हरियाणा में जाट आरक्षण आंदोलन की सुगबुगुहाट के मायने ……..

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                     राजनैतिक दृढ़ इच्छा शक्ति की जरूरत                     

एक बार फिर हरियाणा में जाट आरक्षण आंदोलन की सुगबुगुहाट तेज होती दिखाई दे रही है जो कि समझ से परे है। उग्र व हिंसक आंदोलन कर जाट समुदाय के ही कुछ राजनैतिक महत्वाकांक्षी लोग समुदाय की सांस्कृतिक, सामाजिक, ऐतिहासिक समृद्धता की साख को धूमिल करने की चेष्टा कर रहे हैं। राजनैतिक स्वार्थ की पूर्ति के लिए कुछ तथाकथित नेताओं द्वारा 29 जनवरी से आंदोलन खडा करने की पुन कोशिश करना इसका प्रमाण है।

हरियाणा में जाट आरक्षण आंदोलन की सुगबुगुहाट के मायने ........ 2
सुप्रीम कोर्ट में आरक्षण का मामला खारिज होने के बाद प्रदेश में भाजपा सरकार ने पुन जाट समुदाय सहित पांच जातियों को आरक्षण देने का फैसला लिया। प्रदेश सरकार के इस फैसले को अदालत में चुनौती दी गई और आरक्षण पर स्टे लगा दिया गया। जाट सहित पांचों जातियों को आरक्षण देने का मामला अदालत में विचाराधीन है। हरियाणा सरकार में अपनी तरफ से अच्छे वकील  जगदीप धनखड, जो जाट समुदाय से और पूर्व केंद्रीय मंत्री हैं, पैरवी के लिए लगाया हुआ है। मेरी श्री धनखड से चंडीगढ एयरपोर्ट पर मुलाकात हुई और उनसे आरक्षण के मामले में बात हुई। बातचीत में श्री धनखड ने बताया कि मामला अदालत में है और आरक्षण का मामला बडा ही पेचीदा होता है। समुदाय को कानून व संवैघानिकता में विश्वास रखने की जरुरत हैै।

एस पी गुप्ता (रिटायर्ड आईएएस)

पूर्व महानिदेशक हिपा

पिछले वर्ष हुए जाट आरक्षण आंदोलन के हुई हिंसा को किसी भी तरह सभ्य समाज में जायज नहीं ठहराया जा सकता। जान माल की हानि हुई। जिसे आंदोलनकारियषें को पहचानकर वसूला जाना चाहिए जिससे की एक मिसाल बन सके। सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में स्पष्ट किया हुआ है कि यदि आंदोलन के दौरान किसी की संपत्ति को नुकसान होता है तो उस की भरपाई आंदोलनकारियों से कराई जाए। आंदोलन हिंसक होने से पूरे देश व विश्व में हरियाणा की छवि बदनाम हुई वहीं जाट समुदाय की समृद्ध छवि थी उसे धक्का लगा। किसी भी समुदाय को अपनी सांस्कृतिक, एतिहासिक समृद्धता बनाने में सदियों लग जाती हैं और उसे कुछ स्वार्थी लोग राजनैतिक लाभ के लिए धूमिल करने का काम कर रहे हैं जिसे किसी भी तरह सही नहीं कहा जा सकता। ऐसे में मनोहर सरकार को राजनैतिक दृढ इच्छा शक्ति दिखाते हुए कडे कदम उठाने चाहिए।

 

पिछले वर्ष आंदोलन में सरकार ने राजनैतिक इच्छा शक्ति का परिचय दिया होता तो इतना बडा आंदोलन खडा नहीं होता और जान माल का नुकसान नहीं होता। राजनैतिक दृढ इच्छाशक्ति न होने के बाद स्थिति बेकाबू हो गई। हां, इस बार कुछ खाप पंचायतें प्रदेश सरकार से मिलकर पिछले वर्ष हुए आंदोलन में बंद हुए लोगों, मृतकों के आश्रितों को नौकरी व आर्थिक सहायता देने पर बातचीत का रास्ता बनाए हुए हैं। यह साफ दर्शाता है कि वर्ष 2016 के आंदोलन में जो हुआ उसे किसी भ्ी सूरत में सही नहीं ठहराया जा सकता। यह बात खाप प्रतिनिधियों को भी मालूम है। सरकार ने मृतकों के आश्रितों को नौकरी देने का भरोसा खाप पंचायतों को दिया है और इस मामले में जेल में बंद लोगों की रिहाई के कानूनी पहलुओं पर विचार करने का आश्वासन दिया है जो कि व्यवहारिक नहीं है। राजनैतिक लाभ के लिए किसी भी सरकारों द्वारा इस तरह के निर्णय नहीं लेने चाहिए। इस तरह के निर्णय देशहित में नहीं होते।
मेहनत के बल पर जाट समुदाय ने जो मुकाम हासिल किया है उसे समुदाय के लोगों द्वारा गंवाना नही चाहिए। इसका प्रमाण यह है कि पिछले वर्ष हरियाणा सिविल सेवा के आए परिणामों में चयनित हुए अभ्यर्थियों में पचास प्रतिशत जाट समुदाय के युवा थे। ऐसे में नौकरियों में आरक्षण की मांग को लेकर आंदोलन करना समझ से परे है। जाट समाज के लोग आरक्षण की मांग को लेकर जो उर्जा लगा रहे हैं वही उर्जा शिक्षा, चिकित्सा, सेवा में लगाए तो इसके सकारात्मक परिणाम आएंगे और यह उर्जा समाज को समृद्धता की ओर ले जाएगी। पिछडा वर्ग में शामिल होने की मांग से समुदाय को मार्शल कौम का जो श्रेय हासिल है वह भी एक तरह से हाशिए पर चला जाएगा। जाट समुदाय के बुद्धिजीवी आगे आएं और कानूनी व संवैधानिक तथ्यों के अधार पर समुदाय के लोगों को समझाने का कार्य करें तो सराहनीय होता।
यहां यह भी उल्लेख करना जरुरी है कि बयानबाजी, जनसभा कर जातियों, समुदायों, समूहों पर उग्र टिप्पणी नहीं होनी चाहिए। ऐसी टिप्पणी, भाषण देने वाले नेताओं के खिलाफ भी प्रदेश सरकार तुरंत कार्रवाई करे। सरकार को चाहिए की भाईचारा, समाज को तोडने वाले लोगों से भी सख्ती से निपटे।
कुरुक्षेत्र से भाजपा सांसद  राजकुमार सैनी एचसीएस भर्ती में अनियमितता की बात न कर यह मुददा उठाए कि इस भर्ती में यह साबित हो जाता है कि जाट समुदाय को आरक्षण की जरुरत नहीं है क्योंकि पचास फीसदी से अधिक अभ्यर्थी जाट समुदाय से लगे हैं तो तर्कसंगत अधिक होता।

                                                                  लेखक :  एसपी गुप्ता, रिटायर्ड आईएएस

                                                                                   

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