिख कर उनके बारे में सूचित नहीं किया है.
लेकिन मरता क्या नहीं करता ! यह कहावत हम पत्रकारों के लिए सटीक बैठती है. सीएम के मिडिया सलाहकार ने इस स्थिति को भांपते ही सभी को मनाने की कोशिश की. अंततः सभी प्रेस कांफ्रेंस में आये.
अब जानने वाली बात यह है कि उन 8 पत्रकारों ने सीएम से मिल कर क्या हासिल किया ? क्या कुछ ख़ास चर्चा की ? क्या कोई गोपनीय बातें उनसे शेयर की ? क्या उनकी शान में चार चाँद लग गया ? शायद ऐसा बिलकुल नहीं ! क्योंकि सूत्रों के अनुसार खबर पुख्ता है कि सीएम ने केवल उनसे व्यक्तिगत उनके बारे में पूछा . उनसे पूछा कि वे किस प्रदेश के रहने वाले हैं ? कब से यहाँ रह रहे हैं ? यहाँ कहाँ रहते हैं ? यह शहर कैसा लगता है ? कब से सम्बंधित अखबार में काम करते हैं ? इत्यादि सवालों से उनका मन बहला कर उन्हें बाहर कर दिया. अब इसे कोई ख़ास गुफ्तगू कहे या फिर “खाली हाथ लौटा बुद्धू घर को”.
अब अहम् सवाल यह है कि अगर यही औपचारिकता करनी थी तो इस ड्रामा को रचने की जरूरत क्या थी ? और बड़ा सवाल यह है कि अगर गुरुग्राम के पत्रकारिता जगत में उनके अनुसार अहम् स्थान रखने वाले इन मिडिया प्रतिनिधियों से अगर एक्सक्लूसिव बात ही करनी थी तो ऐसे समय ही क्यों जब जी एम् डी ए की बैठक के तत्काल बाद नियमित प्रेस कांफ्रेंस रखी गयी थी और सभी संस्थानों के पत्रकारों को आमंत्रित किया गया था. इस प्रेस कांफ्रेंस से पूर्व पत्रकारों की ख़ास टोली से मुलाक़ात की प्रासंगिकता और व्यावाहारिकता समझ से परे रही. और एक्सक्लूसिव बैठक में जब कुछ ख़ास चर्चा ही नहीं करनी थी फिर ऐसा क्यों किया गया जिसने शहर के अधिकतर पत्रकारों को छला हुआ ही महसूस नहीं कराया बल्कि बहुत अधिक आहत किया.
यही कारन रहा कि प्रेस कांफ्रेंस में भी यह मुद्दा उछला और अधिकतर मिडिया कर्मियों ने सीएम से विरोध जताया. मुख्यमंत्री को यह सलाह देने वाले शायद यह भूल गए कि यूपीए शासनकाल में पीएम के रूप में मनमोहन सिंह जब कुछ चुनिन्दा पत्रकारों से मिला कर अपनी बात रखते थे तो तब भाजपा के नेता इस बात की तीव्र आलोचना करते थे. लेकिन अब उसी नक्शा -ए कदम पर चलने को सीएम मनोहर लाल के मिडिया सलाहकार और कुछ ब्यूरोक्रेट उन्हें प्रेरित कर रहे हैं. वास्तव में यह मिडिया मैनेजमेंट का छापामार तरीका है जिससे मुख्यमंत्री असहयोगात्मक आन्दोलन के शिकार हो सकते हैं. उन 11 पत्रकारों को ही किसी सरकार की छवि बिगाड़ने व बनाने में सक्षम समझ लेना बड़ी भूल साबित हो सकती है.
हांलाकिं सीएम ने प्रेस कांफ्रेंस में यह कह कर सबको चौंका दिया कि किसी से मिलना और नहीं मिलना उनका अधिकार है. यह सही है लेकिन जिस समय यह आयोजन किया गया वह समय के अनुसार बेहद अनुभवहीनता का परिचय दिलाता है. इससे पूर्व किनसे मुलाकात होती है इसे लेकर कोई सवाल खड़ा नहीं करता लेकिन एक ही अंग के कुछ लोगों से उसी समय अलग से मिलना सदेह पैदा करता है. यह सदेंह पैदा करता है कि यह लोकतंत्र के चौथा खम्भे में फूट डालने की नीति तो नहीं ! लेकिन अब समझने की जरूरत है कि यह सूत्र अब बहुत पुराना हो गया है और इसके बड़े नुक्सान भी हैं .