चंडीगढ़ : हरियाणा कांग्रेस के विधायकों का शिष्टमण्डल पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा के नेतृत्व में बुधवार को हरियाणा के राज्यपाल सत्यदेव नारायण आर्य से मिला और उन्हें रोडवेज कर्मचारियों की हड़ताल से उत्पन्न परिस्थितियों के बारे में अवगत कराया . श्री हुड्डा ने राज्यपाल से इस मामले में तुरन्त हस्तक्षेप करने की मांग करते हुए एक ज्ञापन सौंपा ।
पूर्व मुख्य मंत्री ने ज्ञापन के माध्यम से अनुरोध किया है कि इस जटिल मसले में तुरन्त दखल दें ताकि सरकार व कर्मचारियों के बीच बने हुए गतिरोध को समाप्त किया जा सके। उन्होंने राज्यपाल से मांग की है कि प्रदेश सरकार को 720प्राइवेट बसों के परमिट दिए जाने के फैसले को अविलंब वापिस लेने को कहा जाए जिससे प्रशासनिक व्यवस्था दुरुस्त हो सके और आम जनजीवन फिर से बहाल हो सके।
उल्लेखनीय है कि लम्बे समय से हरियाणा रोडवेज के कर्मी हड़ताल पर हैं और वे 720प्राइवेट बसों के परमिट दिए जाने के फैसले को अविलंब वापिस लेने की मांग कर रहे हैं. लेकिन प्रदेश सरकार पहले तो बातचीत नहीं करने पर अड़ी रही बातचीत की हुई तो वह बेनतीजा साबित हुई. स्थिति लगातार बिगडती जा रही है. यातायात बुरी तरह प्रभावित है लेकिन सरकार और रोडवेज कर्मी दोनों अड़े हुए हैं. प्रदेश सरकार ने सख्त रुख अख्तियार करते हुए सैकड़ों कर्मियों को निलंबित करने का भी ऐलान किया है लेकिन स्थिति में कोई सुधार नहीं है.
राज्यपाल से मिलने वाले कांग्रेस के शिष्ट मंडल में विधायक, पूर्व विधायक व चेयरमैन शामिल थे। इनमें
कुलदीप शर्मा पूर्व स्पीकर व विधायक, श्रीकृष्ण हुड्डा विधायक, आनन्द सिंह डांगी विधायक, गीता भुक्कल विधायक, जगबीर सिंह मलिक विधायक, करन सिंह दलाल विधायक, जयतीर्थ दहिया विधायक, शकुन्तला खटक विधायक, हरमोहिन्द्र सिंह चट्ठा पूर्व मन्त्री, फूलचन्द मुलाना पूर्व मन्त्री, निर्मल सिंह पूर्व मन्त्री, भारत भूषण बतरा पूर्व विधायक, चक्रवर्ति शर्मा पूर्व चेयरमैन शामिल थे। इत्यादि।
राज्यपाल को सौंपे ज्ञापन में कहा गया है कि हम आपका ध्यान हरियाणा के रोडवेज कर्मचारियों की हड़ताल के कारण पैदा हुए विकट हालातों और सरकार की हठधर्मिता की ओर आकृष्ट कराना चाहते हैं। रोडवेज कर्मचारियों की तालमेल कमेटी के आह्वान पर 16 अक्तूबर, 2018 से अधिकांश कर्मचारी हड़ताल पर हैं। सरकार की जिद्द के कारण इन कर्मचारियों की हड़ताल के समर्थन में अन्य विभागों के 2 लाख कर्मचारी भी आ डटे हैं। जिससे प्रदेश में प्रशासनिक व्यवस्था चरमरा गई है। जनता के दैनिक कार्य लटक गए हैं और विकास के काम ठप्प पड़े हैं। यहां यह कहना गलत नहीं होगा कि रोडवेज कर्मियों की हड़ताल केवल एक विभाग की लड़ाई नहीं रह गई है बल्कि यह एक जन आंदोलन का रूप लेती जा रही है।
यहां यह भी गौरतलब है कि रोडवेज कर्मचारी अपने आंदोलन में वेतन भत्तों को बढाने की मांग नहीं कर रहे, अपितु रोडवेज बेड़े में 720 परमिट प्राइवेट कंपनियों को देने के सरकार के नीतिगत फैसले के विरोध में है, जो विभाग के निजीकरण की शुरुआत है। निजीकरण होने से टेंडर उठाने वाली कंपनियों की पौ बारह तो हो जाएगी पर आम जन की परेशानी बढ़ने वाली है। इससे ना केवल रोजगार के अवसर कम हो जाएंगे, साथ में अब तक बस भाड़े में छूट लेने वाली श्रेणियों को भी काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा।
