बारहवां विश्व व्यापार संगठन मंत्रिस्तरीय सम्मेलन जिनेवा में 12 जून से : पीयूष गोयल करेंगे भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व

Font Size

नई दिल्ली : बारहवां विश्व व्यापार संगठन मंत्रिस्तरीय सम्मेलन लगभग पांच वर्षों के अंतराल के बाद स्विट्जरलैंड के जिनेवा में कल 12 जून 2022 से शुरू होने वाला है। इस वर्ष के सम्मेलन में चर्चा और वार्ता के प्रमुख क्षेत्रों में महामारी पर विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) की प्रतिक्रिया, मत्स्य पालन पर अनुदान सहायता (सब्सिडी) वार्ता, खाद्य सुरक्षा के लिए सार्वजनिक स्टॉकहोल्डिंग सहित कृषि मुद्दे, डब्ल्यूटीओ सुधार और इलेक्ट्रॉनिक पारेषण (ट्रांसमिशन) पर सीमाशुल्क (कस्टम ड्यूटी) में अधिस्थगन (मोरेटोरियम) शामिल हैं।

सम्मेलन में भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग, उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण और कपड़ा मंत्री  पीयूष गोयल कर रहे हैं। विश्व व्यापार संगठन सहित बहुपक्षीय मंचों पर भारत के नेतृत्व की ओर देखने वाले विकासशील और गरीब देशों के हितों के साथ-साथ देश में सभी हितधारकों के हितों की रक्षा करने में भारत की महत्वपूर्ण हिस्सेदारी है।

 

कृषि

कृषि क्षेत्र में डीजी-डब्ल्यूटीओ, मई 2022 में कृषि, व्यापार और खाद्य सुरक्षा पर तीन मसौदा पाठ लेकर आए और इन पर वार्ता के लिए विश्व खाद्य कार्यक्रम को निर्यात प्रतिबंधों से छूट दी। भारत को इन मसौदा निर्णयों में कुछ प्रावधानों पर आपत्ति है और वह मौजूदा मंत्रिस्तरीय जनादेश को कम किए बिना कृषि पर समझौते के तहत अधिकारों को संरक्षित करने में सक्षम होने के लिए चर्चा और बातचीत की प्रक्रिया से जुड़ा रहा है।

विश्व व्यापार संगठन में परस्पर बातचीत के अंतर्गत एक महत्वपूर्ण मुद्दा न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर भारत के खाद्यान्न खरीद कार्यक्रम के संरक्षण से जुड़ा हुआ है। इस तरह के कार्यक्रमों में किसानों से प्रशासित निर्धारित कीमतों पर खरीद शामिल है और यह देश में किसानों और उपभोक्ताओं को समर्थन देने के लिए महत्वपूर्ण हैं। विश्व व्यापार संगठन के नियम उस अनुदान सहायता (सब्सिडी) को सीमित करते हैं जो ऐसे उत्पादों की खरीद के लिए प्रदान की जा सकती है। इस मुद्दे पर डब्ल्यूटीओ में विकासशील देशों के गठबंधन जी-33 जिसका भारत एक प्रमुख सदस्य है और अफ्रीकी समूह द्वारा बातचीत की जा रही है, 31 मई 2022 को खाद्य सुरक्षा उद्देश्यों के लिए सार्वजनिक स्टॉकहोल्डिंग पर इस मुद्दे के स्थायी समाधान हेतु एक प्रस्ताव प्रस्तुत करने के लिए अफ़्रीकी, कैरिबियाई और प्रशांत क्षेत्र देशों (एसीपी) के समूह के साथ आए हैं। भारत ने गत वर्ष 15 सितंबर 2021 को विश्व व्यापार संगठन में खाद्य सुरक्षा उद्देश्यों के लिए सार्वजनिक स्टॉकहोल्डिंग (पीएसएच) पर स्थायी समाधान के लिए जी-33 प्रस्ताव को सह-प्रायोजित किया था और जिसमें 38 सदस्यों का सह-प्रायोजन था।

