पीएम मोदी की राजनीतिक चाल में फंसे राहुल 

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विपक्षी एकता पर लगा ग्रहण 

नई दिल्‍ली : प्रधान मंत्री मोदी की राजनीतिक चाल ने कांग्रेस उपाध्‍यक्ष राहुल गांधी के समूचे विपक्ष का नेता बनने के सपने को पलीता लगा दिया है. अकेले कांग्रेस पार्टी के नेताओं का शुक्रवार को मोदी से मिलने जाना उनकी राजनीतिक अपरिपक्वता का परिचायक ही नहीं बना बल्कि अन्य विपक्षी दलों को नागवार गुजरने वाला कदम साबित हुआ. इससे एक तरफ कांग्रेस के बुजुर्ग व युवा नेताओं की टीम में तकरार शुरू है तो दूसरी तरफ सपा, बसपा व वामपंथी दलों सहित विपक्षी दलों में क्षोभ है और वे कांग्रेस से अलग अपना मोर्चा बनाने पर विचार करने लगे हैं.

शुक्रवार को संसद परिसर में पीएम नरेंद्र मोदी से मुलाकात को लेकर अब कांग्रेस की तरफ से कोई जिम्‍मेदारी लेने को तैयार नहीं दिखता. बड़ी मुश्किल से शीतकालीन सत्र में एकजुट हुए विपक्ष की एकता में मोदी व राहुल मुलाकात से दरार पड़ने का खतरा पैदा हो गया. 

उल्लेखनीय है कि शीतकालीन सत्र के अंतिम दिन शुक्रवार को पीएम मोदी ने राहुल गांधी को ठीक उस वक्‍त मुलाकात का समय दे दिया जब उसके कुछ क्षण बाद ही कांग्रेस के नेतृत्‍व में विपक्षी दल नोटबंदी के सवाल पर राष्‍ट्रपति से मिलने वाले थे. वे राष्‍ट्रपति को यह बताने के लिए जाने वाले थे कि प्रधानमंत्री की 500 और 1000 रुपये की अचानक घोषणा के बाद से आम लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. लेकिन अचानक और बिना बताये कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी व लोक सभा में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड्गे व राज्य सभा में विपक्ष के नेता गुलाम नवी आजाद  सहित कई कांग्रेसी नेताओं का पीएम से मिलने के कदम से लेफ्ट समेत खफा विपक्षी दलों ने फौरी तौर पर अपनी प्रतिक्रिया दे दी और यह कह दिया कि वह राष्ट्रपति से मिलने वाले उस मार्च में शामिल नहीं होंगे.

 

हालाँकि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नवी आजाद ने यह कहा कि दो सप्‍ताह पहले ही प्रधानमंत्री से मुलाकात के लिए अप्‍वाइंटमेंट मांगा गया था. दरअसल कांग्रेस किसानों से मिले दो करोड़ से अधिक मांगपत्रों को पीएम सौंपना चाहते थे इसलिए यह मुलाक़ात की गयी.

लगता है कांग्रेस के थिंक टैंक यह समझने में नाकाम रहे कि पीएम ने ऐन वक्त पर उन्हें मिलने का समय दे दिया जब वे सभी विपक्षी नेताओं के साथ नोटबंदी के मसले पर विपक्षी एकजुटता का प्रदर्शन करने राष्ट्रपति के दरबार में जाने वाले थे. जाहिर है इससे लगातार घिर रही सरकार ने ऐन मौके पर मुलाकात का समय देकर उस एकता को झटका दे दिया जबकि दूसरी तरफ राहुल गाँधी के सलाहकारों को पार्टी के के नेताओं के समक्ष स्पष्टीकरण देन पड़ रहा है. सीधा सवाल यह खड़ा हो रहा है कि इस कदम के राजनीतिक नफा नुक्सान का आकलन किये विना ही पीएम से मिलने का निर्णय आनन् फानन में कैसे लिया गया जबकि उनके खिलफ पार्टी ने मोर्च खोला हुआ है.  

सूत्र बताते हैं कि इस मसले पर कांग्रेस के भीतर नाराजगी और आरोप-प्रत्‍यारोप का दौर शुरू हो गया है. राहुल गांधी के नेतृत्‍व वाली युवा टीम और सोनिया के विश्‍वस्‍त पुराने दिग्‍गजों के बीच कलह एक बार फिर सतह पर आ गई है.

