एकीकृत जल प्रबंधन कार्यक्रम गुरुग्राम की महिलाओं के लिए वरदान साबित हुआ, हजारों बनीं स्वावलंबी !

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पूजा सिंह /जिला लोक संपर्क विभाग , गुरुग्रामगुरूग्राम । देश के प्रधानमंत्री नरेेन्द्र मोदी लघु उद्योगों को बढ़ावा देने और समाज में गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वाले लोगों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए नित नई योजनाएं ला रहे हैं। यह बात तो हम सब जानते हैं, लेकिन क्या हम यह जानते है कि ऐसी ही एक योजना की सफलता की कहानी हमारे जिला गुरूग्राम से जुड़ी हुई है। जी हां , आज हम बात कर रहे हैं प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के अंतर्गत पड़ने वाली एकीकृत जल प्रबंधन कार्यक्रम की।एकीकृत जल प्रबंधन कार्यक्रम गुरुग्राम की महिलाओं के लिए वरदान साबित हुआ, हजारों बनीं स्वावलंबी ! 2इस योजना की सफलता की कहानी शुरू होती है वर्ष 2014-15 से जब इस कार्यक्रम को केन्द्र सरकार द्वारा शुरू किया गया। इस कार्यक्रम के दो मुख्य बिंदु है। एक तो भूमिगत जल स्तर में सुधार करने से जुड़ा हुआ है तो दूसरा बिंदु जुड़ा है स्वयंसेवी सहायता समूह की महिलाओं को स्वरोजगार के लिए प्रेरित करने से। इस कार्यक्रम के अंतर्गत जिला में गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन कर रही गरीब महिलाओं के पुर्नउत्थान के लिए और उनके जीवन स्तर में सुधार लाने के लिए उनके स्वयंसेवी समूह बनाए गए। इन समूहों में कम से कम 10 तथा ज्यादा से ज्यादा 19 महिलाएं शामिल हो सकती हैं।एकीकृत जल प्रबंधन कार्यक्रम गुरुग्राम की महिलाओं के लिए वरदान साबित हुआ, हजारों बनीं स्वावलंबी ! 3जिला में इस कार्यक्रम को देख रहे जिला परिषद् गुरूग्राम के मुख्य कार्यकारी अधिकारी डा. सतेन्द्र दूहन के अनुसार शुरूआती दौर में जिला में 25 स्वयंसेवी समूह बनाए गए थे जिनकी संख्या बढ़कर आज 80 प्लस हो चुकी है। प्रत्येक स्वयं सहायता समूह को 25 हजार रूप्ये तक का रिवोलविंग फंड बिना ब्याज पर दिलवाया गया था। इतना ही नही, इन्हें कौशल विकास की ट्रैनिंग भी विभिन्न संस्थाओं से निःशुल्क दिलवाई गई ताकि ये अपने स्किल को डेवलप कर हुनरमंद बनकर अपनी मेहनत व लगन से आत्मनिर्भर बन सकें। ये महिलाएं सिलाई- कढ़ाई, ब्यूटी पार्लर, पैकिंग, जरनल स्टोर, आटा चक्की, काॅस्मैटिक की दुकान, जूट से बना सामान, कपड़े की दुकान, बकरी पालन, दुग्ध उत्पादन तथा खाद्य उत्पाद के क्षेत्र में नए आयाम स्थापित कर रही हैं।आज यह छोटी सी शुरूआत इन महिलाओं के लिए वरदान बन चुकी है। इन स्वय सहायता समूहों की महिलाएं आज अपना खुद का व्यवसाय चला रही हैं और परिवार को आर्थिक रूप से सहयोग दे रही हैं। डा. दूहन ने बताया कि फरूखनगर ब्लाॅक के गांव डूमा में चल रहा ‘नया दिन‘ नामक स्वयं सहायता समूह महिलाओं का एक ऐसा ही समूह है जिसने इस कार्यक्रम से जुड़कर अपने आपको लद्यु उद्योगों से जोड़ा है। इस समूह में 10 महिलाएं है जिन्हें खाद्य उत्पाद तैयार करने की कृषि विज्ञान केन्द्र, शिकोहपुर से ट्रैनिंग दिलवाई गई। इस समूह ने आचार, लड्डू , पापड़, चिप्स, खट्टी-मीठी कैंडी, नमकपोर, जैम, जैली इत्यादि सामान बनाना सीखा और स्वयं इसकी मार्किटिंग भी की। इस समूह ने स्वयं द्वारा निर्मित उत्पादों को ‘ रंगा प्रोडक्ट्स‘ के नाम से लांच किया। आज यह समूह अपने प्रोडक्ट को सरस मेला, दिल्ली के प्रगति मैदान में लगने वाले ट्रैड फेयर सहित गुजरात के अहमदाबाद आदि में लेकर जाता है जहां पर इन्हें लोगों का अच्छा स्पिांस मिला और इनके उत्पाद हाथों हाथ बिक गए। जहां इस समूह की महिलाएं पहले अपने बच्चों को अच्छी परवरिश देने तक की मोहताज थी , आज वे आर्थिक तौर पर स्मृद्ध है।डा. दूहन ने बताया कि इसी प्रकार का एक अन्य समूह गांव गुगाना में ‘नई दिशा‘ के नाम से चल रहा है। इस समूह में 10 महिला सदस्य है जिनकी प्रधान रीना का कहना है कि उन्होंने एकीकृत जल प्रबंधन कार्यक्रम के तहत 25 हजार रूप्ये का रिवालविंग लोन लिया और खाद्य उत्पादों के साथ साथ श्रृंगार संबंधी उत्पादों की ट्रैनिंग ली। उन्होंने ट्रैनिंग लेने उपरांत स्वयं की दुकान शुरू की जिसमें स्वयं द्वारा तैयार किए गए उत्पादों की बिक्री शुरू की। उन्हें इस दुकान से अच्छा मुनाफा हुआ जिसके बाद उन्होंने अन्य उत्पाद जैसे-कुर्ती, दुपट्टा तथा कट-पीस आदि सहित अन्य सामान की बिक्री भी शुरू कर दी। आज यह समूह अन्य स्वयं सहायता समूहों के लिए एक जीवंत उदाहरण है।इस योजना के दोनो पहलुओ को जोड़ता हुआ एक अन्य स्वयंसेवी समूह गांव पालड़ी का हैं। इस गांव में आईडब्ल्यूएमपी कार्यक्रम के तहत जहां एक गांव में भूमिगत जल स्तर में सुधार कर खारे पानी को मीठा किया गया वहीं दूसरी ओर इसी गांव के तालाब के पास स्वयंसेवी समूह ने मत्स्य पालन का व्यवसाय शुरू किया। इस व्यवसाय से इस समूह को बड़े पैमाने पर लाभ हुआ और आज वे इससे अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं।

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