इस वार्ता में विकासशील देशों द्वारा दिसंबर 2013 में बाली में सम्पन्न विश्व व्यापार संगठन के नौवें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में स्वीकृत किए गए मंत्रिस्तरीय निर्णय में सुधार की मांग की जा रही है और जिसमे सभी सदस्य विश्व व्यापार सन्गठन के 11वें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन तक खाद्य सुरक्षा उद्देश्यों के लिए सार्वजनिक स्टॉकहोल्डिंग के मुद्दे पर एक स्थायी समाधान पर बातचीत करने के लिए सहमत हुए थे। वहां अंतरिम रूप से यह सहमति बनी थी कि जब तक कोई स्थायी समाधान नहीं हो जाता तब तक सदस्य 7 दिसंबर 2013 से पहले स्थापित खाद्य सुरक्षा उद्देश्यों के लिए सार्वजनिक स्टॉकहोल्डिंग कार्यक्रमों के संबंध में विवाद उठाने में उचित संयम (जिसे आमतौर पर ‘शांति खंड’ कहा जाता है) का प्रयोग करेंगे, भले ही देशों ने अपनी अनुमेय सीमा को पार कर लिया हो। विश्व व्यापार संगठन में भारत द्वारा उठाए गए दृढ़ रुख के परिणामस्वरूप, इस शांति खंड को नवंबर 2014 में डब्ल्यूटीओ की जनरल काउंसिल (जीसी) के एक निर्णय द्वारा तब तक बढ़ा दिया गया जब तक कि स्थायी समाधान पर सहमति नहीं हो सके और उसे अपनाया नहीं जा सके। इस प्रकार, यह सुनिश्चित किया गया कि ‘शांति खंड’ हमेशा के लिए उपलब्ध रहेगा। दिसंबर 2015 में आयोजित नैरोबी मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में, विश्व व्यापार संगठन के सदस्य स्थायी समाधान के लिए बातचीत करने के लिए रचनात्मक रूप से संलग्न होने पर सहमत हुए। भारत न तो पीएसएच मुद्दे को अन्य कृषि मुद्दों से जोड़ना चाहता है और न ही एक कार्य कार्यक्रम के रूप में स्थायी समाधान पर बातचीत करने के लिए डब्ल्यूटीओ में एक स्टैंडअलोन जनादेश विद्यमान है।

विचारविमर्श के तहत एक अन्य मुद्दा कृषि उत्पादों पर निर्यात प्रतिबंधों से जुड़े अतिरिक्त विषयों से संबंधित है। निर्यात प्रतिबंधों के समर्थक दो मुद्दों पर परिणाम की मांग कर रहे हैं: (i) विश्व खाद्य कार्यक्रम (डब्ल्यूएफपी) द्वारा गैर-व्यावसायिक मानवीय उद्देश्यों के लिए खरीदे गए खाद्य पदार्थों को निर्यात प्रतिबंधों के आवेदन से छूट, और (ii) मौजूदा अधिसूचना आवश्यकताओं के अनुपालन में सुधार सहित निर्यात प्रतिबंधात्मक उपायों की अग्रिम अधिसूचना। प्रासंगिक विश्व व्यापार संगठन के नियमों के प्रावधानों के तहत विश्व व्यापार संगठन के सदस्य अपने देश के लिए आवश्यक खाद्य पदार्थों या अन्य उत्पादों की महत्वपूर्ण कमी को रोकने या राहत देने के लिए अस्थायी रूप से निर्यात पर प्रतिबंध या अन्य प्रतिबंध लगा सकते हैं। खाद्य वस्तुओं की कमी, मूल्य वृद्धि और नीतियों की प्रभावशीलता पर ऐसे उपायों की अग्रिम सूचना प्रदान करने के प्रभावों के संबंध में संवेदनशीलता को देखते हुए विकासशील देशों के सदस्यों के लिए अधिसूचना आवश्यकताओं को बोझिल बनाने पर भारत चिंतित है।

