वक्फ बोर्ड के हाईकोर्ट पैनल के वकील मोहम्मद अरशद ने दिया त्यागपत्र

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: पैनल में करीब 22 वकीलों की जगह चहेतों को देते हैं केस 

: पैनल में केवल मुस्लिम वकील ही नियुक्त होने चाहिए

यूनुस अलवी

 
मेवात:   हरियाणा वक्फ बोर्ड की कार्यशैली से तंग आकर ऐडवोकेट मोहम्मद अरशद बहरीपुर ने वक्फ बोर्ड के हाईकोर्ट पैनल वकील से अपना त्यागपत्र दे दिया है। वहीं उन्होने वक्फ बोर्ड के अधिकारियों पर कई गंभीर आरोप भी लगाए हैं। 
   पंजाब एंव हरियाणा हाई कोर्ट के ऐडवोकेट मोहम्मद अरशद ने बताया कि हरियाणा वक्फ बोर्ड की ओर से उसे 8 सितंबर 2014 को हाईकोर्ट में पैनल ऐडवोकेट नियुक्त किया था। फिलहाल हाई कोर्ट में वक्फ बोर्ड की ओर से करीब 22 ऐडवोकेट नियुक्त किऐ हुऐ हैं। वक्फ बोर्ड मे ऊचे पदों पर बेठे अधिकारी अपने कुछ ही चहेते ऐडवोकेटस को वक्फ बोर्ड के अदालती मामलों को भेजते हैं। मोहम्मद अरशद का कहना है कि पिछले तीन साल में उसे मात्र सात-आठ की मामले दिऐ गऐ हैं जबकि बहुत से ऐसे वकील भी पैनल में हैं जिनको काफी समय से एक भी कैस नहीं दिया गया है।
 
     ऐडवोकेट मोहम्मद अरशद का कहना है कि वक्फ बोर्ड के मामलों की अदालत में ठीक ठंग से पैरवी ना किऐ जाने या फिर कैस लडने में लापरवाही बरतने की वजह से वक्फ बोर्ड अधिक्तर कैस हार जाता है। जिससे वक्फ बोर्ड को करोडों रूपये की सम्पति का नुकसान हो रहा है। उन्होने कहा कि पुन्हाना खंड के गांव खानपुर घाटी में काफी जमीन वक्फ बोर्ड की है। जिसे वक्फ बोर्ड निचली अदालतों में हार गई जब वह हाई कोर्ट पहुंची तो यहां पर भी वक्फ बोर्ड ने कोई खास पैरवी नहीं की जिसकी वजह से कब्जाधारियों ने जमीन को खुर्द बुर्द कर दिया। उन्होने कहा कि हाईकोर्ट के पैनल वकीलों ने खानपुरघाटी मामले में स्टे लेने की कोशिश तक नहीं की थी।
 
   उनहोने बताया कि वक्फ बोर्ड में पैनल वकील नियुक्त करने की कोई पोलिसी नही हैं। इस बारे में उनहोने वक्फ बोर्ड के चेयरमैन, सीओ और प्रशासनिक अधिकारी से कई बार शिकायत की लेकिन किसी ने कोई ध्यान नहीं दिया। उन्होने आरोप लगाया कि अगर ऐसा ही चलता रहा तो हरियाणा वक्फ बोर्ड की अरबों रूपये की प्रोपर्टी ऐसे ही बरबाद हो जाऐगी। उन्होने कहा वक्फ बोर्ड द्वारा अदलतों में पैनल पर नियुक्त किऐ जाने वाले मुस्लिम वकील होने चाहिऐ जिससे मुस्लिम वकील वक्फ बोर्ड की सम्पति को सुरक्षित रखने के लिए लडाई लड सकें। उन्होने कहा जब वक्फ बोर्ड का सदस्य, चेयरमैन कोई गैरमुस्लिम नहीं बन सकता तो फिर मुस्लिमों को ही पैनल वकील क्यों ना नियुक्त किया जाऐ।

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