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देश की आजादी में बलिदान देने वालों में मेवात सबसे आगे है
गणतंत्र दिवस कोई दिन नहीं बल्कि एक राष्ट्रीय पर्व
हरियाणा कांग्रेस उपाध्यक्ष चो0 आफताब अहमद ने आर के इंटरनेशनल स्कूल सलम्बा में फहराया झंडा
यूनुस अलवी
मेवात : चो0 आफताब अहमद पूर्मंत्री ने कहा कि हमारा देश भारत एक ऐसा देश है जहाँ विभिन्न संस्कृति, समाज, धर्म और भाषा के लोग सद्भावपूर्णं ढंग से एक साथ रहते हैं। भारत के लिये स्वतंत्रता बड़े गर्व की बात है क्योंकि विभिन्न मुश्किलों और बाधाओं को पार करने के वर्षों बाद ये प्राप्त हुई थी। गणतन्त्र दिवस कोई दिन नहीं बल्कि एक राष्ट्रीय पर्व है । इसी दिन सन 1950 को भारत का संविधान लागू किया गया था। गणतंत्र दिवस मनाने के लिए 26 जनवरी को इसलिए चुना गया था, क्योंकि 1930 में इसी दिन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने भारत को पूर्ण स्वराज घोषित किया था।
पूर्व मंत्री ने कहा कि देश कि पहली आजादी में सबसे ज्यादा कुर्बानी मेवातियों के ही नाम हैं। अंग्रेजों ने उस समय सैंकडों गावों को आग के अवाले कर दिया था तथा करीब दस हजार से ज्यादा मेवाती आजादी के लिये शहीद हुऐ हैं। मेवाती वो बहादुर कौम है जिसने कभी विदेशियों से समझोता नहीं किया। आखिरकार वर्ष 1947 में 15 अगस्त को अंग्रेजी शासन से भारत को आजादी मिली थी। उस समय देश का कोई स्थायी संविधान नहीं था। पहली बार, वर्ष 1947 में 4 नवंबर को राष्ट्रीय सभा को ड्राफ्टिंग कमेटी के द्वारा भारतीय संविधान का पहला ड्राफ्ट प्रस्तुत किया गया था। वर्ष 1950 में 24 जनवरी को हिन्दी और अंग्रेजी में दो संस्करणों में राष्ट्रीय सभा द्वारा भारतीय संविधान का पहला ड्राफ्ट हस्ताक्षरित हुआ था। तब 26 जनवरी 1950 अर्थात् गणतंत्र दिवस को भारतीय संविधान अस्तित्व में आया। तब से, भारत में गणतंत्र दिवस के रुप में 26 जनवरी मनाने की शुरुआत हुई थी।
उन्होंने बताया यह एक संयोग ही था कि कभी भारत का पूर्ण स्वराज दिवस के रूप में मनाया जाने वाला दिन अब भारत का गणतंत्र दिवस बन गया था। अंग्रेजों के शासनकाल से छुटकारा पाने के 894 दिन बाद हमारा देश स्वतंत्र राष्ट्र बना। तब से आज तक हर वर्ष राष्ट्रभर में बड़े गर्व और हर्षोल्लास के साथ गणतंत्र दिवस मनाया जाता है। तदनंतर स्वतंत्रता प्राप्ति के वास्तविक दिन 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के रूप में स्वीकार किया गया। यही वह दिन था जब 1965 में हिन्दी को भारत की राजभाषा घोषित किया गया।