डब्ल्यूएफपी में योगदान के संदर्भ में भारत वर्षों से डब्ल्यूएफपी में एक महत्वपूर्ण योगदानकर्ता रहा है और उसने डब्ल्यूएफपी खरीद के लिए कभी भी निर्यात प्रतिबंध नहीं लगाए हैं, साथ ही पड़ोसियों को खाद्य आपूर्ति के साथ समर्थन भी दिया है। घरेलू खाद्य सुरक्षा को देखते हुए डब्ल्यूएफपी के लिए व्यापक छूट भारत के लिए चिंता का विषय है।

कृषि में चर्चा के अन्य क्षेत्र बाजार तक पहुंच, विकासशील देशों के लिए घरेलू कृषि उत्पादकों को आयात वृद्धि और अचानक कीमत गिरने से बचाने के लिए विशेष सुरक्षा तंत्र, अतिरिक्त आयात शुल्क के माध्यम से, वर्तमान में कई विकसित और कुछ विकासशील देश के लिए  उपलब्ध समान सुरक्षा उपायों की तर्ज पर से संबंधित मुद्दे हैं।

 

विश्व व्यापार संगठन मत्स्य वार्ता

भारत आगामी एमसी-12 में मत्स्य पालन समझौते को अंतिम रूप देने का इच्छुक है क्योंकि तर्कहीन दिए जाने और कई देशों द्वारा अधिक मछली पकड़ने से भारतीय मछुआरों और उनकी आजीविका को नुकसान हो रहा है। भारत का दृढ़ विश्वास है कि उसे उरुग्वे दौर के दौरान की गई उन गलतियों को नहीं दोहराया जाना चाहिए जिससे कुछ सदस्यों को कृषि में असमान और व्यापार-विकृत करने वाले अधिकारों की अनुमति मिल गई थी। इसने ऐसे कम विकसित सदस्यों को गलत तरीके से विवश कर दिया जिनके पास अपने उद्योग और किसानों का समर्थन करने की क्षमता और संसाधन नहीं थे।

मत्स्य पालन वैश्विक रूप से मानवता के लिए एक सार्वजनिक अक्षयनिधि है। इसलिए, ऐसे संसाधनों का बंटवारा समानरूप से और न्यायसंगत होना चाहिए। समझौते में कोई भी असंतुलन हमें मौजूदा मछली पकड़ने की ऐसी व्यवस्था के लिए बाध्य करेगा, जो सभी की भविष्य की आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर सकता है। ऐसे में स्थिरता के लिए बड़े अनुदान दाताओं (सब्सिडाइज़र) को अपनी सब्सिडी और मछली पकड़ने की क्षमता को कम करने के लिए अधिक जिम्मेदारी लेनी चाहिए। किसी भी समझौते को यह स्वीकार करना चाहिए कि विभिन्न देश विकास के विभिन्न चरणों में हैं और वर्तमान मछली पकड़ने की व्यवस्था उनकी वर्तमान आर्थिक क्षमताओं को दर्शाती है। जैसे-जैसे देश विकसित होंगे उनकी जरूरतें भी समय के साथ बदलती रहेंगी। समुद्री जल और उच्च समुद्र में वर्तमान और भविष्य की आवश्यकताओं को संतुलित करने के लिए मत्स्य पालन के दोहन के लिए किसी भी समझौते में ऐसी व्यवस्था करनी ही होगी।

भारत जैसे देशों से अपने भविष्य के नीतिगत स्थान का त्याग करने की उम्मीद नहीं की जा सकती क्योंकि कुछ सदस्यों ने मत्स्य पालन संसाधनों के अत्यधिक दोहन के लिए काफी सब्सिडी प्रदान की और वे निरंतर मछली पकड़ने में संलग्न रहने में सक्षम हैं। भारत को गरीब मछुआरों की आजीविका की रक्षा करने और राष्ट्र की खाद्य सुरक्षा चिंताओं को दूर करने के लिए विशेष और विभेदक उपचार की आवश्यकता है, मत्स्य पालन क्षेत्र के विकास के लिए आवश्यक नीतिगत स्थान है, और अधिक क्षमता के तहत आवश्यकता से अधिक मछली पकड़ना (ओवर फिशिंग), अवैध, बिना सूचित अनियंत्रित और अत्यधिक दोहन (अनरिपोर्टेड अनरेगुलेटेड और ओवर फिशिंग) जैसे विषयों को लागू करने के लिए सिस्टम स्थापित करने के लिए अब भी पर्याप्त समय है। भारत का मानना ​​है कि मत्स्य पालन समझौते को मौजूदा अंतरराष्ट्रीय उपकरणों और समुद्र के कानूनों के संदर्भ में देखा जाना चाहिए। अपने समुद्री अधिकार क्षेत्र के भीतर जीवित संसाधनों का पता लगाने और प्रबंधन करने के लिए तटीय राज्यों के संप्रभु अधिकारों, जो कि अंतरराष्ट्रीय प्रावधानों में निहित है, को संरक्षित किया जाना चाहिए।

