18 साल 10 महीने थी मेरी उम्र : रमन मलिक
गुरुग्राम : हरियाणा प्रदेश भाजपा के प्रवक्ता की जिम्मेदारी संभाल रहे रमन मलिक उन कुछ लोगों में शामिल हैं जो भाजपा के स्तंभ और राम जन्म भूमी आन्दोलन को शीर्ष नेतृत्व देने वाले नेता लालकृष्ण आडवाणी और राम मंदिर निर्माण समिति के आह्वान पर इस आन्दोलन में अपनी ओर से आहुति देने बेहिचक अयोध्या कूच कर गए थे।
रमन मलिक कहते हैं कि उस वक्त के देश में उत्पन्न माहौल ने ऐसा जुनून उत्पन्न कर दिया था जिसके वशीभूत हो उनके भी कदम अनायास ही अयोध्या की ओर बढ़ गए थे. छह दिसंबर 1992 का दिन उन के लिए कभी न भूलने वाला दिन है। मलिक के शब्दों में तब उनकी उम्र सिर्फ 18 साल 10 महीने और चार दिन थी। वह घर से बिना बताए निकल गए थे। उन्होंने पलवल पहुंचकर पीसीओ से घर पर इसकी सूचना दी थी। इससे मां काफी डर गई थीं लेकिन पिता से नैतिक संबल मिलने पर वे आगे बढ़ गए थे।
संभव है तब उन्हें इस बात का भान नहीं होगा कि वे अनायास ही सही लेकिन उत्साह में लवरेज होकर एक ऐतिहासिक घटना का साक्षी बनने निकल पड़े हैं. मलिक बताते हैं कि बिहार में लाल कृष्ण आडवाणी जी को बिहार के तत्कालीन सीएम लालू यादव ने क्षुद्र राजनीतिक लाभ व सस्ती लोकप्रियता के लिए गिरफ्तार करवा दिया था। श्री अडवाणी जी की रथ यात्रा को रोकने के लिए वर्तमान में केंद्रीय सरकार में मंत्री श्री आर एस एन सिंह (आई ए एस ) को लालू यादव ने विशेष तौर पर नियुक्त किया था।
उनकी गिरफ्तारी होने से पूरा आंदोलन अप्रत्याशित तौर पर गरमा चुका था, उनमें जुनून और बढ़ गया था। वह बेहद मुश्किल हालातों का सामना करके अयोध्या पहुंचे थे। रास्ते में पुलिस की नाकेबंदी से बचने के लिए वह रात्रि की आड़ में नदियों और नालों से होकर गुजरे। ऐसे में उनके पैरों में कई सारे जोंक लिपट गए थे जिन्हें उन्होंने बाद में अलग किया था। क्योंकि तब उनके सर पर येन केन प्रकारेण अयोध्या पहुँचने का धुन सवार था.
मलिक के अनुसार तब अयोध्या में लाठीचार्ज होने के बाद स्थिति बिगड़ गयी थी और वे दूसरे कारसेवकों के साथ मिलकर मुरली मनोहर जोशी के पास चले गए थे। वह विदेशी आक्रांताओं द्वारा निर्मित विवादित ढांचे के जमींदोज होने के 6 दिन बाद अपने घर लौटे सके थे और श्रद्धावश अयोध्या की कुछ मिट्टी साथ ले कर आए थे, जिसे उन्होंने दिल्ली के न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी मैसेज हनुमान मंदिर में रख दिया था।
भाजपा नेता के अनुसार इस दौरान उनकी मां काफी विचलित रहीं और वापस आने पर उन्होंने सीने से लगा लिया और जम कर डांट भी लगाई थी। घटना के 25 वर्ष बाद वे मानते हैं कि अयोध्या जाना उनके लिए ऐतिहासिक क्षण था जिस पर उन्हें गर्व है। तत्कालीन कार सेवा में शामिल होना वह अपने जीवन की बड़ी उपलब्धि मानते हैं। उनका कहना है कि जब तक रामलला को उचित स्थान नहीं मिल जाएगा तब तक उनका लक्ष्य पूरा नहीं होगा।
ढाई दशक पुरानी उस घटना को याद करते हुए अयोध्या के तब के एस एस पी रहे डी बी राय की तारीफ करते हुए रमण मालिक कहते हैं कि उन्होंने बड़ी सूझबूझ से एक बड़ी घटना को नियंत्रित करने में सफलता पाई थी। तब की अपनी जानकारी को खंघालते हुए उन्होंने खुलासा किया कि सपा के बड़े मुस्लिम नेता द्वारा भेजी गाड़ियों को उक्त एस एस पी ने फैज़ाबाद नहीं आने दिया था अन्यथा वहां पर कारसेवकों का बड़े पैमाने पर कत्लेआम किया जाता.
उनके अनुसार सपा नेता ने खून खराबे से देश को 1947 के हालात में भेजने की पूरी साजिश रच दी थी जो आई पी एस अधिकारी की समझदारी से नाकामयाब रही। तब की स्थिति और अपने लक्ष्य को देखते हुए वे कहते हैं कि आज भी जब वो दिन याद करते हैं तो वह घटना उतनी ही हर्षदायक लगती है जिसकी अनुभूति उन्हें अपने बच्चों के जन्म होने पर हुई थी।