आप जानते हैं कि हमारा सविंधान केंद्र और राज्य सरकारों को जन कल्याणकारी स्वरूप प्रदान करता है। अनेक विभाग जिसमें परिवहन, जन स्वास्थ्य, शिक्षा और स्वास्थ्य शामिल हैं, ये जन सेवाओं की श्रेणी में आते हैं, जिनका उद्देश्य लाभ कमाना नहीं है। सरकार आंकड़े दे रही है कि उसे बस चलाने में बड़ा घाटा उठाना पड़ रहा है और वो घाटा कम करने के लिए प्राइवेट बस ऑपरेटरों को अपने बेड़े में शामिल कर रही है। हकीकत यह है कि इसकी आड़ में सरकार अपने चंद चेहतों को सीधा लाभ पहुंचा कर मालामाल करना चाहती है। पता चला है कि जो 520 परमिट अभी तक जारी हुए हैं, वे अपने चहेतों को दिये जा रहे हैं तथा कुछ परमिट सरकार में बैठे मंत्रियों ने हथियाए हैं। यदि आप निष्पक्ष जांच करवाएंगे तो इस पूरे झमेले में सैकड़ों करोड़ का घोटाला मिलेगा।
रोडवेज कर्मियों की हड़ताल के बाद हालात ये बन गए हैं कि जुगाड़ करके सरकार जिन कुछ बसों को चला पा रही है, उनमें लोग बैठने से डर रहे हैं। क्योंकि नौसिखिए ड्राईवरों के कारण दर्जनों दुर्घटनाएं हो चुकी हैं, जिनमें जान माल का नुकसान हुआ है। बसों को दिए जाने वाले तेल का कोई हिसाब किताब नहीं है। यही हाल वर्कशॉपों का है, जहां से स्पेयर पार्ट्स गायब हो रहे हैं। सरकार बस खरीदने में धन की कमी को बड़ा कारण बताती है। जब प्राइवेट बस ऑपरेटर बैंक से फाइनेंस करवा सकते हैं तो सरकार क्यों नहीं ? सरकार यदि रोडवेज का बेड़ा बढ़ाती है तो यह क्यों नहीं देख रही कि एक बस से छह लोगों को रोजगार मिलता है। अन्य वाहनों वाले अनाप-शनाप भाड़ा वसूल कर मजबूरी का शोषण कर रहे हैं।
यहां यह बताना भी उचित होगा कि पिछले 4 वर्षों में रिप्लेसमैंट की कमी को भी पूरा नहीं किया जा रहा, जिस कारण 2018-19 में टोटल रिप्लेसमैंट 1418 गाडि़यों की थी, जबकि केवल 146 गाडि़यों की रिप्लेसमैंट की गई है। इस प्रकार 1272 गाडि़यों की रिप्लेसमैंट अभी भी बाकी है। यदि हर वर्ष बची हुई रिप्लेसमैंट पूरी कर दी जाती तो ऐसी नौबत न आती। इसके अतिरिक्त पंजाब में 20.45 रूपये प्रति किलोमीटर के हिसाब से बसें हायरिंग की जा रही हैं, जब हरियाणा सरकार ने 32 रूपये से लेकर 42 रूपये तक की ऑफर दी है। जीएसटी अलग लगेगा तथा डीजल के जो रेट बढ़ रहे हैं, उन्हें अलग से जोड़ा जायेगा। इस प्रकार ये बसें बहुत महंगी पड़ेगी। जनवरी 2016 में हरियाणा सरकार द्वारा जो टेंडरज मांगे गये थे, उनमें कम से कम रेट 16.76 रूपये था, जो सरकार द्वारा अस्वीकार कर दिया गया था, क्योंकि सरकार अपने चहेतों को हायर रेट देना चाहती थी। इसलिए अब 32 रूपये से 42 रूपये तक की ऑफर दी गई है। इस प्रकार यह बहुत बड़ा रोडवेज घोटाला है।
आज रोडवेज कर्मियों की हड़ताल का 16वां दिन है। हमारे मत के साथ जनता की भावना भी यह है कि रोडवेज कर्मियों की हड़ताल न्यायसंगत है और सरकार द्वारा निजीकरण का फैसला लोगों की भलाई में ना होकर केवल अपने चहेतों को लाभ पहुंचाने के लिए लिया गया है। यह रोडवेज का बहुत बड़ा घोटाला साबित होगा। तभी तो भारी परेशानियों को झेलने के बाद भी हरियाणा के किसी भी कोने से रोडवेज कर्मचारियों के खिलाफ विरोध के स्वर नहीं उठे। अलबत्ता सामाजिक संगठन, छात्र संघ, अन्य विभागों के संगठन, किसान यूनियन, पंचायत प्रतिनिधि उनके समर्थन में आ जुटे हैं। सरकार ने अपनी हठधर्मिता के चलते 720 बसों के प्राइवेट परमिट रद्द नहीं किये तो हालात बेकाबू हो सकते हैं जिससे हरियाणा बहुत पीछे चला जायेगा।
आप प्रदेश के सवैंधानिक मुखिया हैं। हमारा आपसे आग्रह है कि आप इस जटिल मसले में तुरन्त दखल दें ताकि सरकार व कर्मचारियों के बीच बने हुए गतिरोध को समाप्त किया जा सके। साथ में सरकार से कहें कि वो 720 प्राइवेट बसों के परमिट दिए जाने के फैसले को अविलंब वापिस ले, जिससे प्रशासनिक व्यवस्था दुरुस्त हो सके और आम जन जीवन फिर से बहाल हो सके।