पर्यावरण की सुरक्षा सदियों से भारतीय लोकाचार में निहित रही है और विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इस बारे में बार-बार जोर दिया गया है। भारत इस वार्ता को निर्णायक बनाने के लिए  तब तक प्रतिबद्ध है, जब तक कि यह सदस्यों को हमेशा के लिए नुकसानदेह व्यवस्था में कैद  किए बिना भविष्य के लिए मछली पकड़ने की क्षमता विकसित करने के लिए समान विकास और स्वतंत्रता प्रदान करती है।

 

ई-कॉमर्स

विश्व व्यापार संगठन की सामान्य परिषद (जीसी) ने 1998 में वैश्विक ई-कॉमर्स से संबंधित सभी व्यापार संबंधी मुद्दों की व्यापक जांच करने और विकासशील देशों की आर्थिक, वित्तीय और विकास संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए एक खोजपूर्ण और गैर-व्यवहारिक जनादेश के साथ ई-कॉमर्स (डब्ल्यूपीईसी) पर कार्य योजना लागू  की। 2017 में शुरू किए गए ई-कॉमर्स पर संयुक्त वक्तव्य पहल (जेएसआई) के तहत 86 डब्ल्यूटीओ सदस्य इलेक्ट्रॉनिक प्रमाणीकरण, डिजिटल उत्पादों के गैर-भेदभावपूर्ण उपचार, सीमा पार डेटा के मुक्त प्रवाह, डेटा स्थानीयकरण, स्थायी ई-कॉमर्स अधिस्थगन, ऑनलाइन उपभोक्ता संरक्षण, व्यक्तिगत डेटा सुरक्षा, स्रोत कोड तक पहुंच जैसे मुद्दों पर व्यापार नियमों पर निरंतर विचार-विमर्श कर रहे हैं।

भारत का मानना ​​​​है कि मौजूदा वैश्विक ई-कॉमर्स स्थान (स्पेस) की अत्यधिक विषम प्रकृति और ई-कॉमर्स से संबंधित मुद्दों के बहुआयामी आयामों के निहितार्थ पर समझ की कमी को देखते हुए ई-कॉमर्स में नियमों और विषयों पर बातचीत उपयुक्त समय से पहले की होगी। विकासशील देशों को डिजिटल क्षेत्र में विकसित देशों के साथ “कैच-अप” के लिए नीतियों को लागू करने के लिए लचीलेपन को बनाए रखने की आवश्यकता है। हमें सबसे पहले घरेलू भौतिक और डिजिटल बुनियादी ढांचे में सुधार, सहायक समर्थनकारी नीतियों और नियामक ढांचा बनाने तथा अपनी डिजिटल क्षमताओं को विकसित करने पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है। इसी को ध्यान में रखते हुए भारत ई-कॉमर्स पर जेएसआई में शामिल नहीं हुआ है क्योंकि हमारा मानना ​​है कि समावेशी और विकासोन्मुखी परिणाम प्राप्त करने के लिए बहुपक्षीय रास्ते सबसे उपयुक्त हैं।