2015 में देश भर में किसानों की आत्महत्याओं में चौंकाने वाली तेजी आई है। कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, ओडिशा तथा अन्य राज्यों में हजारों किसानों ने आत्महत्या की है। अकेले महाराष्ट्र मेें ही 3,228 किसानों की आत्महत्याएं दर्ज हुई हैं, जो वास्तविकता को कम कर के दिखाने वाला आंकड़ा है। कृषि संकट के चलते ग्रामीण गरीबों की तादाद बढ़ती ही जा रही है। भारतीय गणतंत्र जनतंत्र, धर्मनिरपेक्षता, सामाजिक न्याय तथा संघीय व्यवस्था के हमारे मूलाधारीय सिद्घांतों पर खड़ा है, हालांकि इनकी अपनी अंतर्निहित सीमाएं भी हैं। उदारीकरण तथा निजीकरण के बाद गुजरी चौथाई सदी में इन चारों का ही अवमूल्यन हुआ है और उनकी हालत खस्ता नकार आ रही है। आज सत्तातंत्र पर जिन ताकतों का कब्जा है, भारतीय राज्य की जितनी भी धर्मनिरपेक्ष अंतर्वस्तु थी, उसे कमजोर करने की कोशिशों में लगे हुए हैं। भाजपा-आरएसएस के राज में, राज्य व समाज के गैर-धर्मनिरपेक्षीकरण की परियोजना चल रही है। जनतंत्र का मूलाधार है, धर्म, लिंग या जाति के विभाजनों से ऊपर उठकर, सभी नागरिकों के अधिकारों की समानता।
इसे सिर्फ धर्मनिरपेक्ष राज्य ही सुनिश्चित कर सकता है। आज सत्ता में बैठे लोग ऐसी विचारधारा में विश्वास करते हैं, गणतंत्र के असल मायनों को ही भूल रहे हैं । आरएसएस के प्रवक्ता खुल्लमखुल्ला, भारतीय संविधान में धर्मनिरपेक्षता के प्रावधान पर सवाल उठाते आए हैं। हमारे संविधान की एक खासियत यह है कि इसमें सामाजिक भेदभाव को और छुआछूत जैसी निर्योग्यताओं को दूर करने के लिए, सकारात्मक कदमों का प्रावधान किया गया है। यह सामाजिक न्याय की ऐसी परिकल्पना है, जो असमानतापूर्ण जाति व्यवस्था को, सुधारवादी तरीके से मिटाना चाहती है। भाजपा सरकार की सबसे बड़ी विफलता, समाज के सबसे उत्पीड़ित तबके, दलितों, अल्पसंख्यकों को न्याय दिलाने में उसकी विफलता है। चाहे सीमित ही सही, हमारे संघीय संविधान में जो भी संघात्मक सिद्घांत मौजूद है, उसे भी लगातार कमजोर किया गया और नवउदारवादी निजाम में यह गिरावट और बढ़ गई है।
डॉ. आंबेडकर ने राजनीतिक समता और सामाजिक व आर्थिक बराबरी का नाता टूट जाने की जो चेतावनी दी थी, वह सच हो रही है। जनतंत्र का कमजोर किया जाना विभिन्न रूपों में अभिव्यक्त हो रहा है। यूनियनें तथा संगठन बनाने के अधिकार को, जो कि संविधान के अंतर्गत एक मौलिक अधिकार है, कतरा जा रहा है और उसके व्यवहार को मुश्किल बनाया जा रहा है। आज शासन की मिलीभगत से मजदूरों को यूनियन बनाने के अधिकार से वंचित किया जा रहा है और विशेष आर्थिक क्षेत्र (सेज) आदि के नाम पर इसे वैधता प्रदान की जा रही है।
आज जनतंत्र तथा धर्मनिरपेक्षता की हिफाजत करने की लड़ाई का तकाजा है कि नवउदारवाद तथा सांप्रदायिकता के खिलाफ एक साथ तथा परस्पर जोड़कर संघर्ष किया जाए। सामाजिक न्याय तथा जनतांत्रिक अधिकारों के लिए संघर्ष, तानाशाही की ताकतों के खिलाफ संघर्ष की एक केंद्रीय कड़ी है। हमारे गणतंत्र के जनतांत्रिक-धर्मनिरपेक्ष आधार पर होने वाले हरेक हमले को विफल करना होगा। इस गणतंत्र दिवस पर भारत के नागरिकों का यही संकल्प होना चाहिए।
इस दौरान चो0 आफताब अहमद, चो0 महताब अहमद, हाजी इलियास चेयरमैन आर के नेशनल स्कूल, अरशद चेयरमैन, फरहान अख्तर, अख्तर चंदेनी, मेवात एस सी सेल अध्यक्ष चो0 मदन तंवर, इक्का इख्लास, हमीदा सलम्बा, जक्की सलम्बा मौलाना खालिद, डॉ आसमोहम्मद आदि लोग मोजूद रहे।