 

हालाँकि कांग्रेस के युवा नेता ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया ने इन रिपोर्टों का खंडन किया है कि उन्‍होंने पीएम मोदी से इस मुलाकात के लिए समय मांगा था. लेकिन यह भी कहा कि एक बार मुलाकात का समय तय होने के बाद राहुल गांधी के लिए उसको नजरअंदाज करना मुमकिन नहीं था. कहा यह जा रहा है कि गत 10 जुलाई से उत्तरप्रदेश में राहुल गांधी ने अपनी यात्रा के दौरान यूपी के किसानों को संबोधित करते हुए कहा था कि वह निजी तौर पर उनकी मांगों को पीएम मोदी तक पहुंचाएंगे. उल्‍लेखनीय है कि यूपी में उनकी यह यात्रा अगले साल होने जा रहे विधानसभा चुनाव के मद्दे नजर थी .

 

अब हालत यह है कि संसद में कांग्रेस की रणनीति बनाने वाले पार्टी के वरिष्‍ठ नेताओं गुलाम नबी आजाद और आनंद शर्मा को  भी यह खंडन करना पड रहा है कि वे उस बैठक में राहुल गाँधी की उपस्थिति चाहते थे. दोनों नेताओं ने इस पहल से अपना पल्ला झाड लिया है.

सूत्र बताते हैं कि अन्य विपक्षी दलों के नेताओं ने कांग्रेस पार्टी के नाताओं को इस बात के लिए समझाने की कोशिश की थी कि राहुल गांधी व पीएम की इस बैठक को किसी अन्‍य दिन के लिए टाल दिया जाए लेकिन ऐसा नहीं किया गया .अब इस बात की खोज हो रही है कि कांग्रेस के वे कौन से नेता हैं जिन्होंने इस कोशिश को नजरंदाज किया. स्पस्ट है कि विपक्ष के लोग ऐसा इस लिए चाह रहे थे क्योंकि पूरे शीतकालीन सत्र के दौरान नोटबंदी के मसले पर विपक्ष की तरफ से मोर्चा लेने में राहुल गाँधी ही मुख्‍य भूमिका में दिखाई दे रहे थे. लेकिन नरेन्द्र मोदी के राजनीतिक जाल में फंसने से ऐसा संभव नहीं हो सका.

 

इस संबंध में एनसीपी नेता प्रफुल पटेल ने ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा है कि कांग्रेस ने अकेले ही पीएम मोदी से मिलने का निश्‍चय किया. यह कोई तरीका नहीं है. इसी तरह बसपा के एक नेता ने कहा कि क्‍या केवल कांग्रेस को ही किसानों की चिंता है ?  सपा व बसपा दोनों पार्टियों के नेता राष्‍ट्रपति से मिलने नहीं पहुंचे.

कांग्रेस में सुगबुगाहट इस बात की है कि आखिर इस पर गंभीरता से विचार क्यों नहीं किया गया. जब दो दिन पहले ही राहुल गांधी ने दावा किया था कि उनके पास पीएम मोदी के निजी भ्रष्‍टाचार के संबंध में जानकारी है और यदि उनको संसद में बोलने का मौका दिया गया तो वह उसका पर्दाफाश कर देंगे तब उन्हीं से मिलने जाना यह उनके दावे की पोल खोलता है. कांग्रेस के नेता दबी जुबान से यह कह रहे हैं कि सत्र के अंतिम दिन राहुल गाँधी को उन बिन्दुओं को उजागर करन चाहिए था. लेकिन ऐसा  करने के बजाय वे और सभी प्रमुख नेता पीएम मोदी से मुलाकात करने चले गए. दूसरी तरफ लोकसभा में सदन चलने का इतना मौका दे दिया कि दिव्‍यांगों के अधिकार से संबंधित बिल पास आसानी से हो गया. तब ऐसा लगा कि अब सब कुछ ठीक हो गया है और भाजपा व कांग्रेस संसद चलने देने के मामले में एक हो गए हैं. इससे छोटे दलों की उम्मीद पर पानी फिर गया है. राजनीतिक हलकों में इस घटना की हनक देर तक रहेगी इस बात की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता.

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