विश्व व्यापार संगठन के सदस्य 1998 से इलेक्ट्रॉनिक प्रसारण (ट्रांसमिशन) पर सीमा शुल्क नहीं लगाने पर सहमत हुए हैं और इस सहमति को मंत्रिस्तरीय सम्मेलनों में स्थगन को समय-समय पर बढ़ाया गया है। एमसी11 पर स्थगन को दो साल के लिए बढ़ा दिया गया था। दिसंबर, 2019 में आयोजित जीसी की बैठक में सदस्यों ने एमसी12 तक वर्तमान स्थिति को बनाए रखने पर सहमति व्यक्त की। एमसी12 में कई डब्ल्यूटीओ सदस्य एमसी13 तक इस स्थगन के अस्थायी विस्तार की मांग कर रहे हैं। भारत और दक्षिण अफ्रीका विकासशील देशों पर स्थगन के प्रतिकूल प्रभाव को उजागर करते हुए कई संयुक्त प्रस्तुतियाँ दे रहे हैं और सुझाव दे रहे हैं कि विकासशील देशों के लिए अपनी डिजिटल उन्नति के लिए नीति स्थान को संरक्षित करने, आयात को विनियमित करने और सीमा शुल्क के माध्यम से राजस्व उत्पन्न करने के लिए इस स्थगन पर पुनर्विचार किया जाना महत्वपूर्ण है।

 

डब्ल्यूटीओ के सुधार

भारत का मानना ​​है कि विश्व व्यापार संगठन के सुधारों की चर्चा को इस समय अपने उन  मौलिक सिद्धांतों को मजबूत करने, विशेष और विभेदक उपचार (एस एंड डीटी) को संरक्षित करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए जिसमें आम सहमति आधारित निर्णय लेने, गैर-भेदभाव, विशेष और विभेदक उपचार शामिल हैं और इस दौरान न तो विरासत में मिली असमानताओं को संरक्षित करना चाहिए और न ही उन्हें विद्यमान असंतुलन को और खराब करना चाहिए।

सुधार प्रस्तावों में, सबसे अधिक परिणामी यूएस-ईयू-जापान की वह त्रिपक्षीय पहल है जिसकी घोषणा एमसी 11 में की गई थी। यूएस-ईयू-जापान की त्रिपक्षीय पहल एमसी 12 के स्थगन के तुरंत बाद गैर-बाजार प्रथाओं, मौजूदा प्रवर्तन प्रावधानों और आवश्यकतानुसार नए नियमों को विकसित करने से संबंधित चिंताओं को दूर करने के लिए एक संयुक्त बयान पर 30 नवंबर, 2021 को सामने आई थी। इससे पहले, अक्टूबर 2021 में, यूरोपीय संघ एक कार्य समूह की संरचना के साथ आया था जिसमे वह डब्ल्यूटीओ सुधारों पर प्रस्ताव दे रहा है।

भारत ने अगस्त 2019 में एक विकासशील देश सुधार प्रस्ताव (विकासशील देशों के सुधार पत्र “विकास और समावेश को बढ़ावा देने के लिए विश्व व्यापार संगठन को मजबूत करना”) पेश करने की पहल का नेतृत्व किया, जिसे बोलीविया, क्यूबा, ​​इक्वाडोर, मलावी, दक्षिण अफ्रीका, ट्यूनीशिया, युगांडा, जिम्बाब्वे और ओमान द्वारा सह-प्रायोजित किया गया था। एमसी 12 के लिए सुधार चर्चा को जीवित रखने के लिए फरवरी 2022 में प्रस्तुत नवीनतम सुझावों के साथ इस प्रपत्र को कई बार संशोधित किया गया है।

भारत ने नवंबर 2021 में एक प्रस्ताव दिया जिसमें उसने यूरोपीय संघ और ब्राजील के प्रस्ताव पर प्रक्रिया और उसके उद्देश्यों दोनों पर ही सवाल उठाने का बीड़ा उठाया। यह पहले सुधार पैकेज के तत्वों पर सहमति के बिना, विश्व व्यापार संगठन के सुधारों पर एक खुले अंत अभ्यास का समर्थन नहीं करता था। उसने प्रस्तावित किया कि मंत्रियों द्वारा डब्ल्यूटीओ सुधार कार्य को हरी झंडी देने के लिए सहमत होने से पहले, सभी सदस्यों को पहले इस सुधार पैकेज के तत्वों और उस पर चर्चाओं को पूरा करने के लिए अपनाई जाने वाली प्रक्रिया की सटीक प्रकृति पर सहमत होने की आवश्यकता है। भारत का यह मानना ​​है कि सुधार प्रक्रिया और उसके निष्कर्षों से विश्व व्यापार संगठन समझौतों और सहमत जनादेश के तहत सदस्यों के अधिकारों और दायित्वों में न तो कोई परिवर्तन होना चाहिए और न ही उन पर किसी भी तरह से प्रभाव पड़ना चाहिए और यह भी कि सामान्य परिषद की प्रक्रिया के सहमत नियम इस  समीक्षा प्रक्रिया पर लागू होंगे।

