2019 में मिलने वाली बड़ी हार से राहुल को बचाने के लिए दी जा रही है प्रियंका वाड्रा की बलि : रमन मलिक

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भाजपा प्रवक्ता ने कहा : मायावती व ममता के सामने प्रासांगिक दावेदारी पेश करने की कवायद

गुरुग्राम : भारतीय जनता पार्टी हरियाणा के प्रदेश प्रवक्ता रमन मलिक ने कहा कि राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में एक कार्यकर्ता की यात्रा उसके कर्मों के अनुसार शुरू होती है। जिस प्रकार वह अपने कर्म करता है उसी प्रकार वह अपने दायित्व में पदोन्नति का लाभ प्राप्त करता है। लेकिन प्रियंका वाड्रा को महासचिव बनाया जाना पर्दे के पीछे की कहानी बयां करने वाला है।

उन्होंने कहा कि वे कुछ मूलभूत विषयों पर प्रकाश डालना चाहते हैं। सबसे पहले यह बोलना उचित नहीं होगा कि प्रियंका गांधी राजनीतिक क्षेत्र में कूद गई है। बल्कि वह पिछले 15 साल से अमेठी और रायबरेली में अपने परिवार के 2 सांसदों का कार्य को देख रही हैं। जिस प्रकार इस परिवार ने उधारी के नाम पर अपना जीवन व्यतीत किया है, उसी तरह आज भी यह उधारी के नाम को ही चलाना चाहते हैं। वह प्रियंका गांधी नहीं, अपितु प्रियंका वाड्रा और वाड्रा वह नाम है, जिसको इस्तेमाल करना इस गांधी परिवार के लिए भारी पड़ेगा।

रमन मलिक ने कहा कि मुझको यह स्मरण होता है कि आज से कुछ ढाई-तीन साल पहले एक निजी टेलिविजन चैनल को दिए गए साक्षात्कार में कांग्रेस के युवराज और वर्तमान में अध्यक्ष राहुल गांधी ने महिला सशक्तिकरण का विषय कम से कम 150 बार उठाया था, लेकिन ऐसा क्यों है कि अपने घर में अपनी बहन को सशक्त करने के लिए उन्हें इतना लंबा समय लग गया? भाजपा नेता ने कहा कि अगर उनका तर्क मान भी लें कि प्रियंका गांधी वाड्रा की अपनी मर्जी कि वह कब राजनीतिके क्षेत्र में आए, लेकिन यह सवाल तो यक्ष प्रश्न है कि मात्र गांधी परिवार से नाते के कारण उन्हें एक कार्यकर्ता की भाँती श्रम की सीढय़िां ना चढ़ते हुए सीधे महामंत्री बनाया गया। एक क्षेत्र का प्रभार भी दिया गया। यह तो इस तरह की तुलना है कि एक परिवारिक व्यवसाय में सभी बच्चों का अधिकार है और जो बच्चा उस व्यवसाय को चला रहा है, उसने अपने भाई या बहन को उस कंपनी के एक हिस्से को संभालने के लिए बिठा दिया।

भाजपा प्रवक्ता ने कटाक्ष किया कि वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों में जब प्रियंका अमेठी और रायबरेली की सीटों को संभाल रही थी तो हमने उनकी कार्यकुशलता देखी। कार्यकुशलता का कितना फर्क पड़ा, यह भी देखने को मिला कि बहुत मुश्किल से रेंगते-रेंगते राहुल गांधी की अमेठी सीट कांग्रेस के पाले में आई। इस बार का चुनाव शायद राहुल गांधी स्मृति ईरानी जी से हार भी जाए, क्योंकि जिस सीट को कथित तौर पर प्रियंका गांधी पिछले 15 साल से संभाल रही हैं, उसमें विकास का क्या हाल है यह स्पष्ट दिखता है।

2019 के लिए दी जा रही प्रियंका की बलि

रमन मलिक ने सवाल खड़ा किया कि क्या 2019 में मिलने वाली बड़ी हार से राहुल को बचाने के लिए प्रियंका की बलि दी जा रही है? क्योंकि यूपी में मिलने वाली करारी हार को प्रियंका और ज्योतिरादित्य के सिर मढ़ दिया जाएगा और राहुल को बचा लिया जाएगा और या फिर नेशनल हेराल्ड के केस में अगर राहुल गांधी को सजा हो जाती है तो उस परिस्थिति में गांधी परिवार का कोई ना कोई व्यक्ति सिस्टम में होना चाहिए जिसको उस समय अध्यक्ष बनाया जाए और परिवारवाद का दाग ना लगे और बोला जा सके कि यह तो पहले से ही पार्टी की सेवा में थे।

उन्होंने आशंका व्यक्त की कि इन सारे विषयों से बड़ा यह विषय है कि बसपा और सपा या ममता बनर्जी ने अपनी अपनी डफली बजा कर राहुल गांधी को राष्ट्रीय राजनीति के लिए अप्रासंगिक बना दिया है। मलिक ने सवाल पूछा है कि प्रियंका वाड्रा की महासचिव के रूप में नियुक्ति क्या राहुल गांधी को उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल व अन्य राज्यों में इन क्षेत्रीय दलों के सामने प्रासंगिक हिस्सेदार बनाने की कवायद है।

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