वित्त मंत्री ने उद्योग जगत से बुनियादी ढांचागत क्षेत्र में निवेश करने को कहा

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नई दिल्ली : केन्द्रीय वित्त एवं कंपनी मामलों के मंत्री अरुण जेटली ने मजबूत भारत के निर्माण के लिए उद्योग जगत की हस्तियों से बुनियादी ढांचागत क्षेत्र में निवेश करने को कहा है। वित्त मंत्री ने यह भी कहा कि विकास की गति तेज करने और रोजगार अवसर सृजित करने के लिए सार्वजनिक एवं विदेशी निवेश के साथ-साथ निजी निवेश भी अत्यंत जरूरी है। वित्त मंत्री जेटली ने आज यहां उद्योग जगत की हस्तियों और भारत के व्यापार एवं उद्योग जगत के विभिन्न मंडलों (चैम्बर) के प्रतिनिधियों के साथ अपनी तीसरी बजट-पूर्व बैठक में अपने उद्घाटन भाषण में ये बातें कहीं। बुनियादी ढांचागत क्षेत्र में निवेश की अहमियत पर रोशनी डालते हुए वित्त मंत्री ने कहा कि सरकार ने अनेक कदम उठाने के साथ-साथ राष्ट्रीय निवेश एवं अवसंरचना कोष (एनआईआईएफ) भी बनाया है, ताकि इस क्षेत्र में निवेश को बढ़ावा मिल सके।

उपर्युक्त बजट-पूर्व परामर्श बैठक में वित्त सचिव डॉ. हसमुख अधिया, व्यय सचिव  ए.एन. झा, आर्थिक मामलों के सचिव  सुभाष चन्द्र गर्ग, डीआईपीपी के सचिव  रमेश अभिषेक, मुख्य आर्थिक सलाहकार डॉ. अरविन्द सुब्रमण्यन, सीबीडीटी के चेयरमैन  सुशील कुमार चन्द्र, सीबीईसी की अध्यक्ष  वनाजा एन. सरना और विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) के महानिदेशक  अतुल चतुर्वेदी ने भी शिरकत की।

उपर्युक्त बैठक में शिरकत करने वाले भारतीय व्यापार एवं उद्योग संगठनों/चैम्बरों के अनेक प्रतिनिधियों में सीआईआई की अध्यक्ष  शोबना कामिनेनी, एसोचैम के अध्यक्ष संदीप जजोदिया, फिक्की के अध्यक्ष पंकज पटेल, भारत फोर्ज लिमिटेड के  बी.एन. कल्याणी, भारतीय निर्यात संगठनों के महासंघ (फियो) के अध्यक्ष  गणेश कुमार गुप्ता, भारतीय सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्यमों के चैम्बर के अध्यक्ष  मुकेश मोहन गुप्ता, रत्न एवं जेवरात निर्यात संवर्धन परिषद के वरिष्ठ सदस्य  अनूप मेहता, ईईपीसी इंडिया के पूर्व अध्यक्ष  पी.के. शाह भी शामिल थे।

इस बैठक में कारोबार जगत की हस्तियों और भारतीय व्यापार एवं उद्योग जगत के प्रतिनिधियों ने अनेक सुझाव पेश किए। संस्थानों एवं आम जनता को भी बैंकों के पुनर्पूंजीकरण बांडों को खरीदने की अनुमति देना, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (पीएसबी) में सरकारी हिस्सेदारी कम करना, बैंकों को अपने ऋणों के प्रतिभूतिकरण के साथ-साथ उनकी बिक्री करने की अनुमति देना, सेना, रेलवे और सार्वजनिक प्राधिकरणों की भूमि के साथ-साथ सरकारी भूमि के मुद्रीकरण के लिए भूमि बैंक निगम की स्थापना करना इत्यादि इन सुझावों में शामिल हैं।

उद्योग एवं व्यापार जगत को विभिन्न कर लाभों से संबंधित अनेक सुझाव भी इस दौरान पेश किए गए, जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं-

घरेलू निवेश एवं मांग में वृद्धि करने के साथ-साथ विश्व स्तर पर भारत के समग्र प्रतिस्पर्धी परिदृश्य को बनाए रखने हेतु भारत में कारोबारियों एवं लोगों के लिए कर दरों में कटौती करने की जरूरत है।

जीएसटी एक महत्वपूर्ण सुझार है। इस दिशा में आगे चलकर इसकी 3-4 दरें ही तय करने की आवश्यकता है। इसके अलावा जीएसटी से संबंधित अनुपालन को भी सरल करना आवश्यक है। जीएसटी के तहत तिमाही रिटर्न भरने के लाभ को 1.5 करोड़ रुपये तक के कारोबार वाले उद्मियों तक ही सीमित न रखते हुए यह सुविधा सभी को सुलभ कराई जानी चाहिए। अनुसंधान एवं नवाचार को बढ़ावा देने के लिए उस पेटेंट बॉक्स व्यवस्था को बेहतर करने की आवश्यकता है, जिसकी शुरुआत पिछले बजट में की गई थी।

ऐसे 2-3 नियमन मुक्त क्षेत्र स्थापित करने पर विचार किया जाना चाहिए, जहां विशेषकर उच्च प्रौद्योगिकी एवं अभिनव उद्योगों के लिए समस्त नियामकीय आवश्यकताओं में ढील दी जा सके। सरकार को बैंकिंग क्षेत्र में और ज्यादा विलय की गुंजाइश, यहां तक कि कुछ सार्वजनिक बैंकों के निजीकरण पर भी विचार करना चाहिए जिससे कि अधिकतम 5-6 बड़े सार्वजनिक बैंक ही अस्तित्व में रहें।
उत्पादक व्यय (बुनियादी ढांचागत क्षेत्र में पूंजीगत खर्च) पर निरंतर फोकस करना चाहिए और इसके लिए यदि राजकोषीय घाटे के लक्ष्य में ढील देने की आवश्यकता हो तो उस पर भी विचार करना चाहिए।

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