 

महामारी के लिए विश्व व्यापार संगठन की प्रतिक्रिया

महामारी के प्रति विश्व व्यापार संगठन की प्रतिक्रिया पर परिणाम एमसी12 के लिए प्राथमिकता वाली वस्तुओं में से एक है जिसमें व्यापार से सम्बन्धित बौद्धिक सम्पदा अधिकार (ट्रिप्स–टीआरआईपीएस) छूट प्रस्ताव शामिल है। जून 2021 में, सामान्य परिषद (जीसी) चेयर ने सुविधाकर्ता के रूप में न्यूजीलैंड के राजदूत डेविड वाकर के साथ एक सूत्रधार के नेतृत्व वाली प्रक्रिया शुरू की। उन्होंने इस क्षेत्र में काम के लिए छह कार्यक्षेत्रों की पहचान की-निर्यात प्रतिबंध; व्यापार सुविधा, नियामक सुसंगतता, सहयोग और शुल्क; सेवाओं की भूमिका; पारदर्शिता और निगरानी; अन्य संगठनों के साथ सहयोग; और भविष्य की महामारियों के लिए अधिक प्रभावी ढंग से प्रतिक्रिया करने के लिए रूपरेखा।

भारत वर्तमान में सभी सदस्यों की चिंताओं को दूर करने के लिए उपरोक्त सभी तत्वों पर एक संतुलित परिणाम के लिए आम सहमति बनाने के लिए विभिन्न सदस्यों और समूहों के साथ विचार-विमर्श में लगा हुआ है। भारत को महामारी से निपटने के लिए डब्ल्यूटीओ समझौतों में अतिरिक्त ‘स्थायी’ विषयों पर चिंता है। भारत महामारी की चुनौतियों का सामना बाजार पहुंच, सुधार, निर्यात प्रतिबंध और पारदर्शिता जैसे क्षेत्रों में नहीं करना चाहता। भारत चाहता है कि विश्व व्यापार संगठन की प्रतिक्रिया को विश्व व्यापार संगठन की महामारी की प्रतिक्रिया के लिए आपूर्ति पक्ष की बाधाओं को दूर करने की आवश्यकता हो और इसके परिणाम विश्वसनीय हों।

बौद्धिक संपदा के संबंध में, भारत: (i) विकासशील देशों और न्यूनतम विकसित देशों (एलडीसीज) द्वारा कोविड -19 महामारी का सामना करने के लिए ट्रिप्स लचीलेपन का उपयोग करने में आने वाली कठिनाइयों की पहचान, और (ii) प्रतिक्रियाओं की घोषणा के तहत ट्रिप्स छूट निर्णय की पुन: पुष्टि चाहता है।

भारत 1 जनवरी 1995 से विश्व व्यापार संगठन का संस्थापक सदस्य है और 8 जुलाई 1948 से शुल्क और व्यापार पर सामान्य समझौता (जीएटीटी) का सदस्य है। भारत एक पारदर्शी और समावेशी बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली में विश्वास करता है। साथ ही हम विश्व व्यापार संगठन को मजबूत करने के लिए काम करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। विश्व व्यापार संगठन के बुनियादी सिद्धांतों को संरक्षित करने की आवश्यकता है, जिसमें बिना किसी पक्षपात के, सर्वसम्मति-आधारित निर्णय लेना और विकासशील देशों के लिए विशेष और विभेदक व्यवहार शामिल हैं।

You cannot copy content of this page