– मानसिक रोग को छिपाएं नहीं, यह भी शरीर के अन्य अंगो के रोगों की तरह है-उपायुक्त अमित खत्री
– हमारी शिक्षा प्रणाली मैंटल स्टैªस देने वाली, बदलाव की है जरूरत-डा. कुरैशी
गुरुग्राम , 14 दिसंबर। मानसिक स्वास्थ्य के बारे में आम जनता में जागरूकता लाने के उद्देश्य को लेकर आज सोमवार से गुरूग्राम में ‘स्वस्थ मन स्वस्थ समाज’ अभियान शुरू किया गया है। 5 दिवसीय इस अभियान को गुरूग्राम जिला प्रशासन तथा आईआईएलएम विश्वविद्यालय ने संयुक्त रूप से शुरू किया है। आज पहले दिन गुरूग्राम के लघु सचिवालय के प्रथम तल पर स्थित सभागार में आयोजित कार्यक्रम में अभियान के श्लोगन का अनावरण किया गया। इस अभियान में इच्छुक लोग अपने घर से ही आॅनलाईन जुड़कर अपनी शंकाओं का समाधान करवा सकते हैं। इसके लिए व्यक्ति को स्वयं को https://iilm.edu.in/event/mental/health-awareness-campaign/ लिंक पर रजिस्टर करना होगा।
5 दिवसीय स्वस्थ मन स्वस्थ समाज अभियान का शुभारंभ करते हुए उपायुक्त अमित खत्री ने कहा कि कोरोना काल में मानसिक स्वास्थ्य का विषय सामने आया था और उस समय आईआईएलएम विश्वविद्यालय की कुलपति सुझाता शाही व उनकी टीम आगे आई। उन्होंने कहा कि घर की चार दिवारी में ही रहने से मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ने का खतरा काफी बढ गया था।
श्री खत्री ने कहा कि समाज में व्यवस्था बदली है, संयुक्त परिवार से एकल परिवार हुए और कोरोना के दौरान तो व्यक्ति का ध्यान मोबाइल, लैपटाॅप, टीवी आदि में रहने से उसका दिमाग बंटा रहा जिससे आत्म हत्या करने, डिपे्रशन आदि के रोग बढने का खतरा हो गया। वैसे भी लोग मानसिक रोग को अपने उपर धब्बा मानते हैं और इसलिए इसे छिपाते हैं। श्री खत्री ने कहा कि बार-बार जिक्र होने से लोगों में मानसिक बिमारियों के प्रति सहीष्णुता बढेगी और जागरूकता आएगी कि शरीर के अन्य अंगों में जिस प्रकार से बीमारी लग जाती है उसी प्रकार से दिमाग में भी बीमारी हो सकती है। उसका समय पर ईलाज करवाना जरूरी है।
उन्होेंने बताया कि यह अभियान समाज के सभी वर्गों मुख्यतः विद्यार्थियों, पुलिस, बुजुर्गों, स्क्रीन एडीक्शन आदि के लिए लाभदायक होगा। इससे पहले विश्वविद्यालय के कुलाधिपति डा. एस वाई कुरेसी ने अपने विचार रखते हुए कहा कि तनाव, घृणा, डर तथा क्रोध को नियंत्रण में रखना जरूरी हैं। इनसे ज्यादा नुकसान व्यक्ति को खुद को होता है। इनसे दिमाग पर स्टैªस अर्थात् दबाव पड़ता है जिससे हमारे स्वास्थ्य पर कुप्रभाव पड़ता है। उन्होंने कहा कि मानसिक स्वास्थ्य को हम हिंदुस्तान में स्वास्थ्य का विषय ही नहीं मानते और इस मामले में समाज डिनाइल मोड अर्थात् नकारात्मक माध्यम में रहता है।
उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि यदि पड़ोस का कोई व्यक्ति किसी अभिभावक को उसके बच्चे द्वारा नशीली वस्तु का सेवन करने के बारे में बताए तो अभिभावक तपाक से जवाब देते हैं कि नहीं, हमारा बच्चा ऐसा कर ही नही सकता। जबकि अभिभावकों को चाहिए कि छिपाने की बजाय वे अपने बच्चे की मानसिक स्थिति को समझे और जरूरत हो तो उसका ईलाज करवाएं। उन्होंने विश्वविद्यालय की कुलपति से कहा कि वे मानसिक स्वास्थ्य विषय पर जिला गुरूग्राम का एक माॅडल बनाकर उपायुक्त को भेंट करें। उन्होंने कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वर्ष 2020 को मानसिक स्वास्थ्य के लिए समर्पित किया है।
डा. कुरैशी ने यह भी कहा कि हमारी शिक्षा प्रणाली मैंटल स्टैªस अर्थात् मानसिक दबाव वाली है। उन्हांेने कहा कि अभिभावको का 90 प्रतिशत पैसा बच्चे की ट्यूशन पर खर्च होता है और उसमें भी मुख्य रूप से गणित पर। लोग कहते हैं कि गणित पढना जरूरी है नही तो आप जाहिल (गंवार) हो जाओगे। उन्होंने बताया कि मैं तो गणित में 35 प्रतिशत अंको से पास हुआ था, फिर भी मै आज एक कामयाब व्यक्ति हुं। डा. कुरैशी ने कहा कि गणित विषय को आॅप्शनल कर देना चाहिए, सभी पर इसे ना थोपा जाए। जीवन में आज तक कभी भी कैलकुलस या ट्रिग्नोमैट्री की जरूरत नहीं पड़ी। साथ ही उन्होंने कहा कि शिक्षण संस्थानों में प्रैक्टिकल चीजे पढाई जाएं, जो जीवन में काम आएं। अभिभावकों को भी चाहिए कि बच्चे पर मैंटल स्टैªस के प्रारंभिक लक्षण नजर आते ही उसे बताएं कि कहां संपर्क करना है। इसके लिए अध्यापकों को भी कांउसलिंग के बारे में उपयुक्त प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए।
श्री विश्वकर्मा कौशल विश्वविद्यालय के कुलपति राज नेहरू ने भी अपने विचार रखते हुए कहा कि हम अपने विचारों और भावों को समझे, स्वः आंकलन से स्वः प्रबंधन करें। उन्होंने कहा कि हमारी खाने की आदतें खराब होती जा रही हैं जिसका प्रभाव हमारे स्वास्थ्य और व्यवहार दोनो पर पड़ता है। इसी प्रकार, संयुक्त परिवार में व्यक्ति के व्यक्तित्व का संपूर्ण विकास होता था। अब उसके अभाव में संतुलन बिगड़ गया है। ऐसी परिस्थितियों में यह कार्यक्रम बहुत उपयोगी रहेगा। आईआईएलएम विश्वविद्यालय की कुलपति सुजाता शाही ने अपने स्वागत भाषण में कहा कि हमें अपने पाॅजिटिव तथा निगेटिव भावनाओं के बीच संतुलन रखना चाहिए।
उन्होंने बताया कि यह अभियान एक छोटी सी पहल है और विश्वविद्यालय द्वारा मानसिक स्वास्थ्य पूरे साल श्रंृखला चलाकर गांव स्तर तक पहुंचने का लक्ष्य रखा गया है ताकि लोग मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हों। विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान संकाय की निदेशक प्रोफेसर डा. आभा सिंह ने बताया कि मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता के तहत चालु वित्त वर्ष में लगभग 5 हजार लोगों को प्रशिक्षित किया जा चुका है। विश्वविद्यालय के कुलसचिव कर्नल ललित कपूर ने सभी अतिथियों का और श्रोताओं का आभार जताया।