नई दिल्ली : नदी जल गुणवत्ता निगरानी के अनुसार 2016 की तुलना में 2017 में गंगा के पानी की गुणवत्ता में सुधार के संकेत मिले. गंगा की सफाई पर वित्त वर्ष 2014-15 से लेकर 30 जून, 2018 तक कुल 3867.48 करोड़ रुपये खर्च किए गए। नदी की सफाई और संरक्षण एक सतत प्रक्रिया है, जिसके लिए राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) के जरिए राज्य सरकारों को गंगा की सफाई के लिए वित्तीय मदद दी जा रही है। एनएमसीजी ने गंगा बेसिन वाले क्षेत्रों में सीवेज के निस्तारण के लिए आवश्यक आधारभूत संरचनाओं से जुड़ी 105 परियोजनाओं को मंजूरी दी है। नदी सफाई और गंगा संरक्षण के लिए इस परियोजना के तहत 17484.97 करोड़ रुपये मंजूर किए गए हैं। इन परियोजनाओं में से 26 परियोजनाएं पूरी हो चुकी हैं। इनके जरिए रोजाना 421 मिलियन लीटर सीवेज का शोधन किया जाता है। इसके साथ ही करीब 2050 किलोमीटर नई सीवर लाइनें बिछाई गई है। परियोजना का बाकी काम विभिन्न चरणों में है।
केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड गंगोत्री से लेकर बंगाल की खाड़ी तक गंगा नदी के पानी की गुणवत्ता की निगरानी करता है। इसके अनुसार 2016 की तुलना में 2017 में नदी के पानी की गुणवत्ता में सुधार हुआ है। इसमें ऑक्सीजन की मात्रा अधिसूचित जल गुणवत्ता मानक की सीमा में पाई गई है। यह इस बात का संकेत है कि सभी मौसम में नदी पारिस्थितिकी संतोषजक स्तर पर है। हालांकि हरिद्वार से कन्नौज के बीच तथा कानपुर, इलाहाबाद, वाराणसी और पश्चिम बंगाल में नदी के कुछ हिस्से में जैविक ऑक्सीजन आवश्यकता से कम पाया गया है।
गंगा नदी में जल गुणवत्ता निगरानी का काम 2017 में शुरू किया गया था। इससे यह संकेत मिले हैं कि 2016 की तुलना में नदी के पानी की गुणवत्ता बेहतर हुई है। पानी में घुलनशील ऑक्सीजन का स्तर 33 स्थानों में बेहतर हुआ है। वहीं दूसरी ओर 26 स्थानों में जैविक ऑक्सीजन की कमी में सुधार हुआ है। 30 स्थानों में नदी के पानी में कोलीफॉर्म बैक्टीरिया की संख्या भी घटी है। यह जानकारी केन्द्रीय जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण राज्य मंत्री डॉ. सत्यपाल सिंह ने आज राज्यसभा में एक लिखित उत्तर में दी।
निम्नलिखित स्थानों में गंगा नदी के पानी में सुधार :
ऋषिकेश यू/एस
हिरद्वार डी/एस
इलाहाबाद (संगम) डी/एस
कानुपर डी/एस
वाराणसी, अस्सी घाट यू/एस
बक्सर रामरेखा घाट
पुनपुन, पटना
डायमंड हार्बर
गार्डन रीच
बहरामपुर
हावड़ा शिवपुर