अगली सुनवाई 17 फ़रवरी को होगी
नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को यह स्पष्ट कर दिया कि तीन तलाक, तलाक हलाला और बहुविवाह की परंपरा से जुड़े केवल कानूनी पहलू पर ही विचार किया जायेग. अदालत इस सवाल पर विचार नहीं करेगा कि क्या मुस्लिम पर्सनल ला के तहत तलाक की अदालतों को निगरानी करनी चाहिए क्योंकि यह विधायिका के अधिकार क्षेत्र में आता है.
प्रधान न्यायाधीश जगदीश सिंह खेहर, न्यायमूर्ति एनवी रमण और न्यायमूर्ति धनंजय वाई चंद्रचूड की पीठ ने कहा कि आप सभी पक्ष एक साथ बैठिये और उन बिन्दुओं को अंतिम रूप दीजिये जिन पर हमे विचार करना होगा. हम बिन्दुओं के बारे में फैसला करने के लिये इसे परसों सूचीबद्ध कर रहे हैं. पीठ ने संबंधित पक्षों को यह भी स्पष्ट कर दिया कि किसी मामले विशेष के तथ्यात्मक पहलुओं पर विचार नहीं करेगा और इसकी बजाये कानूनी मुद्दे पर फैसला करेगा.
मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि हमारी तथ्यों में कोई दिलचस्पी नहीं है. हमारी दिलचस्पी सिर्फ कानूनी मुद्दे पर फैसला करने की है. शीर्ष अदालत ने कहा कि मुस्लिम पर्सनल ला के तहत तलाक को अदालतों की निगरानी या अदालत की निगरानी वाली संस्थागत मध्यस्थता की आवश्यकता से संबंधित सवाल विधायिका के दायरे में आते हैं. गौरतलब है कि वर्त्तमान केन्द्र सरकार ने मुस्लिम समुदाय में प्रचलित तीन तलाक, तलाक हलाला और बहविवाह प्रथा का विरोध करते हुये लिंग समानता और पंथनिरपेक्षता के आधार पर इस पर नये सिरे से गौर करने की हिमायत की है।
विधि एवं न्याय मंत्रालय ने लिंग समानता, पंथनिरपेक्षता, अंतरराष्ट्रीय नियम, धार्मिक परंपराओं और विभिन्न इस्लामिक देशों में प्रचलित वैवाहिक कानूनों का भी हवाला दिया है। आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड ने नरेन्द्र मोदी सरकार के इस दृष्टिकोण कका विरोध किया है. जमीयत उलेमा -ए-हिन्द ने अदालत के समक्ष कहा है कि तीन तलाक, तलाक हलाला और बहुविवाह जैसे मुद्दों के बारे में मुस्लिम पर्सनल ला में किसी प्रकार के हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है.