क्या अयोध्या राम जन्म भूमि विवाद सुलझने वाला है ? 

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क्या मंदिर और मस्जिद दोनों बनेंगे  ? 

फैजाबाद/अयोध्या : उत्तर प्रदेश चुनाव से पूर्व एक बार फिर अयोध्या स्थित राम जन्म भूमि विवाद को कोर्ट के बाहर सुलझाने की कोशिश शुरू होने के संकेत मिलने लगे हैं. मीडिया में आई खबर में यह दावा किया गया है कि इस सदी के सबसे बड़े विवाद को सुलझाने के लिए फैजाबाद के मंडलायुक्त के समक्ष एक नया प्रस्ताव रखा गया है. किसी को भी चौकाने वाली बात यह है कि इस प्रस्ताव में विवादित स्थल पर मंदिर और मस्जिद दोनों बनाने की बात कही गई है.

कौन हैं इस प्रस्ताव के सूत्रधार ? 

प्रस्ताव में दावा किया गया है कि याचिका पर हिन्दू और मुस्लिम दोनों समुदायों से लगभग 10 हजार लोगों ने हस्ताक्षर किए हैं. खबर है कि इस आश्चर्यजनक पहल का नेतृत्व उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश पलोक बसु कर रहे हैं.

एक निजी चैनल ने मंडलायुक्त एवं विवादित स्थल के प्रबंधकर्ता सूर्य प्रकाश मिश्रा के हवाले से दावा किया है कि उन्होंने इस बात की पुष्टि की है कि मुझे अयोध्या विवाद के संबंध में एक ज्ञापन और हस्ताक्षरयुक्त प्रतियां मिली हैं. अभी मुझे इस पर फैसला करना है कि क्या किया जाना है. इधर बसु ने उम्मीद जताई है कि उच्चतम न्यायालय इसका संज्ञान लेगा. याचिका कल सौंपी गई है जिस पर 10,502 लोगों के हस्ताक्षर बताये जाते हैं.

बसु ने क्या कहा ? 

उन्होंने कहा है कि हमने उच्चतम न्यायालय में अधिकृत व्यक्ति (फैजाबाद मंडलायुक्त) के जरिए यह समझौता प्रक्रिया शुरू की है. हमें उम्मीद है कि शीर्ष अदालत शांति एवं सौहार्द की जन भावनाओं का सम्मान करेगी.  बसु ने यह भी कहा है कि उन्होंने प्रस्तावित किया है कि विवादित स्थल पर राम मंदिर और मस्जिद दोनों होंगे.

कब से शुरू है प्रयास  ? 

उल्लेखनीय है कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 30 सितंबर 2010 को विवादित स्थल के दो हिस्से निर्मोही अखाड़ा तथा राम लला के ‘मित्र’ को दिए जाने तथा एक हिस्सा मुसलमानों को दिए जाने का आदेश दिया था, जो उत्तर प्रदेश के सुन्नी सेंट्रल बोर्ड को गया. बसु ने कहा कि मुद्दे के समाधान का उनका स्थानीय  प्रयास 18 मार्च 2010 को शुरू हुआ था.

विश्व हिन्दू परिषद की सोच 

विगत में बाबरी मस्जिद मामले के मुख्य वादी हाशिम अंसारी ने अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत ज्ञान दास के साथ मामले को अदालत से बाहर सुलझाने पर चर्चा की थी जिसमें करीब 70 एकड़ क्षेत्र में फैले विवादित स्थल पर 100 फुट ऊँची विभाजक दीवार के साथ मंदिर और मस्जिद दोनों रखे जाने के बारे में बात की गई थी. विश्व हिन्दू परिषद ने प्रस्ताव को उच्च न्यायालय का अपमान बताकर खारिज कर दिया था. अंसारी का इस साल जुलाई में निधन हो गया था.

दोनों समुदायों के पैरवीकार 

अब एक बार फिर इस प्रस्ताव के चर्चा में आने से यह मुद्दा गरमाने के प्रबल आसार हैं. अब देखना यह है कि इस प्रस्ताव को उच्चतम न्यायलय किस रूप में लेता है और इससे दोनों समुदायों के पैरवीकार व अन्य जुड़े लोग इसके प्रति कितना सहयोगात्मक रवैया अपनाते है. इस प्रयास का बहुत कुछ दारोमदार इस बात पर भी निर्भर करेगा कि उत्तरप्रदेश में सत्ता में बैठी समाजवादी पार्टी इसे किस अर्थ में लेती है.

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